• प्रश्न :

    आप एक गैर-सरकारी संगठन के प्रमुख हैं जो कि समाज के कमज़ोर वर्गों के कैंसर रोगियों की उपशामक देखभाल (पैलियेटिव केयर) करता है। पिछले कुछ महीनों से आपके इस नेक कार्य के लिये धन कम पड़ रहा है, जिसके कारण आप आश्रितों की आवश्यकताओं को पूरा नहीं कर पा रहे हैं। एक दिन एक बड़ी तंबाकू कंपनी के मालिक ने आपसे संपर्क किया जो कि आपके एन.जी.ओ. को पंड देने का इच्छुक है, क्योंकि उसे कॉर्पोरेट सामाजिक उत्तरदायित्व (सी.एस.आर.) के लक्ष्य को पूरा करना है। जबकि वर्षों से कैंसर रोगियों के साथ कार्य करने के क्रम में तंबाकू कंपनियों के प्रति आपके मन में हिकारत का भाव उत्पन्न हुआ है। अब मालिक की पेशकश ने आपको नैतिक दुविधा में डाल दिया है। एक तरफ आप किसी ऐसी कंपनी से समर्थन प्राप्त करने के विचार से घृणा करते हैं जो कि अपने उत्पादों के माध्यम से कैंसर फैला रही है, वहीं दूसरी तरफ, आपको लगता है कि कंपनी की सहायता आपके एन.जी.ओ. के लिये अच्छा अवसर है जो कि मरीज़ों को एक बेहतर देखभाल प्रदान कर सकता है।

    (a) यहाँ शामिल विभिन्न नैतिक मुद्दे क्या हैं?
    (b) क्या तंबाकू कंपनी से पैसे स्वीकार करना आपके लिये नैतिक रूप से ठीक होगा? (250 शब्द)

    10 Jun, 2022 सामान्य अध्ययन पेपर 4 केस स्टडीज़

    उत्तर :

    हल करने का दृष्टिकोण:

    • केस स्टडी में शामिल विभिन्न नैतिक मुद्दों की पहचान कीजिये।
    • तंबाकू कंपनी से पैसे स्वीकार करना नैतिक रूप से ठीक है या नहीं; दोनों पक्षों पर उचित तर्क दीजिये।
    • फंड स्वीकार करना आपके लिये नैतिक होगा, के पक्ष में उचित तर्क दीजिये।

    उपर्युक्त केस स्टडी में तंबाकू कंपनी के मालिक द्वारा एन.जी.ओ को वित्तीय सहायता की पेशकश ने एन.जी.ओ प्रमुख को दुविधा में डाल दिया है। इस केस स्टडी में शामिल प्रमुख नैतिक मुद्दों को निम्नलिखित रूप में देखा जा सकता है-

    • व्यक्तिगत विश्वास बनाम वित्तीय आवश्यकता- जहाँ एक तरफ एन.जी.ओ धन की कमी से जूझ रहा है, वहीं दूसरी तरफ एन.जी.ओ प्रमुख का व्यक्तिगत विश्वास है कि तंबाकू कंपनी कैंसर हेतु उत्तरदायी है।
    • तंबाकू कंपनी का रोग फैलाने में उत्तरदायित्व बनाम एन.जी.ओ की सहायता कर परोपकार करने की भावना- जहाँ एक तरफ तंबाकू उत्पादों का निर्माण कर कैंसर जैसी असाध्य बीमारी को फैलाने हेतु उत्तरदायी है, वहीं दूसरी तरफ कैंसर रोगियों के उपचार हेतु धन देने का इच्छुक भी है।
    • एन.जी.ओ की संगठनात्मक सत्यनिष्ठा बनाम धन की कमी- जहाँ एक तरफ तंबाकू कंपनी से धन लेने से एन.जी.ओ की सत्यनिष्ठा पर सवाल उठ सकते हैं तो वहीं दूसरी तरफ धन की कमी उसके नेक कार्य में बाधा उत्पन्न कर रही है।
    • तंबाकू उत्पादों की वैधता बनाए रखना बनाम नैतिकता: तंबाकू उत्पाद सरकारी राजस्व का एक प्रमुख स्रोत है किंतु वे कैंसरकारक भी हैं, इन उत्पादों की वैधता नैतिक रूप से संदेहास्पद है।

    एन.जी.ओ प्रमुख के रूप में फंड को स्वीकार करने अथवा अस्वीकार करने के संबंध में मेरे समक्ष कुछ नैतिक प्रश्न विद्यमान हैं-

    फंड अस्वीकार करने के संभावित परिणाम-

    • कैंसर हेतु उत्तरदायी संस्था से फंड न लेकर मैं व्यक्तिगत व सांगठनिक सत्यनिष्ठा को बनाए रख पाऊंगा।
    • फंड अस्वीकार करने पर मैं व्यक्तिगत सत्यनिष्ठा तो बना पाऊंगा किंतु कैंसर पीड़ितों का उपचार न कर पाने की कुंठा बनी रह सकती है।
    • फंड अस्वीकार करने की स्थिति में रोगियों की पर्याप्त देखभाल नहीं कर पाऊंगा जिससे एन.जी.ओ. की छवि पर नकारात्मक प्रभाव पड़ सकता है।

    फंड स्वीकार करने के संभावित परिणाम-

    • यदि मैं फंड स्वीकार कर लेता हूँ तो एन.जी.ओ. रोगियों का उचित उपचार कर पाएगा जिससे मैं व्यक्तिगत कुंठा से बच जाऊंगा।
    • एन.जी.ओ की छवि पर नकारात्मक प्रभाव पड़ेगा।
    • फंड स्वीकारने से मेरी व्यक्तिगत सत्यनिष्ठा व सांगठनिक सत्यनिष्ठा पर नकारात्मक प्रभाव पड़ेगा।

    वस्तुत: मेरे फैसले का प्रभाव सिर्फ मुझ पर ही नहीं बल्कि संगठन एवं कैंसर रोगियों पर भी पड़ेगा, तो ऐसे में कोई भी फैसला लेने से पूर्व मैं अपने सहकर्मियों व कैंसर पीड़ितों से मशविरा करूंगा। उसके पश्चात् सर्वसम्मति से निर्णय लेने का प्रयास करूंगा।