• प्रश्न :

    वैश्वीकरण एवं उदारीकरण के इस युग में दिनोंदिन परिपक्व होती भारतीय राजनीति में दबाव समूहों की प्रासंगिकता धीरे-धीरे क्षीण हो रही है। आलोचनात्मक व्याख्या कीजिये।

    19 May, 2018 सामान्य अध्ययन पेपर 2 राजव्यवस्था

    उत्तर :

    उत्तर की रूपरेखा: 

    • दबाव समूहों को परिभाषित करते हुए परिपक्व होती भारतीय राजनीति के साथ इसकी भूमिका का संक्षिप्त उल्लेख कीजिये।
    • दबाव समूहों के भारतीय राजनीति में सकारात्मक व नकारात्मक प्रभावों को लिखिये।
    • दबाव समूहों की प्रासंगिकता।

    "दबाव समूह" ऐसे समूह होते हैं जो प्रायः सक्रिय रूप से संगठित होकर विभिन्न माध्यमों से विधिक व तर्कसंगत तरीकों द्वारा नीति निर्माण एवं नीति निर्धारण को अपने हितों की पूर्ति के लिये प्रभावित करते हैं। ये राजनीतिक दलों से भिन्न होते हैं न तो चुनाव में भाग लेते हैं और न ही राजनितिक शक्तियों को हथियाने की कोशिश करते हैं। ये कुछ खास कार्यक्रमों एवं मुद्दों से संबंधित होते हैं। 

    भारतीय संदर्भ में वैश्वीकरण एवं उदारीकरण के इस युग में व्यवसाय समूह व्यापार संघ खेतिहर समूह पेशेवर समितियाँ छात्र संगठन धार्मिक संगठन जातीय समूह आदिवासी संगठन भाषागत समूह इत्यादि रूपों में न केवल अपने हितों बल्कि राजनीति के वैचारिक फलक को व्यापक रूप से निरंतर परिपक्व बनाने में एक-दूसरे को कारण एवं प्रभाव स्वरुप सकारात्मक भूमिका का निर्वहन कर रहे हैं।

    फिक्की जो कि मुख्य व्यावसायिक व औद्योगिक हितों एवं एसोचैम विदेशी ब्रिटिश पूंजी का प्रतिनिधित्व करता है अपने हितों की पूर्ति के लिये अपने निर्णयों से समय-दर-समय भारतीय राजनीति को प्रभावित करते रहते हैं।

    अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद (एबीवीपी) जैसे अन्य विश्वविद्यालयों के छात्र संगठनों की सिविल सेवा एवं अन्य आंदोलनों में सक्रिय भूमिका को देखा जा सकता है।

    दबाव समूहों की उपर्युक्त प्रसंगिकताओं से इतर कुछ आदिवासी संगठनों भाषायी समूहों धार्मिक संगठनों छात्र संगठनों जातीय समूहों की हिंसात्मक गतिविधियाँ भारतीय राजनीति में इनकी प्रासंगिकता पर प्रश्नचिह्न लगाती हैं जिनको हरियाणा में आरक्षण की मांग स्वास्थ्य व चिकित्सा व्यवस्था को ठपकर की जानेवाली हड़तालों इत्यादि के रूप में देखा जा सकता है।

    दबाव समूहों की उपर्युक्त कमियों के बावजूद इनकी प्रासंगिकता को कमतर करके नहीं आँका जा सकता। राजनीति प्रशासन न्यायपालिका व समाज के मध्य सहयोग एवं समन्वय पारदर्शिता एवं जवाबदेही के द्वारा ऐसी कमियों सेे निपटा जा सकता है। समाज में गुणवत्ता परक सुविधाओं व जनजागरूकता का प्रसार करने अपनी मांगों को उचित समय पर स्वीकार करवाने राजनीति व प्रशासन को पारदर्शी एवं जवाबदेह बनाने इत्यादि कार्यों में इनका योगदान निरंतर जारी है।