• प्रश्न :

    प्रश्न: "सरदार पटेल के नेतृत्व में रियासतों का एकीकरण आधुनिक भारत की संघीय चुनौतियों के समाधान हेतु महत्त्वपूर्ण अंतर्दृष्टि प्रदान करता है।" क्षेत्रीय स्वायत्तता की मांग से उत्पन्न हालिया मुद्दों के संदर्भ में इस कथन का विश्लेषण कीजिये। (250 शब्द)

    28 Oct, 2024 सामान्य अध्ययन पेपर 1 इतिहास

    उत्तर :

    दृष्टिकोण: 

    • किस प्रकार सरदार वल्लभभाई पटेल ने तनावों को नियंत्रित करते हुए रियासतों का प्रभावी एकीकरण भारत में सुनिश्चित किया। तर्क सहित उत्तर दीजिये।
    • इस बात पर तर्क प्रस्तुत कीजिये कि पटेल का दृष्टिकोण वर्तमान क्षेत्रीय स्वायत्तता के मुद्दों को हल करने के लिये किस प्रकार उपयोगी सबक प्रदान करता है या ये मुद्दे वर्तमान में किस प्रकार हल किये जा रहे हैं? 
    • उचित निष्कर्ष लिखिये। 

    परिचय: 

    सरदार वल्लभभाई पटेल ने स्वतंत्रता के पश्चात् लगभग 560 रियासतों का एकीकरण कर विविधता, विभाजन और सुरक्षा खतरों की चुनौतियों के बीच एक संगठित भारत की नींव रखी

    • वर्तमान में, क्षेत्रीय स्वायत्तता की मांग और संघीय तनाव के बीच, पटेल का दृष्टिकोण इस बात की गहन समझ प्रदान करता है कि कैसे विविधता में एकता का संतुलन बनाए रखा जा सकता है।

    मुख्य भाग:

    • विविधता में एकता: पटेल ने सांस्कृतिक विशिष्टता का सम्मान करते हुए एकीकरण को प्रोत्साहित किया तथा स्थानीय विविधता के साथ राष्ट्रीय पहचान की भावना को सशक्त बनाया। 
      • उदाहरण के लिये, उन्होंने जोधपुर के महाराजा से स्थानीय आवश्यकताओं की पूर्ति के लिये अकाल राहत और रेल संपर्क का वादा किया, जिससे क्षेत्रीय हितों की रक्षा करते हुए भारत की एकता में विश्वास का निर्माण हुआ। 
      • वर्तमान में, क्षेत्रीय भाषाओं (मराठी, पाली, प्राकृत, असमिया और बंगाली को शास्त्रीय भाषाओं के रूप में मान्यता देकर) और संस्कृतियों को मान्यता देना, विविधता के प्रति सम्मान के माध्यम से एकजुट करने की पटेल की पद्धति को प्रतिबिंबित करता है।
    • लचीला संघवाद: पटेल ने आवश्यकता पड़ने पर कूटनीति को रणनीतिक बल के साथ जोड़ा। हैदराबाद के मामले में, जब सभी वार्ताएँ असफल हो गईं, तब उन्होंने एकीकरण सुनिश्चित करने के लिये "ऑपरेशन पोलो" को अधिकृत किया।
      • अन्यत्र, उन्होंने शांतिपूर्वक प्रिवी पर्स जैसी रियायतों का सहारा लिया।
      • इस लचीलेपन ने क्षेत्रीय शासन का सम्मान करते हुए सहज एकीकरण को संभव बनाया, एक सिद्धांत जो आज मणिपुर जैसे उग्रवाद के मामलों से निपटने में प्रतिबिंबित होता है। 
    • सुरक्षा और स्वायत्तता में संतुलन: पटेल सीमावर्ती राज्यों में सुरक्षा जोखिमों के प्रति सतर्क थे। कश्मीर के संदर्भ में, उन्होंने संचार को सुरक्षित किया और खतरे के समय सुरक्षा की व्यवस्था की। 1947 के आक्रमण के खिलाफ उनकी त्वरित सैन्य प्रतिक्रिया ने भारत के रुख को सुदृढ़ किया। 
      • वर्तमान में, यह दृष्टिकोण जम्मू और कश्मीर जैसे क्षेत्रों में संतुलन को दर्शाता है, जहाँ अनुच्छेद 370 को हटाने में कानूनी एवं प्रशासनिक रणनीतियों का संयोजन शामिल था।
    • आर्थिक समावेशिता: पटेल ने रियासतों को आर्थिक रूप से आत्मसात करने हेतु प्रयास किये, जिससे असमानताएँ कम हुईं। प्रिवी पर्स के उनके आश्वासन ने संक्रमण को सहज बनाया, जबकि जूनागढ़ में उन्होंने स्थानीय भावनाओं का उपयोग कर शांतिपूर्ण विलय सुनिश्चित किया।
      • वर्तमान में, आर्थिक समावेशिता की मांगें, जैसे कि बिहार और आंध्र प्रदेश की विशेष मांग, क्षेत्रीय असमानताओं को दूर करने की आवश्यकता को रेखांकित करती हैं, जैसा कि पटेल ने एकता को प्रोत्साहित करने हेतु किया था।
    • संवैधानिक अखंडता: पटेल ने यह सुनिश्चित किया कि सभी विलय भारत के संविधान का सम्मान करें तथा संघवाद के भीतर राष्ट्रीय एकता को प्राथमिकता दी जाए। 
      • जब जोधपुर के महाराजा जैसे शासकों ने इसमें संकोच किया, तो पटेल ने संवैधानिक अनुपालन के साथ गारंटी को संतुलित किया। 
      • नागा शांति वार्ता का वर्तमान मामला भारतीय राज्य की संप्रभुता सुनिश्चित करते हुए स्वायत्तता को समायोजित करने में संवैधानिक ढाँचे के महत्त्व को रेखांकित करता है।
    • बल की अपेक्षा कूटनीति: पटेल मुख्य रूप से कूटनीति पर निर्भर थे तथा उन्होंने बल का प्रयोग हैदराबाद जैसे असाधारण मामलों के लिये सुरक्षित रखा था। 
      • पूर्वोत्तर राज्यों में आज की स्वायत्तता की मांग बलपूर्वक उपायों के बजाय सक्रिय कूटनीति की आवश्यकता को उजागर करती है।
      • आज की क्षेत्रीय स्वायत्तता की मांगें, जैसे कि महाराष्ट्र (मराठा आरक्षण से संबंधित) या बोडोलैंड (असम), राष्ट्रीय प्राथमिकताओं के साथ क्षेत्रीय पहचान को संतुलित करने की आवश्यकता को रेखांकित करती हैं। 

    निष्कर्ष:

    सरदार पटेल के रियासतों के एकीकरण के दृष्टिकोण ने एक सुसंगत संघीय ढाँचे की नींव रखी, जो एकता को बनाए रखते हुए विविधता को समायोजित करता है। लचीले संघवाद, आर्थिक समावेशिता और सीमित बल का उनका व्यावहारिक उपयोग भारत में समकालीन क्षेत्रीय स्वायत्तता की मांगों के प्रबंधन के लिये मूल्यवान सबक प्रस्तुत करता है।