• प्रश्न :

    प्रश्न: "नैतिक साहस को जवाबदेही का सर्वोच्च रूप कहा गया है।" चुनौतीपूर्ण प्रशासनिक वातावरण में सिविल सेवकों को किन नैतिक दुविधाओं का सामना करना पड़ता है? विश्लेषण कीजिये। (150 शब्द)

    05 Dec, 2024 सामान्य अध्ययन पेपर 4 सैद्धांतिक प्रश्न

    उत्तर :

    हल करने का दृष्टिकोण:

    • नैतिक साहस को परिभाषित करके उत्तर प्रस्तुत कीजिये। 
    • लोक सेवकों के समक्ष आने वाली प्रमुख नैतिक दुविधाओं पर गहन विचार प्रस्तुत कीजिये। 
    • इन दुविधाओं से निपटने में नैतिक साहस के महत्त्व पर प्रकाश डालिये।
    • उचित निष्कर्ष दीजिये। 

    परिचय: 

    नैतिक साहस का अर्थ है लोक सेवकों के कॅरियर में असफलता, सार्वजनिक आलोचना या व्यक्तिगत नुकसान जैसे जोखिमों के बावजूद सही/सत्य के समर्थन में खड़े होना या दृढ होना। शासन की रीढ़ के रूप में लोक सेवकों को प्रायः नैतिक दुविधाओं का सामना करना पड़ता है, जहाँ व्यक्तिगत ईमानदारी संस्थागत दबावों, निहित स्वार्थों या सार्वजनिक मांगों से टकराती है।

    मुख्य भाग: 

    लोक सेवकों के समक्ष आने वाली नैतिक दुविधाएँ

    • कानून और न्याय के बीच संघर्ष: कानूनी फ्रेमवर्क को कायम रखना बनाम सामाजिक न्याय सुनिश्चित करना।
      • उदाहरण: झुग्गी बस्तियों में बेदखली अभियान कानूनी आदेशों का पालन कर सकते हैं, लेकिन कमज़ोर आबादी को विस्थापित कर सकते हैं, जिससे लोक सेवकों के लिये संघर्ष उत्पन्न हो सकता है।
    • राजनीतिक आकाओं का दबाव: राजनेता निहित स्वार्थों या चुनावी लाभ के लिये अनुचित प्रभाव डाल सकते हैं।
      • उदाहरण: हरियाणा के IAS अधिकारी अशोक खेमका को हाई-प्रोफाइल भूमि सौदों में भ्रष्टाचार को उजागर करने के कारण तबादला झेलना पड़ा।
    • संसाधन आबंटन: सीमित संसाधनों के कारण कठिन विकल्पों की आवश्यकता होती है, जो प्रायः समान वितरण की कीमत पर होता है।
      • उदाहरण: एक ज़िला कलेक्टर को तात्कालिक आपदा राहत बनाम दीर्घकालिक विकास परियोजनाओं के लिये धन को प्राथमिकता देने की दुविधा का सामना करना पड़ सकता है।
    • भ्रष्टाचार के विरुद्ध सूचना देना: प्रशासन के भीतर अनैतिक प्रथाओं की सूचना देने से अलगाव या प्रतिशोध की स्थिति उत्पन्न हो सकती है।
      • उदाहरण: सत्येंद्र दुबे नामक एक युवा सिविल इंजीनियर ने स्वर्णिम चतुर्भुज परियोजना में भ्रष्टाचार को उजागर करने के बाद अपनी जान गँवा दी।
    • सार्वजनिक अपेक्षाएँ बनाम प्रशासनिक वास्तविकताएँ: जनता प्रायः तत्काल कार्रवाई की अपेक्षा रखती है, जो प्रक्रियागत या संसाधन बाधाओं के अनुरूप नहीं हो सकती है।
      • उदाहरण: प्रशासन के समक्ष मौजूद रसद संबंधी चुनौतियों के बावजूद बाढ़ राहत प्रयासों में विलंब को लेकर सार्वजनिक आलोचना हो सकती है।

    इन दुविधाओं से निपटने में नैतिक साहस का महत्त्व: 

    • लोकतांत्रिक मूल्यों की रक्षा: नैतिक साहस को कायम रखना शासन के लोकतांत्रिक ताने-बाने को सुदृढ़ करता है।
      • उदाहरण: IAS अधिकारी हर्ष मंडे ने सांप्रदायिक हिंसा के विरोध में इस्तीफा दे दिया, उन्होंने अपने करियर की अपेक्षा मानवाधिकारों को प्राथमिकता दी।
    • प्रणालीगत क्षय को रोकना: साहसी कार्य भ्रष्टाचार और अकुशलताओं को उजागर करते हैं, तथा प्रशासन में अनैतिक प्रथाओं के सामान्यीकरण को रोकते हैं।
      • उदाहरण: IFS अधिकारी संजीव चतुर्वेदी ने स्थानांतरण और चुनौतियों का सामना करने के बावजूद भ्रष्टाचार के कई मामलों का खुलासा किया।
    • नैतिक नेतृत्व को प्रोत्साहित करना: सिद्धांतबद्ध आचरण के उदाहरण स्थापित करके, नैतिक रूप से साहसी लोक सेवक सहकर्मियों और अधीनस्थों को नैतिक व्यवहार अपनाने के लिये प्रेरित करते हैं।
      • उदाहरण: ‘भारत के मेट्रो मैन’ ई. श्रीधरन ने परियोजना की दक्षता और अखंडता सुनिश्चित करते हुए लगातार उच्च नैतिक मानकों को कायम रखा।
    • सत्ता का दुरुपयोग रोकना: अनुचित राजनीतिक या सामाजिक दबाव का विरोध करना यह सुनिश्चित करता है कि प्रशासन निष्पक्ष और जन-केंद्रित बना रहे।
      • उदाहरण: IAS अधिकारी दुर्गा शक्ति नागपाल ने निलंबन झेलने के बावजूद अवैध रेत खनन के खिलाफ कार्रवाई की तथा प्राकृतिक संसाधनों की सुरक्षा सुनिश्चित की।

    निष्कर्ष: 

    नैतिक साहस जवाबदेही के सर्वोच्च रूप के रूप में कार्य करता है, जो लोक कल्याण सुनिश्चित करते हुए जटिल नैतिक दुविधाओं से निपटने के लिये लोक सेवकों का मार्गदर्शन करता है। ईमानदारी, पारदर्शिता और लचीलेपन को बढ़ावा देकर, नैतिक साहस लोकतांत्रिक शासन को सुदृढ़ करता है तथा सार्वजनिक संस्थानों में विश्वास को प्रेरित करता है।