• प्रश्न :

    प्रश्न. सामाजिक क्षेत्र की सेवाओं की गुणवत्ता और अभिगम में सुधार लाने में सार्वजनिक-निजी भागीदारी की भूमिका का विश्लेषण कीजिये। कौन-से शासन तंत्र जवाबदेही सुनिश्चित कर सकते हैं और आवश्यक सेवाओं के वस्तुकरण को नियंत्रित कर सकते हैं? (250 शब्द)

    03 Dec, 2024 सामान्य अध्ययन पेपर 2 सामाजिक न्याय

    उत्तर :

    हल करने का दृष्टिकोण: 

    • सामाजिक क्षेत्र की सेवाएँ प्रदान करने में PPP की ताकत पर प्रकाश डालते हुए उत्तर प्रस्तुत कीजिये।
    • सामाजिक क्षेत्र की सेवाओं को बेहतर बनाने में PPP की भूमिका बताइये। 
    • PPP से जुड़ी चुनौतियों पर गहन विचार प्रस्तुत कीजिये।
    • जवाबदेही सुनिश्चित करने के लिये शासन तंत्र का सुझाव दीजिये।
    • उचित निष्कर्ष दीजिये।

    परिचय: 

    सार्वजनिक-निजी भागीदारी (PPP) स्वास्थ्य, शिक्षा और स्वच्छता जैसी सामाजिक क्षेत्र की सेवाओं की गुणवत्ता एवं अभिगम बढ़ाने के लिये एक महत्त्वपूर्ण साधन के रूप में उभरी है।

    • PPP का उद्देश्य दोनों क्षेत्रों की शक्तियों– निजी क्षेत्र की दक्षता एवं नवाचार और सार्वजनिक क्षेत्र के सामाजिक अधिदेश का लाभ उठाकर संसाधन अंतराल तथा सेवा वितरण चुनौतियों का समाधान करना है। 

    मुख्य भाग: 

    सामाजिक क्षेत्र की सेवाओं में सुधार लाने में PPP की भूमिका:

    • संसाधन अंतराल को कम करना: PPP निजी निवेश लाता है, जिससे सरकारों पर बजटीय बाधाएँ कम होती हैं।
      • उदाहरण: आयुष्मान भारत के तहत प्रधानमंत्री जन आरोग्य योजना (PM-JAY) के तहत स्वास्थ्य देखभाल पहुँच का विस्तार करने के लिये निजी अस्पताल नेटवर्क का लाभ उठाया जाता है।
    • कार्यकुशलता और नवाचार को बढ़ावा: निजी क्षेत्र की विशेषज्ञता सेवा वितरण और प्रौद्योगिकी अंगीकरण में नवाचार को बढ़ावा देती है।
      • उदाहरण: राष्ट्रीय कौशल विकास निगम (NSDC) कौशल प्रशिक्षण प्रदान करने के लिये निजी संस्थाओं के साथ सहयोग करता है।
    • सेवाओं की गुणवत्ता में सुधार: सार्वजनिक निजी भागीदारी (PPP) वैश्विक स्तर पर सर्वोत्तम प्रथाओं और गुणवत्ता मानकों को लागू करने में सक्षम बनाती है।
      • उदाहरण: विभिन्न राज्यों में मॉडल स्कूल योजना के तहत सरकारी स्कूल संचालन के प्रबंधन में निजी संस्थाओं को शामिल किया गया है।
    • अभिगम का विस्तार: सार्वजनिक निजी भागीदारी (PPP) के माध्यम से वंचित क्षेत्रों, विशेषकर ग्रामीण और दूर-दराज़ के क्षेत्रों तक सेवा कवरेज का विस्तार होता है।
      • उदाहरण: डिजिटल इंडिया पहल के तहत कॉमन सर्विस सेंटर योजना PPP का एक उत्कृष्ट उदाहरण है जिसका उद्देश्य ग्रामीण और दूर-दराज़ के क्षेत्रों में ई-गवर्नेंस सेवाएँ प्रदान करना है।

    PPP से जुड़ी चुनौतियाँ: 

