• प्रश्न :

    भारत के कृषि क्षेत्र के सामने मुख्य चुनौतियाँ क्या हैं और इन चुनौतियों से निपटने के लिये कौन-सी नीतियाँ लागू की जा रही हैं?

    22 Mar, 2023 सामान्य अध्ययन पेपर 3 अर्थव्यवस्था

    उत्तर :

    हल करने का दृष्टिकोण

    • भारत में कृषि क्षेत्र की स्थिति का संक्षिप्त परिचय देते हुए अपना उत्तर प्रारंभ कीजिये।
    • इन चुनौतियों से निपटने के लिये विभिन्न नीतियों पर चर्चा कीजिये।
    • तद्नुसार निष्कर्ष निकालिये।

    परिचय

    • भारत एक कृषि प्रधान देश है, जहाँ की आधी से अधिक आबादी कृषि गतिविधियों में आशक्त होकर देश की जीडीपी (सकल घरेलू उत्पाद) में योगदान दे रही है। हालाँकि, भारतीय कृषि क्षेत्र को कई चुनौतियों का सामना भी करना पड़ रहा है, जो इसके वृद्धि और विकास को बाधित करता है।
      • यह क्षेत्र कम उत्पादकता, मृदा की घटती उर्वरता, जल की कमी, जलवायु परिवर्तन, खंडित भूमि जोत, प्रौद्योगिकी तथा बाज़ारों तक पहुँच की कमी जैसे मुद्दों से प्रभावित है।
      • इन चुनौतियों के परिणामस्वरूप निम्न उपज, न्यूनतम लाभप्रदता, एवं किसानों के लिये अपर्याप्त आय जैसी समस्याएँ उत्पन्न हुई हैं, जिससे किसानों के लिये संकट और उनका ग्रामीण क्षेत्रों से शहरी क्षेत्रों में पलायन शुरू हुआ है।

