• प्रश्न :

    आप एक सूखाग्रस्त क्षेत्र के ज़िला कलेक्टर हैं। सरकार ने हज़ारों किसानों को लाभ पहुँचाने हेतु एक बड़ी सिंचाई परियोजना के लिये धन आवंटित किया है। हालाँकि प्रारंभिक सर्वेक्षण के दौरान, यह पता चला है कि इस परियोजना के लिये 500 लोगों के एक छोटे से आदिवासी समुदाय को उनकी पैतृक भूमि से विस्थापित करना होगा। समुदाय के पास औपचारिक भूमि स्वामित्त्व के दस्तावेज़ नहीं हैं, लेकिन वे पीढ़ियों से वहाँ रह रहे हैं। वे भूमि से सांस्कृतिक और आध्यात्मिक रूप से जुड़े हुए है, जिसका हवाला देते हुए वहाँ से वह जाने को तैयार नहीं हैं।

    जैसे ही आपको पता चलता है कि कुछ प्रभावशाली स्थानीय राजनेता और व्यवसायी सिंचाई परियोजना से काफी लाभ उठाने की चेष्टा रखते हैं। वे आप पर प्रक्रिया में तेज़ी लाने तथा आदिवासी समुदाय के साथ बातचीत को कम करने का दबाव बना रहे हैं। इस बीच, पर्यावरण कार्यकर्त्ताओं के एक समूह ने स्थानीय पारिस्थितिकी तंत्र पर परियोजना के संभावित नकारात्मक प्रभाव के बारे में चिंता जताई है, विशेष रूप से मछली की एक दुर्लभ प्रजाति पर जो केवल उस नदी में पाई जाती है जिसका सिंचाई के लिये उपयोग किया जाएगा। आपको स्थिति को संवेदनशीलता के साथ संभालना होगा और प्रतिस्पर्द्धी हितों को संतुलित करना होगा।

    A. इस मामले में कौन-कौन से हितधारक शामिल हैं?
    B. इस स्थिति में ज़िला कलेक्टर के तौर पर आपको किन नैतिक दुविधाओं का सामना करना पड़ता है?
    C. विकास संबंधी लक्ष्यों और आदिवासी समुदाय के अधिकारों के बीच संतुलन सुनिश्चित करते हुए इस स्थिति को संबोधित करने के लिये आप क्या कदम उठाएंगे, इसकी रूपरेखा बताइये।
    D. आप इस प्रक्रिया में पारदर्शिता और निष्पक्षता कैसे सुनिश्चित करेंगे?

    28 Jun, 2024 सामान्य अध्ययन पेपर 4 केस स्टडीज़

    उत्तर :

    परिचय:

    सूखाग्रस्त ज़िला महत्त्वपूर्ण सिंचाई परियोजना से आदिवासी समुदाय के विस्थापित होने और पर्यावरण को नुकसान पहुँचाने का खतरा जैसी दुविधा का सामना कर रहा है। ज़िला कलेक्टर को विकास संबंधी आवश्यकताओं को समुदाय के अधिकारों तथा पर्यावरण संबंधी चिंताओं के साथ संतुलित करना चाहिये, ताकि पूरी प्रक्रिया में पारदर्शिता एवं निष्पक्षता सुनिश्चित हो सके।

    मुख्य भाग:

    A. इस मामले में कौन-कौन से हितधारक शामिल हैं?

    हितधारक

    चिंताएँ एवं चुनौतियाँ 

    जनजातीय समुदाय

    पैतृक भूमि का संरक्षण, सांस्कृतिक और आध्यात्मिक संबंध, औपचारिक भूमि स्वामित्त्व दस्तावेज़ों का अभाव, विस्थापन का प्रतिरोध।

    किसान 

    सिंचाई परियोजना से लाभ, कृषि उत्पादकता में सुधार, जल तक पहुँच।

    स्थानीय राजनेता

    परियोजना से आर्थिक और राजनीतिक लाभ, प्रक्रिया में तेज़ी लाने का दबाव।

    बिज़नेस मेन

    परियोजना से आर्थिक लाभ, संभावित भूमि विकास के अवसर।

    पर्यावरण कार्यकर्त्ता

    स्थानीय पारिस्थितिकी तंत्र की सुरक्षा, दुर्लभ मछली प्रजातियों के बारे में चिंता, परियोजना के पर्यावरणीय प्रभाव के खिलाफ खड़े होना।

    सरकार

    सिंचाई परियोजना का सफलतापूर्वक क्रियान्वयन, विकास और पर्यावरण संरक्षण में संतुलन, सभी हितधारकों की आवश्यकताओं का समाधान।

    ज़िला कलेक्टर

    निष्पक्ष एवं नैतिक रूप से निर्णय लेना, हितधारकों के हितों का प्रबंधन, सफलतापूर्वक परियोजना का क्रियान्वयन तथा विनियमों का अनुपालन सुनिश्चित करना।

