• प्रश्न :

    प्रभावी नेतृत्व में भावनात्मक बुद्धिमत्ता की भूमिका पर चर्चा कीजिये। समाज में भावनात्मक बुद्धिमत्ता का विकास और पोषण किस प्रकार किया जा सकता है? (250 शब्द)

    18 Apr, 2024 सामान्य अध्ययन पेपर 4 सैद्धांतिक प्रश्न

    उत्तर :

    हल करने का दृष्टिकोण:

    • भावनात्मक बुद्धिमत्ता का परिचय देते हुए उत्तर की शुरुआत कीजिये।
    • प्रभावी नेतृत्व में भावनात्मक बुद्धिमत्ता की भूमिका पर चर्चा कीजिये।
    • विश्लेषण कीजिये कि व्यक्तियों में भावनात्मक बुद्धिमत्ता कैसे विकसित और पोषित की जा सकती है।
    • उचित निष्कर्ष लिखिये।

    परिचय:

    भावनात्मक बुद्धिमत्ता (EI) (जिसे अक्सर इमोशनल कोशेंट (EQ) के रूप में जाना जाता है) स्वयं और दूसरों में भावनाओं को प्रभावी ढंग से देखने, समझने, प्रबंधित करने एवं व्यक्त करने की क्षमता है। इसमें कौशल का एक समूह शामिल है जो व्यक्तियों को सामाजिक जटिलताओं से निपटने, अपनी भावनाओं को प्रबंधित करने, दूसरों के साथ समानुभूति रखने तथा विचारशील निर्णय लेने में सक्षम बनाता है।

    मुख्य भाग :

    नेतृत्व में भावनात्मक बुद्धिमत्ता का महत्त्व:

    • बेहतर पारस्परिक संबंध: उच्च EI वाले नेतृत्वकर्त्ता अपनी टीम के सदस्यों के साथ समानुभूति रख सकते हैं, जिससे टीम के भीतर मज़बूत संबंध, विश्वास और सहयोग स्थापित होता है।
    • प्रभावी संचार: EI, नेतृत्वकर्त्ताओं को उनके संदेशों की भावनात्मक सूक्ष्मताओं को समझने के साथ उनके प्रेषण को समायोजित करके प्रभावी ढंग से संवाद करने में सक्षम बनाता है, जिससे स्पष्ट एवं प्रभावशाली संचार होता है।
    • संघर्ष समाधान: उच्च EI वाले नेतृत्वकर्त्ता परस्पर विरोधी पक्षों के साथ समानुभूति रखकर, अंतर्निहित भावनाओं को समझकर एवं प्रभावी संचार तथा बातचीत के माध्यम से समाधान की सुविधा प्रदान करके रचनात्मक रूप से संघर्षों का प्रबंधन कर सकते हैं।
    • निर्णय लेने की क्षमता: भावनात्मक बुद्धिमत्ता नेतृत्वकर्त्ताओं को न केवल तर्कसंगत कारकों बल्कि उनकी पसंद के भावनात्मक प्रभावों और परिणामों पर भी विचार करके अच्छी तरह से संतुलित निर्णय लेने की क्षमता से लैस करती है।
      • भावनात्मक बुद्धिमत्ता पर डैनियल गोलेमैन के मौलिक कार्य ने नेतृत्व प्रभावशीलता में इसके महत्त्व पर प्रकाश डाला है।
    • अनुकूलन और तनाव प्रबंधन: उच्च EI वाले नेतृत्वकर्त्ता चुनौतीपूर्ण समय के दौरान तनाव एवं असफलताओं का अधिक प्रभावी ढंग से सामना करने के साथ संयम बनाए रख सकते हैं तथा अपनी टीमों को स्थिरता प्रदान कर सकते हैं।
      • गूगल ने पाया कि उसके सर्वोत्तम प्रदर्शन करने वाले प्रबंधकों में EI का उच्च स्तर था, जिससे उन्हें अपने प्रबंधन विकास कार्यक्रमों में प्रशिक्षण को शामिल करने के लिये प्रेरणा मिली।

