• प्रश्न :

    भारत के अंतरिक्ष अन्वेषण प्रयासों में GSLV प्रौद्योगिकी के महत्त्व की जाँच कीजिये। उपग्रह प्रक्षेपण के लिये GSLV प्रौद्योगिकी के विकास और कार्यान्वयन के दौरान आने वाली बाधाओं का मूल्यांकन कीजिये। (150 शब्द)

    02 Feb, 2024 सामान्य अध्ययन पेपर 3 विज्ञान-प्रौद्योगिकी

    उत्तर :

    हल करने का दृष्टिकोण:

    • जियोसिंक्रोनस सैटेलाइट लॉन्च व्हीकल (GSLV) के बारे में बताते हुए उत्तर की शुरुआत कीजिये।
    • भारत के अंतरिक्ष अन्वेषण प्रयासों में GSLV प्रौद्योगिकी के महत्त्व का वर्णन कीजिये।
    • GSLV प्रौद्योगिकी के विकास एवं कार्यान्वयन के क्रम में आने वाली बाधाओं का मूल्यांकन कीजिये।
    • उचित निष्कर्ष लिखिये।

    परिचय:

    जियोसिंक्रोनस सैटेलाइट लॉन्च व्हीकल (GSLV) तकनीक से भारत के अंतरिक्ष अन्वेषण प्रयासों को काफी बढ़ावा मिला है। GSLV द्वारा उपग्रहों को जियोसिंक्रोनस एवं जियोस्टेशनरी कक्षाओं में प्रक्षेपित करने के साथ संचार, मौसम पूर्वानुमान तथा निगरानी क्षमताओं को बढ़ाने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई जाती है।

    मुख्य भाग:

    GSLV प्रौद्योगिकी का महत्त्व:

    • संचार और प्रसारण को बढ़ावा:
      • GSLV संचार उपग्रहों के प्रक्षेपण को सक्षम बनाता है, जिससे भारत एवं पड़ोसी क्षेत्रों में बेहतर दूरसंचार, प्रसारण तथा इंटरनेट सेवाओं की सुविधा मिलती है।
      • उदाहरण के लिये, GSLV-F08 द्वारा लॉन्च किया गया GSAT-6A मल्टी-बीम कवरेज के माध्यम से मोबाइल संचार सेवाएँ प्रदान करता है।
    • मौसम पूर्वानुमान और पृथ्वी अवलोकन:
      • GSLV द्वारा मौसम संबंधी एवं पृथ्वी अवलोकन उपग्रहों को प्रक्षेपित किया जाता है, जिससे मौसम की भविष्यवाणी की सटीकता बढ़ने के साथ बेहतर आपदा प्रबंधन संभव होता है।
      • GSLV-F05 द्वारा प्रक्षेपित किया गया INSAT-3DR, मौसम की निगरानी के लिये उच्च-रिज़ॉल्यूशन छवियाँ प्रदान करता है।
    • सामरिक और रक्षा अनुप्रयोग:
      • GSLV टोही एवं निगरानी उपग्रहों को प्रक्षेपित करने के साथ स्थितिजन्य जागरूकता और सीमा निगरानी को बढ़ाकर राष्ट्रीय सुरक्षा में योगदान देता है।
      • उदाहरण के लिये, RISAT शृंखला के उपग्रह पृथ्वी अवलोकन उपग्रह हैं, जिनमें सिंथेटिक एपर्चर रडार उपग्रह RISAT-1 और RISAT-2 शामिल हैं।
    • वैश्विक मान्यता और वाणिज्यिक प्रक्षेपण सेवाएँ:
      • सफल GSLV मिशनों ने वाणिज्यिक उपग्रह प्रक्षेपण के क्षेत्र में वैश्विक अंतरिक्ष समुदाय के बीच भारत को लोकप्रिय बनाया है।
      • GSLV-F11 ने अंतरिक्ष प्रौद्योगिकी में भारत की आत्मनिर्भरता को प्रदर्शित करते हुए भारतीय वायु सेना के लिये एक सैन्य संचार उपग्रह GSAT-7A का प्रक्षेपण किया।

    विकास एवं कार्यान्वयन में बाधाएँ:

