• प्रश्न :

    पुलिस कदाचार और क्रूरता के नैतिक आयामों का मूल्यांकन कीजिये। कानून प्रवर्तन एजेंसियों में अधिक जवाबदेहिता और नैतिक व्यवहार सुनिश्चित करने के लिये किन सुधारों की आवश्यकता है? (150 शब्द)

    14 Sep, 2023 सामान्य अध्ययन पेपर 4 सैद्धांतिक प्रश्न

    उत्तर :

    हल करने का दृष्टिकोण:

    • पुलिस कदाचार और क्रूरता के मुद्दे का संदर्भ बताते हुए अपने उत्तर की शुरुआत कीजिये।
    • पुलिस कदाचार एवं क्रूरता से जुड़े प्रमुख नैतिक आयामों पर चर्चा कीजिये।
    • आगे की राह बताते हुए निष्कर्ष लिखिये।

    परिचय:

    पुलिस कदाचार और क्रूरता ऐसे गंभीर नैतिक मुद्दे हैं जिनसे कानून प्रवर्तन एजेंसियों में लोगों के विश्वास में कमी आती है। पुलिस कदाचार का तात्पर्य पुलिस अधिकारियों द्वारा किसी भी अवैध या अनैतिक व्यवहार से है, जिसमें भ्रष्टाचार, सत्ता का दुरुपयोग, सबूतों को गलत तरीके से प्रस्तुत करना आदि शामिल हैं। पुलिस क्रूरता से तात्पर्य पुलिस अधिकारियों द्वारा अत्यधिक या अनावश्यक बल के प्रयोग से है जिसमें यातना, हिरासत में मौत, मुठभेड़ एवं हत्याएँ आदि शामिल हैं।

    मुख्य भाग:

    पुलिस के कदाचार और क्रूरता के नैतिक आयामों का मूल्यांकन विभिन्न दृष्टिकोणों से किया जा सकता है, जैसे:

    • मानवाधिकार: पुलिस के दुर्व्यवहार और क्रूरता से नागरिकों के मौलिक अधिकारों जैसे जीवन, स्वतंत्रता, गरिमा, समानता एवं न्याय के अधिकार का उल्लंघन होता है। ये अंतर्राष्ट्रीय मानवाधिकार मानदंडों जैसे UDHR, ICCPR, अत्याचार के खिलाफ कन्वेंशन आदि का भी उल्लंघन हैं।
    • विधि का शासन: इससे विधि का शासन कमज़ोर होता है, जो एक लोकतांत्रिक समाज का आधार है। इसके साथ ही इससे कानून प्रवर्तन एजेंसियों की वैधता और विश्वसनीयता भी कमज़ोर होती है। इससे अराजकता की संस्कृति को भी बढ़ावा मिलता है।
    • व्यावसायिकता: पुलिस कदाचार और क्रूरता से पुलिस बल की व्यावसायिकता, अखंडता और मनोबल कमज़ोर होता है। इससे प्रशिक्षण, अनुशासन, पर्यवेक्षण एवं नेतृत्व जैसे गुण नकारात्मक रूप से प्रभावित होते हैं।
    • सामाजिक सद्भाव: पुलिस कदाचार एवं क्रूरता से लोगों (विशेषकर हाशिये पर रहने वाले और कमज़ोर लोगों) के बीच नाराजगी, भय, क्रोध एवं अविश्वास पैदा होने से सामाजिक सद्भाव और एकजुटता को नुकसान पहुँचता हैं। इससे सामाजिक संघर्षों, हिंसा और उग्रवाद को बढ़ावा मिलने से राष्ट्रीय शांति एवं स्थिरता को खतरा उत्पन्न होता है।

    कानून प्रवर्तन एजेंसियों के अंदर अधिक जवाबदेही एवं नैतिक व्यवहार सुनिश्चित करने के लिये निम्नलिखित सुधारों की आवश्यकता है:

    • कानूनी सुधार: पुलिस बल को नियंत्रित करने वाले मौजूदा कानूनों और विनियमों को संशोधित एवं अद्यतित करने की आवश्यकता है। पुलिस अधिनियम,1861 (जो औपनिवेशिक शासकों द्वारा लागू किया गया था) को एक नए कानून द्वारा प्रतिस्थापित करने की आवश्यकता है जो संवैधानिक मूल्यों एवं सिद्धांतों के अनुरूप हो।
      • राष्ट्रीय पुलिस आयोग, रिबेरो समिति, पद्मनाभैया समिति, मलिमथ समिति, प्रकाश सिंह मामला आदि जैसे विभिन्न आयोगों और समितियों की सिफारिशों को लागू करने की आवश्यकता है।
    • संस्थागत सुधार: पुलिस बल की जवाबदेही और निगरानी सुनिश्चित करने के लिये संस्थागत तंत्रों एवं प्रक्रियाओं को मज़बूत तथा सुव्यवस्थित करने की आवश्यकता है।
      • पुलिस अधिकारियों के लिये परिचालन स्वायत्तता एवं कार्यकाल की सुरक्षा सुनिश्चित करके पुलिस की कार्यप्रणाली में राजनीतिक हस्तक्षेप को कम करने की आवश्यकता है।
      • आंतरिक जवाबदेही तंत्र जैसे शिकायत प्राधिकरण एवं सतर्कता विभाग को अधिक प्रभावी और पारदर्शी बनाने की आवश्यकता है।
      • न्यायपालिका, विधायिका, मानवाधिकार आयोग, नागरिक समाज, मीडिया आदि जैसे बाहरी जवाबदेही तंत्र को अधिक सुलभ एवं उत्तरदायी बनाने की आवश्यकता है।
    • क्षमता निर्माण सुधार: पुलिस कर्मियों को व्यावसायिकता, ईमानदारी एवं मानवाधिकारों के प्रति सम्मान के साथ अपने कर्तव्यों का पालन करने के लिये आवश्यक कौशल, ज्ञान तथा दृष्टिकोण प्रदान करने की आवश्यकता है।
      • पुलिस को उभरती चुनौतियों एवं खतरों से निपटने में सक्षम बनाने के लिये बुनियादी ढाँचे और उपकरणों को उन्नत तथा आधुनिक बनाने की आवश्यकता है।
      • पर्याप्त पारिश्रमिक, प्रोत्साहन, सुविधाएँ तथा सहायता प्रदान करके पुलिस के कल्याण एवं इनकी भलाई को ध्यान में रखने की भी आवश्यकता है।
    • सामुदायिक पुलिसिंग सुधार: सामुदायिक पुलिसिंग पहल के माध्यम से पुलिस तथा समुदाय के बीच संबंधों और समन्वय को बढ़ावा देने एवं उनमें सुधार करने की आवश्यकता है।
      • पुलिस को लोगों के प्रति बलपूर्वक, टकरावपूर्ण और सत्तावादी दृष्टिकोण के बजाय अधिक सहभागी, सहयोगात्मक एवं सेवा-उन्मुख दृष्टिकोण के रूप में व्यवहार करने की आवश्यकता है।
      • पुलिस को अपराधों की रोकथाम, मूल्यांकन और समाधान के साथ-साथ कानून एवं व्यवस्था बनाए रखने में समुदाय को भी भागीदार बनाने की आवश्यकता है।
      • पुलिस को लोगों की विविधता, गरिमा एवं अधिकारों का सम्मान करना चाहिये तथा उनकी शिकायतों और चिंताओं का समाधान भी करना चाहिये।

    निष्कर्ष:

    पुलिस दुर्व्यवहार और क्रूरता ऐसे गंभीर नैतिक मुद्दे हैं जो देश के लोकतांत्रिक ढाँचे एवं सामाजिक सद्भाव के लिये गंभीर खतरा उत्पन्न करते हैं। कानून प्रवर्तन एजेंसियों को कानूनी, संस्थागत, क्षमता निर्माण और सामुदायिक पुलिसिंग जैसे विभिन्न पहलुओं में व्यापक एवं समग्र सुधारों को लागू करके उन्हें तत्परता तथा ईमानदारी से निभाने की आवश्यकता है। ऐसा करके ही पुलिस बल, लोगों का भरोसा हासिल करने के साथ नागरिकों के अधिकारों एवं स्वतंत्रता के रक्षक के रूप में अपनी भूमिका निभा सकता है।