    • जवाबदेही के मुद्दे: लाभ के उद्देश्य से सेवा की गुणवत्ता की कीमत पर लागत में कटौती हो सकती है।
      • उदाहरण: अपर्याप्त निधि आवंटन के बीच भुगतान में विलंब का हवाला देकर निजी अस्पतालों द्वारा आयुष्मान भारत के तहत सेवाएँ देने से इनकार करने के उदाहरण।
    • समानता और समावेशिता संबंधी चिंताएँ: निजी कंपनियाँ उच्च रिटर्न वाले क्षेत्रों को प्राथमिकता दे सकती हैं तथा सीमांत या दूर-दराज़ के क्षेत्रों की उपेक्षा कर सकती हैं, जहाँ सेवा वितरण की सबसे अधिक आवश्यकता है।
      • उदाहरण: राष्ट्रीय स्वास्थ्य बीमा योजना (RSBY) में, कई निजी स्वास्थ्य सुविधाएँ कम लाभ मार्जिन के कारण जनजातीय और ग्रामीण क्षेत्रों में परिचालन स्थापित करने से बचती रही हैं।
    • सेवा बाधित होने का जोखिम: यदि निजी कंपनियाँ वित्तीय मुद्दों या असहमति के कारण समय से पहले बाहर निकल जाती हैं, तो आवश्यक सेवाएँ बाधित हो सकती हैं।
      • उदाहरण: PPP मॉडल के तहत विकसित दिल्ली-गुड़गाँव एक्सप्रेस-वे को उस समय समस्याओं का सामना करना पड़ा जब निजी ऑपरेटर ने टोल संग्रह विवादों पर पीछे हटने की धमकी दी।
    • संविदागत असंतुलन: सरकारों में प्रायः न्यायसंगत अनुबंधों का मसौदा तैयार करने और उन पर वार्ता करने की क्षमता का अभाव होता है, जिसके परिणामस्वरूप सार्वजनिक हितों की कीमत पर निजी संस्थाओं को लाभ होता है।

    जवाबदेही सुनिश्चित करने के लिये शासन तंत्र

    • मज़बूत नियामक फ्रेमवर्क: प्रदर्शन मानकों के साथ स्पष्ट अनुबंध, शिकायत निवारण तंत्र और वित्तीय पारदर्शिता।
    • स्वतंत्र निरीक्षण निकाय: अनुपालन की निगरानी और विवादों को सुलझाने के लिये भारतीय दूरसंचार नियामक प्राधिकरण (TRAI) जैसे स्वतंत्र नियामकों की स्थापना की जानी चाहिये, जो दूरसंचार क्षेत्र में सार्वजनिक एवं निजी हितों के बीच प्रभावी रूप से संतुलन बनाए रखें।
    • सामाजिक लेखा परीक्षा और सामुदायिक भागीदारी: महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोज़गार गारंटी अधिनियम (MGNREGA) के तहत सामाजिक लेखा परीक्षा के अनुरूप PPP परियोजनाओं के अभिगम एवं गुणवत्ता पर प्रभाव का मूल्यांकन करने के लिये नियमित लेखा परीक्षा, जिससे पारदर्शिता और जवाबदेही में सुधार हुआ है।
    • समानता के लिये सब्सिडी मॉडल: आवश्यक सेवाओं को किफायती बनाए रखने के लिये सरकार द्वारा वित्तपोषित सब्सिडी लागू किये जाने चाहिये।
    • आवधिक मूल्यांकन और पुनर्वार्ता: उभरती चुनौतियों के अनुरूप ढलने और दीर्घकालिक  संदोहन को रोकने के लिये समय-समय पर अनुबंधों की समीक्षा की जानी चाहिये।

    निष्कर्ष: 

    सार्वजनिक-निजी भागीदारी में गुणवत्ता, दक्षता और अभिगम में सुधार करके सामाजिक क्षेत्र की/सार्वजानिक सेवाओं में क्रांतिकारी परिवर्तन लाने की अपार क्षमता है। हालाँकि यह सुनिश्चित करने के लिये कि PPP के लाभ समान रूप से वितरित किये जाएँ, आवश्यक सेवाओं के संदोहन और वस्तुकरण को रोकने के लिये सुदृढ़ शासन तंत्र की आवश्यकता है।