• प्रश्न :

    "हिमालय न केवल भारत की प्राकृतिक सीमाएँ बनाता है बल्कि यह भारत की नदियों के लिये जल का एक प्रमुख स्रोत भी है"। इस कथन के आलोक में भारत के लिये हिमालय क्षेत्र के महत्त्व तथा इस क्षेत्र के पर्यावरण और पारिस्थितिकी के संरक्षण से संबंधित चुनौतियों पर चर्चा कीजिये। (150 शब्द)

    20 Feb, 2023 सामान्य अध्ययन पेपर 1 भूगोल

    उत्तर :

    हल करने का दृष्टिकोण:

    • हिमालय क्षेत्र के महत्त्व पर संक्षेप में चर्चा करते हुए अपना उत्तर प्रारंभ कीजिये।
    • इसकी पारिस्थितिकी और पर्यावरण संरक्षण में आने वाली चुनौतियों पर चर्चा कीजिये और इस स्थिति को सुधारने के लिये कुछ उपाय सुझाइए।
    • तदनुसार निष्कर्ष दीजिये।

    परिचय:

    • भारत के लिये हिमालय क्षेत्र का महत्त्व:
      • हिमालय क्षेत्र का भारत के लिये काफी महत्त्व है क्योंकि इससे कई प्रकार के पारिस्थितिक, पर्यावरणीय और आर्थिक लाभ मिलते हैं। गंगा, ब्रह्मपुत्र और सिंधु सहित भारत की कई प्रमुख नदियों के लिये हिमालय जल का स्रोत है।
        • ये नदियाँ कृषि, उद्योगों और मानव बस्तियों के लिये जल उपलब्ध कराती हैं जिससे ये देश के लिये एक महत्त्वपूर्ण संसाधन बन जाती हैं। विश्व बैंक की एक रिपोर्ट के अनुसार भारत की लगभग 80% जल की जरूरतें गंगा और ब्रह्मपुत्र नदियों से पूरी होती हैं।
        • इसके अलावा यह नदियाँ कई जलीय जीवों का आवास भी हैं और इस क्षेत्र में रहने वाले लाखों लोगों को आजीविका प्रदान करती हैं।
          • ये प्रजातियाँ क्षेत्र के पारिस्थितिक संतुलन को बनाए रखने के लिये महत्त्वपूर्ण होने के साथ खाद्य श्रृंखला में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं।

    मुख्य भाग:

