• प्रश्न :

    'एशिया के वाटर टाॅवर' के रूप में हिमालय की भूमिका तथा भारतीय उपमहाद्वीप की क्षेत्रीय जलवायु एवं जैवविविधता पर इसके प्रभावों का परीक्षण कीजिये। (250 शब्द)

    06 May, 2024 सामान्य अध्ययन पेपर 1 भूगोल

    उत्तर :

    हल करने का दृष्टिकोण:

    • हिंदूकुश हिमालय का वर्णन करते हुए उत्तर का परिचय लिखिये।
    • वॉटर टावर ऑफ एशिया के रूप में हिमालय की भूमिका बताइये।
    • क्षेत्रीय जलवायु और जैवविविधता पर हिमालय के प्रभाव का उल्लेख कीजिये।
    • तद्नुसार निष्कर्ष लिखिये।

    परिचय:

    हिमालय या विशेष रूप से हिंदूकुश हिमालय को प्रायः 'वॉटर टावर ऑफ एशिया' कहा जाता है, जो भारतीय उपमहाद्वीप की क्षेत्रीय जलवायु और जैवविविधता को आकार देने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है क्योंकि यह आर्कटिक तथा अंटार्कटिका के बाहर हिम एवं बर्फ की पाई जाने वाली सबसे बड़ी मात्रा में से एक है।

    मुख्य भाग:

    वॉटर टावर ऑफ एशिया के रूप में हिमालय की भूमिका:

    • हिमनद जलाशय और स्राव: आर्कटिक और अंटार्कटिका की ध्रुवीय हिम से पृथक हिमालय में ग्लेशियरों की सबसे बड़ी सघनता है।
      • ये ग्लेशियर विशाल प्राकृतिक जलाशयों के रूप में कार्य करते हैं, जो सर्दियों की बर्फबारी (जैसे- गंगोत्री ग्लेशियर) को संग्रहित करते हैं और शुष्क ग्रीष्मकाल के दौरान पिघलते हैं, जिससे सिंधु, गंगा एवं ब्रह्मपुत्र जैसी प्रमुख नदियों को जल मिलता है।
      • यह भारतीय उपमहाद्वीप में लाखों लोगों के लिये मीठे जल का एक महत्त्वपूर्ण और सतत् स्रोत प्रदान करता है।
    • विविध पारिस्थितिकी प्रणालियों का समर्थन: हिमालय द्वारा पोषित बारहमासी नदियाँ पारिस्थितिकी प्रणालियों के एक विशाल संजाल (Network) का निर्माण करती हैं।
      • ये नदियाँ उपजाऊ मैदानों (जैसे- सिंधु-गंगा के मैदान) और आर्द्रभूमि (जैसे- सुंदरबन के मैंग्रोव वन) के लिये जीवन रेखा के रूप में कार्य करती हैं।
      • यह संपूर्ण उपमहाद्वीप में वनस्पतियों और जीवों की एक समृद्ध टेपेस्ट्री (Tapestry Of Flora and Fauna) का समर्थन करता है।

    क्षेत्रीय जलवायु और जैवविविधता पर हिमालय का प्रभाव:

    • क्षेत्रीय जलवायु पर प्रभाव:
      • तापमान में कमी: हिमालय, मध्य एशिया से आने वाली शीतल पवनों से भारतीय गंगा के मैदानों की रक्षा करता है, ताकि भारतीय उपमहाद्वीप में अत्यधिक शीतल तापमान को रोका जा सकता है।
        • इसके विपरीत हिमालय के निचले क्षेत्र में स्थित तिब्बती पठार, वर्षा छाया प्रभाव के कारण बहुत अधिक कठोर और शुष्क जलवायु का अनुभव करता है।
      • मानसून निर्माण: हिमालय भारतीय मानसून प्रणाली के निर्माण में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है।
        • यह आर्द्रता युक्त पवनों को आगे बढ़ने में मदद करता हैं, जिससे उपमहाद्वीप के दक्षिणी ढालों पर संघनन और भारी वर्षा होती है।
        • यह मौसमी परिघटना, कृषि के लिये वर्षा हेतु महत्त्वपूर्ण है और पारिस्थितिकी तंत्र को बनाए रखती है।
        • पश्चिमी विक्षोभ के हिमालय के साथ संपर्क से उत्तरी भारत, पाकिस्तान और अफगानिस्तान के कुछ भागों में वर्षा पैटर्न प्रभावित होते हैं।
      • स्थानीयकृत मौसमी परिघटना: हिमालय की जटिल स्थलाकृति, इसकी गहरी घाटियाँ स्थानीयकृत मौसमी परिघटनाओं का निर्माण करती है, जिसमें घाटी की पवनें (Valley Wind), पर्वतीय पवनें और फोह्न पवनें शामिल हैं।
        • असम में ब्रह्मपुत्र घाटी और कश्मीर घाटी में आस-पास की हिमालय शृंखलाओं के प्रभाव के कारण अलग-अलग सूक्ष्म जलवायु परिस्थितियों का अनुभव होता है।
    • जैवविविधता पर प्रभाव: Impact on Biodiversity:
      • ऊँचाई वाले क्षेत्र: हिमालय उष्णकटिबंधीय (उदाहरण के लिये, तराई क्षेत्र) से लेकर अल्पाइन (उदाहरण के लिये, लद्दाख) तक ऊँचाई वाले क्षेत्रों की एक विस्तृत शृंखला प्रदर्शित करता है, जो विविध पारिस्थितिक तंत्र और प्रजातियों का समर्थन करता है।
        • नेपाल और सिक्किम की मध्य पर्वतीय क्षेत्रों में रोडोडेंड्रोन वन, कश्मीर में गुलमर्ग की अल्पाइन घास के मैदान एवं लद्दाख के शीत रेगिस्तान विभिन्न ऊँचाइयों पर पाए जाने वाले अद्वितीय आवासों के उदाहरण हैं।
      • स्थानिक प्रजातियाँ: हिमालय कई स्थानिक प्रजातियों का घर है, जैसे- हिमालयन तहर, गोल्डन लंगूर और पिग्मी हॉग।
      • प्रवासी मार्ग: हिमालय डेमोइसेल क्रेन जैसी प्रजातियों के लिये एक महत्त्वपूर्ण प्रवासी गलियारे के रूप में कार्य करता है।
        • कंचनजंगा बायोस्फीयर रिज़र्व प्रवासी जल पक्षियों के लिये एक महत्त्वपूर्ण स्थान है।

    निष्कर्ष:

    हिमालय केवल एक शानदार पर्वत शृंखला नहीं है, बल्कि यह भारतीय उपमहाद्वीप की जीवनधारा है, जो एशिया के प्राथमिक जल स्रोत, जलवायु नियामक और अद्वितीय जैवविविधता के केंद्र के रूप में कार्य करता है। इस प्रतिष्ठित प्राकृतिक संपत्ति का संरक्षण न केवल इसकी सुंदरता के लिये बल्कि संपूर्ण क्षेत्र के सतत् विकास और लचीलापन सुनिश्चित करने के लिये भी आवश्यक है।