    मुख्य भाग

    • भारतीय कृषि क्षेत्र के सामने चुनौतियाँ:
      • मृदा की उर्वरता में गिरावट: भारत की कृषि, मृदा स्वास्थ्य पर निर्भर है और मृदा की उर्वरता में गिरावट इस क्षेत्र के सम्मुख एक बड़ी चुनौती है।
        • रासायनिक उर्वरकों, कीटनाशकों और शाकनाशियों/तृणमारकों के अत्यधिक उपयोग ने मिट्टी की गुणवत्ता को कम कर दिया है, जिससे इसकी उर्वरता तथा उत्पादकता दोनों कम हो गई हैं।
        • इसके परिणामस्वरूप फसल की न्यूनतम पैदावार और मृदा स्वास्थ्य का खराब होना है, जो कृषि के सतत् विकास के लिये एक महत्वपूर्ण चुनौती बनकर उभरा है।
      • जल की कमी: भारत एक जल-तनावग्रस्त(वाटर स्ट्रेस) देश है, जहाँ विश्व के मीठे जल के स्रोतों का केवल 4% एवं विश्व की समस्त आबादी का 16% भाग है।
        • यहाँ का कृषि क्षेत्र सबसे बड़ा जलीय उपभोक्ता है, जिसके अंतर्गत सम्पूर्ण जल के खपत का लगभग 80% भाग आता है।
          • हालाँकि, अत्यधिक दोहन, खराब प्रबंधन और जलवायु परिवर्तन के कारण जल की उपलब्धता घट रही है, जिससे कई क्षेत्रों में जल की कमी और सूखे जैसी स्थिति पैदा हो गई है।
      • भारत में अधिकांश किसानों के पास भूमि के छोटे, सीमांत भूखंड विखंडित भूमि के साथ उपलब्ध हैं। जिसके परिणामस्वरूप कृषि गतिविधियाँ अक्षम हो जाती हैं, जो बड़े पैमाने की अर्थव्यवस्थाओं और उनके द्वारा मिलने वाले ऋण तक पहुँच को भी प्रतिबंधित करता है।
        • इसके अतिरिक्त, यह सिंचाई प्रणाली और समकालीन प्रौद्योगिकी के उपयोग को प्रतिबंधित करता है, जिसके परिणामस्वरूप खराब उत्पादकता और न्यूनतम पैदावार देखने को मिलती है।
      • न्यून उत्पादकता: भारत के कृषि क्षेत्र में न्यून उत्पादकता देखने को मिलती है, जिसकी पैदावार वैश्विक औसत की तुलना में बेहद कम है।
        • जिसका मुख्य कारण खराब कृषि पद्धतियाँ, प्रौद्योगिकी और सूचना तक अपर्याप्त पहुँच और बुनियादी ढाँचा है।
        • कृषि क्षेत्र में उत्पादकता का घटता स्तर, न्यून लाभप्रदता, किसानों की अपर्याप्त आय सीमित निवेश की ओर ले जाते हैं।
      • प्रौद्योगिकी और बाज़ारों तक पहुँच का अभाव: कृषि क्षेत्र की वृद्धि और विकास के लिये प्रौद्योगिकी और बाज़ारों तक किसानों की पहुँच होना बेहद महत्वपूर्ण है।
        • हालाँकि, भारतीय किसानों की आधुनिक तकनीक और बाज़ारों तक सीमित पहुँच है, जो उत्पादकता में सुधार,न्यूनतम लागत और लाभप्रदता बढ़ाने की क्षमता को सीमित करता है।
          • इसके अतिरिक्त, बुनियादी ढाँचे और बाज़ार से जुड़ाव में कमी के कारण किसानों की उच्च कीमतों को नियंत्रित करने में असमर्थता एक सम्मानजनक जीवन जीने की उनकी क्षमता को प्रतिबंधित करती है।
        • जलवायु परिवर्तन: यह फसल की पैदावार और उत्पादकता को प्रभावित करने वाले बदलते मौसमी प्रतिरूप के साथ भारतीय कृषि क्षेत्रों के लिये एक महत्वपूर्ण चुनौती है।
          • अत्यधिक मौसमी घटनाएँ, जैसे कि सूखा, बाढ़ और चक्रवात, खाद्य सुरक्षा एवं कृषि स्थिरता के लिये अधिकांशतः खतरा उत्पन्न करते हैं।
    • इन चुनौतियों से निपटने के लिये लागू की गई नीतियाँ :
      • सिंचाई में निवेश बढ़ाना: सरकार ने सिंचाई में निवेश बढ़ाने और जल प्रबंधन में सुधार हेतु कई कार्यक्रम शुरू किये हैं।
        • प्रधान मंत्री कृषि सिंचाई योजना (PMKSY) का उद्देश्य देश के सभी किसानों को सिंचाई सुविधा प्रदान करना है।
          • इसके अतिरिक्त, सरकार ने अटल भूजल योजना शुरू की है, जिसका उद्देश्य प्राथमिकता वाले क्षेत्रों के भूजल प्रबंधन में सुधार करना है।
          • इन पहलों का उद्देश्य कृषि हेतु जल की उपलब्धता बढ़ाना, जल के उपयोग की दक्षता में सुधार करना और जल की कमी को न्यूनतम करना है।
      • फसल विविधीकरण को बढ़ावा: सरकार जल संसाधनों और मृदा उर्वरता पर दबाव को कम करने हेतु फसल विविधीकरण को बढ़ावा दे रही है।
        • प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना (PMFBY) का उद्देश्य गैर-पारंपरिक फसल उगाने वाले किसानों को बीमा सुरक्षा तथा वित्तीय सहायता प्रदान करना है।
        • इसी प्रकार, राष्ट्रीय कृषि विकास योजना (RKVY) फसल विविधीकरण और स्थायी कृषि पद्धतियों को बढ़ावा देने हेतु सहायता प्रदान करती है।
      • बुनियादी ढाँचे में सुधार: सरकार सड़कों, भंडारण सुविधाओं सहित ग्रामीण बुनियादी ढाँचे में सुधार हेतु निवेश कर रही है।
        • प्रधानमंत्री ग्राम सड़क योजना (PMGSY) का उद्देश्य ग्रामीणों से सीधा संपर्क साधना और उनकी बाज़ारों तक पहुँच को बढ़ाना है।
        • इसी प्रकार, राष्ट्रीय कृषि बाज़ार (e-NAM) का उद्देश्य कृषि वस्तुओं के लिये एक राष्ट्रीय बाज़ार का निर्माण करना है, जिससे किसान अपनी उपज को बेहतर कीमतों पर बेच सकें।
      • सब्सिडी प्रदान करना: सरकार किसानों के लिये खेती की लागत को कम करने के उद्देश्य से बीज, उर्वरक और सिंचाई उपकरण जैसे उत्पादों हेतु सब्सिडी प्रदान करती है।
        • इसी प्रकार सरकार फसल बीमा हेतु सब्सिडी प्रदान करती है, जो फसलों के नुकसान की स्थिति में किसानों को वित्तीय सहायता प्रदान करती है।
      • प्रौद्योगिकी-आधारित समाधान: सरकार ने किसानों को आधुनिक तकनीक, सूचना एवं सलाहकार सेवाओं को उपलब्ध कराने के उद्देश्य से कई कार्यक्रम शुरू किये हैं।
        • प्रधानमंत्री किसान सम्मान निधि योजना (PM-KISAN) के तहत छोटे तथा सीमांत किसानों को वित्तीय सहायता दी जाती है, ताकि वे आधुनिक तकनीक में निवेश करने और उत्पादकता में सुधार करने में सक्षम हों।
          • इसी प्रकार, किसान क्रेडिट कार्ड (KCC) योजना का उद्देश्य किसानों को प्रौद्योगिकी एवं उससे सम्बंधित उत्पादों में निवेश करने हेतु वित्तपोषण तक पहुँच प्रदान करना है।

    निष्कर्ष:

    • भारत का कृषि क्षेत्र कई चुनौतियों का सामना कर रहा है, जो इसके वृद्धि एवं विकास को प्रभावित कर रहे हैं। हालाँकि, सरकार ने इन चुनौतियों का समाधान करने के उद्देश्य से कई नीतियों को लागू किया है।
      • इन नीतियों के माध्यम से कृषि क्षेत्र के प्रदर्शन को बढ़ाया जा सकता है, जिसके लिये उन नीतियों को सुनिश्चित करने हेतु कई चुनौतियों का समाधान खोजने की आवश्यकता है। जबकि भारत के कृषि क्षेत्र को स्थायी रूप से विकसित करने हेतु सरकार को सार्वजनिक तथा निजी क्षेत्रों के किसान के बीच सहयोग लेना आवश्यक है।