    • हिमालयी क्षेत्र के पारिस्थितिकी और पर्यावरण संरक्षण से संबंधित चुनौतियाँ:
      • जलवायु परिवर्तन: बढ़ते तापमान के कारण हिमालय के ग्लेशियर गंभीर दर से पिघल रहे हैं जिसके परिणामस्वरूप इस क्षेत्र की जल आपूर्ति में महत्त्वपूर्ण परिवर्तन हो सकते हैं।
        • इससे बाढ़ भूस्खलन और अन्य प्राकृतिक आपदाएँ आ सकती हैं जो स्थानीय समुदायों और पारिस्थितिक तंत्र को प्रभावित कर सकती हैं।
      • तीव्र शहरीकरण और औद्योगीकरण होना: इसके परिणामस्वरूप प्राकृतिक आवासों का विनाश, वनों की कटाई और मृदा क्षरण हुआ है। सड़कों, बाँधों और अन्य बुनियादी ढाँचा परियोजनाओं के निर्माण का भी इस क्षेत्र के पर्यावरण पर महत्त्वपूर्ण प्रभाव पड़ा है जिससे मृदा क्षरण, बाढ़ और अन्य पर्यावरणीय मुद्दे सामने आए हैं।
      • अस्थिर पर्यटन: हिमालयी क्षेत्र में हर साल लाखों पर्यटक ट्रेकिंग, पर्वतारोहण और स्कीइंग जैसी गतिविधियों में संलग्न होने के लिये आते हैं।
        • हालांकि पर्यटन के तेजी से विकास से वनों की कटाई, मृदा के कटाव और अपशिष्ट प्रबंधन की समस्याओं सहित कई पर्यावरणीय और पारिस्थितिक मुद्दों को जन्म मिला है।
        • इसके अलावा पर्यटन ने प्राकृतिक संसाधनों के दोहन और स्थानीय समुदायों के विस्थापन को भी बढ़ावा दिया है जिससे सामाजिक-आर्थिक और सांस्कृतिक मुद्दे सामने आए हैं।
      • जागरूकता और शिक्षा की कमी: हिमालयी क्षेत्र के पारिस्थितिकी और पर्यावरण के संरक्षण में यह एक महत्त्वपूर्ण चुनौती है। इस क्षेत्र में रहने वाले कई स्थानीय समुदाय प्राकृतिक संसाधनों के संरक्षण के महत्त्व से अनभिज्ञ हैं जिसके कारण यहाँ अत्यधिक चराई और शिकार जैसी प्रथाएँ प्रचलित हैं।
        • शिक्षा और जागरूकता की कमी भी नीति निर्माताओं को प्रभावित करती है जिससे यह पर्यावरणीय क्षरण के परिणामों की उचित समझ नहीं रखते हैं।
    • इस स्थिति में सुधार हेतु उपाय:
      • सतत पर्यटन को बढ़ावा देना: इको-टूरिज्म को प्रोत्साहित करके तथा जिम्मेदार पर्यटन प्रथाओं को बढ़ावा देकर हिमालयी क्षेत्र में स्थायी पर्यटन को बढ़ावा देने की आवश्यकता है।
        • इसके लिये पर्यटकों को जिम्मेदार करने तथा पर्यावरण संरक्षण को प्राथमिकता देने वाली नीतियाँ विकसित की जा सकती हैं।
      • वनीकरण को प्रोत्साहित करना: सरकार, स्थानीय समुदायों को पेड़ लगाने और वनों की रक्षा करने के लिये प्रोत्साहन प्रदान करके हिमालयी क्षेत्र में वनीकरण को प्रोत्साहित कर सकती है।
      • अक्षय ऊर्जा स्रोतों का विकास करना: गैर-नवीकरणीय ऊर्जा स्रोतों पर निर्भरता कम करने के लिये सरकार हिमालयी क्षेत्र में नवीकरणीय ऊर्जा स्रोतों जैसे सौर, पवन और जल विद्युत के विकास को बढ़ावा दे सकती है।
        • यह ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन को कम करने और जलवायु परिवर्तन के प्रभावों को कम करने में मदद कर सकता है।
      • पर्यावरणीय विनियमों को सुदृढ़ बनाना: समय की मांग है कि पर्यावरणीय विनियमों को सुदृढ़ किया जाए और इस क्षेत्र के प्राकृतिक संसाधनों की रक्षा के लिये उन्हें प्रभावी ढंग से लागू किया जाए। जैसे निगरानी प्रणाली स्थापित करना, उल्लंघनों के लिये दंड देना और निर्णय लेने में पारदर्शिता को बढ़ावा देना।

    निष्कर्ष:

    • भारत में हिमालय क्षेत्र के पारिस्थितिकी और पर्यावरण को संरक्षित करने के लिये नीति निर्माताओं, स्थानीय समुदायों और पर्यटन उद्योग सहित विभिन्न हितधारकों के सहयोग की आवश्यकता है ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि इस क्षेत्र के प्राकृतिक संसाधन भविष्य की पीढ़ियों के लिये संरक्षित और सुरक्षित हैं।
      • इस क्षेत्र की पारिस्थितिकी और पर्यावरणीय प्रणालियों की दीर्घकालिक स्थिरता सुनिश्चित करने के लिये नवीन समाधानों और स्थायी प्रथाओं की आवश्यकता है।