भारत के संदर्भ में शीतकालीन धुँध (स्मॉग) की उत्पत्ति और विशेषताओं की व्याख्या कीजिये। भारतीय महानगरीय क्षेत्रों में शीतकालीन धुँध को कम और नियंत्रित करने के लिये आप क्या रणनीतियाँ सुझाएंगे? (250 शब्द)
                  
                      उत्तर :
                      
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 हल करने का दृष्टिकोण 
- शीतकालीन धुँध (स्मॉग) का संक्षिप्त में परिचय देकर अपने उत्तर की शुरूआत कीजिये।
 
- शीतकालीन स्मॉग की उत्पत्ति और विशेषताओं पर चर्चा कीजिये।
 
- शीतकालीन स्मॉग को कम और नियंत्रित करने के लिये रणनीतियों का सुझाव दीजिये।
 
- उचित निष्कर्ष लिखिये।
 
 
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परिचय
शीतकालीन स्मॉग एक मौसमी वायु प्रदूषण घटना है, जिसका निर्माण निम्न वायुमंडल में प्रदूषकों के कारण होता है, जिसके परिणामस्वरूप सर्दियों के महीनों के दौरान कोहरा देखने को मिलता है। भारतीय चिकित्सा अनुसंधान परिषद के एक अध्ययन के अनुसार वर्ष 2019 में भारत में 1.67 मिलियन मौतों के लिये स्मॉग जैसा गंभीर वायु प्रदूषण ज़िम्मेदार था।
मुख्य भाग :
शीतकालीन स्मॉग मुख्य रूप से निम्नलिखित कारकों द्वारा निर्मित होता है:
- मौसम की स्थिति: सर्दियों के दौरान मौसम संबंधी स्थितियाँ तापमान व्युत्क्रमण जैसी स्थिति पैदा करती हैं, जहाँ गर्म हवा की एक परत ठंडी हवा को ज़मीन के पास रोक लेती है। यह प्रदूषकों के फैलाव को रोकती है, जिससे स्मॉग जमा होता है।
 
- प्रदूषण स्रोत: शीतकालीन स्मॉग के प्रमुख स्रोतों में वाहन उत्सर्जन, औद्योगिक उत्सर्जन, खाना पकाने हेतु उपयोग में लाया गया ठोस ईंधन शामिल हैं। ये सूक्ष्म कण पदार्थ (PM2.5), नाइट्रोजन ऑक्साइड (NOx), और वाष्पशील कार्बनिक यौगिक (VOCs) जैसे प्रदूषकों को वायुमंडल में उत्सर्जित करते हैं।
 
- पराली दहन: महानगरीय क्षेत्रों के आसपास के कृषि क्षेत्र अक्सर फसल के बाद के मौसम (NCR क्षेत्र में पराली दहन) के दौरान फसल अवशेष जलाते हैं, जो धुंध/स्मॉग की समस्या में महत्त्वपूर्ण योगदान देते हैं।
 
भारत में शीतकालीन स्मॉग की विशेषताओं में शामिल हैं:
- दृश्यता में कमी: शीतकालीन स्मॉग दृश्यता को कम कर देता है, जिससे ड्राइविंग के दौरान संभावित दुर्घटनाएँ होती हैं।
 
- श्वसन संबंधी स्वास्थ्य समस्याएँ: यह विशेष रूप से श्वसन संबंधी समस्याओं वाले व्यक्तियों के लिये महत्त्वपूर्ण स्वास्थ्य जोखिम उत्पन्न करता है। सूक्ष्म कण फेफड़ों में प्रवेश कर कर श्वसन संबंधी बीमारियों का कारण बन सकते हैं।
 
- पर्यावरणीय प्रभाव: स्मॉग फसलों, जंगलों और जलीय पारिस्थितिक तंत्र को नुकसान पहुँचाकर पर्यावरण को नुकसान पहुँचा सकते है। यह वैश्विक जलवायु परिवर्तन के कारक भी हो सकते है।
 
भारतीय महानगरीय क्षेत्रों में शीतकालीन स्मॉग को कम करने एवं नियंत्रित करने की रणनीतियाँ:
- सार्वजनिक परिवहन के उपयोग को प्रोत्साहित करना: व्यस्त समय के दौरान निजी वाहनों के लिये भीड़भाड़ शुल्क लागू करना यातायात की भीड़ को कम करने और सार्वजनिक परिवहन या कारपूलिंग के उपयोग को प्रोत्साहित करने का एक प्रभावी तरीका है।
 
- प्रदूषण नियंत्रण के लिये ड्रोन: प्रदूषण के हॉटस्पॉट की पहचान करने और उसके विस्तार को नियंत्रित करने हेतु ड्रोन का उपयोग वायु गुणवत्ता के प्रबंधन के लिये एक सक्रिय दृष्टिकोण है।
 
- औद्योगिक उत्सर्जन के लिये कैप-एंड-ट्रेड: कैप-एंड-ट्रेड प्रणाली औद्योगिक उत्सर्जन पर एक सीमा निर्धारित करती है और प्रदूषण को कम करने के लिये बाज़ार-संचालित दृष्टिकोण को बढ़ावा देती है।
 
- वर्टिकल गार्डन: वर्टिकल गार्डन शहरी क्षेत्रों के लिये सौंदर्य की दृष्टि से आकर्षक का केंद्र और पर्यावरण की दृष्टि से लाभकारी है।
 
- फसल अवशेष प्रबंधन: फसल अवशेष को जलाने (पराली दहन) के स्थायी विकल्पों को लागू करना और बढ़ावा देना।
 
- वायु गुणवत्ता निगरानी: बेहतर निर्णय लेने और नियंत्रण उपायों के समय पर कार्यान्वयन के लिये वास्तविक समय से संबंधित आँकड़ें प्रदान करने के लिये वायु गुणवत्ता निगरानी प्रणाली को बढ़ाएँ।
 
- निम्न-कार्बन वाली जीवन शैली के लिये पुरस्कार: सार्वजनिक परिवहन या कारपूलिंग जैसे पर्यावरण-अनुकूल व्यवहारों के लिये अंक या वाउचर या कर लाभ जैसे प्रोत्साहन प्रदान करने से लोगों को पर्यावरण के प्रति जागरूक विकल्प चुनने की अधिक संभावना होती है, जिससे उनके कार्बन फुटप्रिंट को कम किया जा सकता है।
 
निष्कर्ष:
भारतीय महानगरीय क्षेत्रों में शीतकालीन स्मॉग को नियंत्रित करना एक जटिल और बहुआयामी चुनौती है। प्रभावी समाधानों के लिये नियामक उपायों, तकनीकी प्रगति, सार्वजनिक जागरूकता और सरकारों, उद्योगों एवं समुदायों के बीच सहयोगात्मक प्रयासों के संयोजन की आवश्यकता होती है।