    भावनात्मक बुद्धिमत्ता का विकास और पोषण:

    • आत्म-जागरूकता: नेतृत्वकर्त्ताओं को भावनाओं, शक्तियों, कमज़ोरियों एवं चुनौतियों को समझने के लिये आत्म-चिंतन तथा आत्मनिरीक्षण में संलग्न होने के लिये प्रोत्साहित करना चाहिये। मेडिटेशन जैसे अभ्यास से आत्म-जागरूकता को बढ़ावा मिल सकता है।
    • आत्म-नियमन: नेतृत्वकर्त्ताओं को अपनी भावनाओं को प्रभावी ढंग से प्रबंधित करने में मदद करने के लिये तनाव प्रबंधन तकनीकों, आवेग नियंत्रण तथा गहरी साँस लेने के व्यायाम के साथ संज्ञानात्मक रीफ्रेमिंग जैसी भावनात्मक विनियमन रणनीतियों हेतु प्रशिक्षण प्रदान करना आवश्यक है।
    • समानुभूति: विभिन्न दृष्टिकोणों, सक्रिय श्रवण तथा समानुभूति को बढ़ावा देने के माध्यम से नेतृत्वकर्त्ताओं को दूसरों की भावनाओं को समझने तथा उन्हें मान्यता देने की प्रेरणा मिलती है।
      • दक्षिण अफ्रीका में रंगभेद से लोकतंत्र की ओर संक्रमण के दौरान मंडेला का असाधारण नेतृत्व प्रतिकूल परिस्थितियों में मेल-मिलाप, समानुभूति तथा अनुकूलन को बढ़ावा देने में भावनात्मक बुद्धिमत्ता की शक्ति का परिचायक है।
    • सामाजिक कौशल: नेटवर्किंग, टीम वर्क और मेंटरशिप के साथ-साथ प्रभावी संचार, संघर्ष समाधान तथा विमर्श तकनीकों में प्रशिक्षण के अवसर प्रदान करने के क्रम में नेतृत्वकर्त्ताओं के सामाजिक कौशल का विकास करना आवश्यक है।
      • अपनी प्रसिद्ध तकनीकी प्रतिभा के बावजूद, एप्पल में स्टीव जॉब्स के नेतृत्व की सफलता का श्रेय कुछ हद तक उनकी उच्च भावनात्मक बुद्धिमत्ता (विशेष रूप से अपने जुनून एवं दूरदर्शिता के माध्यम से अपनी टीम को प्रेरित करने की उनकी क्षमता) दिया जा सकता है।
    • निरंतर सीखने की प्रक्रिया एवं प्रतिक्रिया: निरंतर सीखने की प्रक्रिया और प्रतिक्रिया की संस्कृति को प्रोत्साहित करना आवश्यक है जिससे नेतृत्वकर्त्ताओं को उनकी भावनात्मक बुद्धिमत्ता दक्षताओं पर रचनात्मक प्रतिक्रिया प्राप्त हो सके।

    निष्कर्ष:

    भावनात्मक बुद्धिमत्ता की प्रभावी नेतृत्व में बहुआयामी भूमिका है। इससे पारस्परिक संबंध, संचार, निर्णय लेने की क्षमता, संघर्ष समाधान तथा अनुकूलन क्षमता पर प्रभाव पड़ता है। आत्म-जागरूकता, आत्म-नियमन, समानुभूति, सामाजिक कौशल तथा निरंतर सीखने के माध्यम से व्यक्तियों में भावनात्मक बुद्धिमत्ता का पोषण करके, वर्तमान के जटिल और गतिशील विश्व में सकारात्मक दृष्टिकोण वाले नेतृत्वकर्त्ताओं की एक नई पीढ़ी का विकास हो सकता है।