    • तकनीकी चुनौतियाँ:
      • GSLV के लिये क्रायोजेनिक अपर स्टेज विकसित करने में क्रायोजेनिक प्रणोदक एवं इंजन डिज़ाइन की जटिलता के कारण तकनीकी बाधाएँ उत्पन्न हुई हैं।
      • GSLV-D1 और D3 जैसे भारत के शुरुआती प्रयासों में क्रायोजेनिक चरण से संबंधित चुनौतियों के कारण विफलताओं का सामना करना पड़ा है।
    • अंतर्राष्ट्रीय प्रतिबंध एवं प्रौद्योगिकी अपनाने में निष्क्रियता:
      • अतीत में भारत द्वारा प्रौद्योगिकी अपनाने में निष्क्रियता के कारण क्रायोजेनिक प्रौद्योगिकी प्राप्त करने के क्रम में चुनौतियों का सामना करना पड़ा है, जिससे GSLV के विकास में देरी हुई है।
      • क्रायोजेनिक प्रौद्योगिकी हस्तांतरण के लिये रूस के साथ वर्ष 1992 के समझौते में भू-राजनीतिक बाधाओं का सामना करना पड़ा।
    • बजटीय बाधाएँ और लागत में वृद्धि:
      • GSLV के विकास में काफी लागत आने के कारण बजटीय बाधाओं के साथ इसके क्रियान्वयन में देरी हुई।
      • GSLV Mk III के विकास में लागत वृद्धि के कारण जटिलताओं का सामना करना पड़ा।
    • परिचालन चुनौतियाँ और विश्वसनीयता:
      • उपग्रह पेलोड की जटिलता के कारण GSLV मिशनों की सावधानीपूर्वक योजना बनाने और निष्पादन की आवश्यकता होती है।
      • स्ट्रैप-ऑन मोटर विसंगति के कारण GSLV-F02 की विफलता ने इस मिशन की सफलता एवं विश्वसनीयता सुनिश्चित करने के क्रम में चुनौतियों को उजागर किया।

    शमन रणनीतियाँ और भविष्य की संभावनाएँ:

    • स्वदेशी तकनीकी प्रगति:
      • भारत ने स्वदेशी क्रायोजेनिक तकनीक विकसित करने में महत्त्वपूर्ण प्रगति की है, जिसका उदाहरण सफल GSLV Mk II और Mk III मिशन हैं।
      • प्रौद्योगिकी के स्वदेशीकरण पर निरंतर ध्यान से अंतरिक्ष अन्वेषण में आत्मनिर्भरता को बढ़ावा मिलता है।
    • अंतर्राष्ट्रीय सहयोग एवं समझौते:
      • रूस, फ्राँस और संयुक्त राज्य अमेरिका जैसे देशों के साथ सहयोग ने प्रौद्योगिकी हस्तांतरण एवं उन्नत विशेषज्ञता तक पहुँच की सुविधा प्रदान करने के साथ तकनीकी चुनौतियों को कम किया है तथा GSLV क्षमताओं को बढ़ाया है।
    • उन्नत गुणवत्ता नियंत्रण और विश्वसनीयता:
      • ISRO ने कड़े गुणवत्ता नियंत्रण उपायों एवं विश्वसनीयता बढ़ाने की रणनीतियों को लागू किया है, जिसके परिणामस्वरूप GSLV-F08/GSAT-6A और GSLV-F11/GSAT-7A जैसे सफल GSLV मिशन सामने आए हैं।
    • लागत अनुकूलन एवं व्यावसायीकरण:
      • उपग्रह प्रक्षेपण के लिये ISRO के लागत प्रभावी दृष्टिकोण एवं प्रतिस्पर्द्धी मूल्य निर्धारण ने GSLV को अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर व्यवहार्य वाणिज्यिक विकल्प बना दिया है, जिससे भारत की अंतरिक्ष कूटनीति के साथ राजस्व सृजन को बढ़ावा मिला है।

    निष्कर्ष:

    GSLV तकनीक भारत की अंतरिक्ष अन्वेषण क्षमता के प्रमाण के रूप में स्थापित है, जो संचार, मौसम पूर्वानुमान और रणनीतिक उद्देश्यों के लिये महत्त्वपूर्ण उपग्रह प्रक्षेपण को सक्षम बनाती है। प्रारंभिक बाधाओं के बावजूद, भारत ने अंतरिक्ष विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी में अपनी क्षमताओं का प्रदर्शन करते हुए GSLV तकनीक को सफलतापूर्वक विकसित एवं कार्यान्वित किया है।