    B. इस स्थिति में ज़िला कलेक्टर के रूप में आपको किन नैतिक दुविधाओं का सामना करना पड़ता है?

    • वंचितों के अधिकार बनाम सार्वजनिक कल्याण
      • आदिवासी समुदाय (500 लोग) के अधिकारों और उनकी सांस्कृतिक विरासत की रक्षा करना
      • हज़ारों किसानों को सिंचाई लाभ प्रदान करना
    • पारंपरिक भूमि अधिकार बनाम कानूनी दस्तावेज़ीकरण
      • आदिवासी समुदाय की भूमि पर पैतृक रूप से किये गए दावे का सम्मान करना
      • औपचारिक भूमि से संबंधित कानूनों और दस्तावेज़ीकरण की आवश्यकताओं का पालन करना
    • सांस्कृतिक संरक्षण बनाम आर्थिक विकास
      • आदिवासी समुदाय के सांस्कृतिक और आध्यात्मिक संबंधों को संरक्षित करना
      • सिंचाई परियोजना के माध्यम से क्षेत्रीय आर्थिक विकास को बढ़ावा देना
    • पर्यावरण संरक्षण बनाम कृषि में प्रगति
      • स्थानीय पारिस्थितिकी तंत्र और मछली की दुर्लभ प्रजातियों की रक्षा करना
      • सिंचाई के माध्यम से कृषि उत्पादकता में सुधार करना
    • नैतिक शासन बनाम राजनीतिक दबाव
      • ईमानदारी के साथ उचित प्रक्रिया का पालन करना
      • प्रभावशाली राजनेताओं और व्यापारियों के दबाव का जवाब देना
    • अल्पकालिक लाभ बनाम दीर्घकालिक स्थिरता
      • सिंचाई परियोजना से त्वरित आर्थिक लाभ
      • दीर्घकालिक पर्यावरणीय और सांस्कृतिक स्थिरता

    C. विकास संबंधी लक्ष्यों और आदिवासी समुदाय के अधिकारों के बीच संतुलन सुनिश्चित करते हुए इस स्थिति को संबोधित करने के लिये आप क्या कदम उठाएंगे, इसकी रूपरेखा बताइये।

    D. आप इस प्रक्रिया में पारदर्शिता और निष्पक्षता कैसे सुनिश्चित करेंगे?

    • डेटा संग्रह और सत्यापन:
      • आदिवासी समुदाय के विस्थापन का सामाजिक-आर्थिक और सांस्कृतिक रूप से गहन आकलन करना।
      • मनोवैज्ञानिक और सामाजिक कार्यकर्त्ताओं के साथ मिलकर उनके इतिहास, सांस्कृतिक प्रथाओं तथा भूमि पर निर्भरता का दस्तावेज़ीकरण करना।
      • वन विभाग के साथ मिलकर समुदाय की उपस्थिति और भूमि के पारंपरिक उपयोग (औपचारिक स्वामित्त्व वाले दस्तावेज़ों के बिना भी) को सत्यापित करना।
    • हितधारकों की वचनबद्धता:
      • जनजातीय समुदाय के साथ खुले और पारदर्शी परामर्श आयोजित करना, परियोजना के लाभों तथा संभावित विस्थापन के बारे में समझाना।
      • स्थानीय राजनेताओं और व्यापारियों के साथ संवाद की सुविधा प्रदान करना, निष्पक्ष तथा कानूनी प्रक्रिया की आवश्यकता पर ज़ोर देते हुए उनकी चिंताओं को संबोधित करना।
      • पर्यावरणविदों के साथ जुड़ें, उनकी चिंताओं को परियोजना की डिज़ाइन में शामिल करना (जैसे- नहरों में मछलियों का मार्ग) और शमन रणनीतियों का निर्माण आदि।
    • मुआवज़ा और पुनर्वास:
      • यदि विस्थापन अपरिहार्य है, तो आजीविका, सांस्कृतिक संसाधनों और भूमि से भावनात्मक लगाव के नुकसान को ध्यान में रखते हुए उचित मुआवज़ा प्रदान करना।
      • उपयुक्त पुनर्वास विकल्पों की पहचान करने के लिये समुदाय तथा आदर्श रूप से उपजाऊ भूमि, जल संसाधन और बुनियादी ढाँचे तक पहुँच के साथ कार्य करना।
      • पुनर्वास योजना में सांस्कृतिक संरक्षण और आजीविका बहाली के प्रावधान शामिल करना।
    • पारदर्शिता और निष्पक्षता:
      • पर्यावरण प्रभाव आकलन और मुआवज़ा योजनाओं सहित सभी परियोजना दस्तावेज़ों को सार्वजनिक पहुँच के लिये स्थानीय भाषाओं में प्रकाशित करना।
      • समुदाय के लिये एक शिकायत निवारण तंत्र स्थापित करना ताकि वे अपनी चिंताओं को व्यक्त कर सकें और समाधान ढूँढ सकें।
      • मुआवज़ा और पुनर्वास प्रक्रिया की देख-रेख के लिये स्वतंत्र नियंत्रणकर्त्ताओं, जैसे कि गैर-सरकारी संगठनों या कानूनी प्रतिनिधियों को शामिल करना।

    निष्कर्ष:

    सावधानीपूर्वक नियोजन, समावेशी संवाद और नैतिक नेतृत्व के साथ, ऐसी जटिल परिस्थितियों से निपटना तथा व्यापक रूप से समुदाय को लाभ पहुँचाने वाले परिणामों के लिये प्रयास करना संभव है साथ ही हाशिए पर पड़े समूहों के अधिकारों की रक्षा करते हैं। अंततः, यह मामला एक अनुस्मारक के रूप में कार्य करता है कि सतत् विकास के लिये एक समग्र दृष्टिकोण की आवश्यकता होती है जो सामाजिक, पर्यावरणीय और आर्थिक कारकों को समान रूप से ध्यान में रखता है।