• प्रश्न :

    औद्योगिकीकरण और उपनिवेशवाद ने विश्व भर में ब्रिटिश वर्चस्व की स्थापना में एक दूसरे का सहयोग किया। विश्लेषण कीजिये। (150 शब्द)

    23 May, 2022 सामान्य अध्ययन पेपर 1 इतिहास

    उत्तर :

    हल करने का दृष्टिकोण:

    • औद्योगिकीकरण और उपनिवेशवाद को परिभाषित करें।
    • बताएँ कि उपनिवेशवाद और औद्योगिकीकरण परस्पर पूरक कैसे थे।
    • राजनीतिक, आर्थिक और सांस्कृतिक क्षेत्र में ब्रिटिश आधिपत्य के उद्भव के साथ उत्तर पूरा करें।

    भाप या बिजली जैसे ऊर्जा संसाधनों के उपयोग के माध्यम से मशीन आधारित उत्पादन के उद्भव को औद्योगिकीकरण कहा जाता है। दूसरी ओर, विजय या अन्य साधनों द्वारा उपनिवेशों को प्राप्त करने और उन्हें अपने स्वयं के आर्थिक और राजनीतिक हितों की पूर्ति के लिये उपयोग करने को उपनिवेशवाद कहा जाता है।

    खोजयात्राओं के युग (Age of Exploration) में उपनिवेशवाद की पहली लहर उभरी जिसमें स्पेन और पुर्तगाल जैसे देश प्रमुख थे। औद्योगिक क्रांति के आगमन के साथ उपनिवेशवाद की दूसरी लहर का तीव्र उभार हुआ जहाँ ब्रिटेन अन्य सभी उपनिवेशवादी शक्तियों से अधिक सफल रहा।

    औद्योगिक क्रांति ने निम्नलिखित विषयों में बड़ी भूमिका निभाई:

    • नए विचारों का उद्भव।
    • उत्पादन स्तर में वृद्धि।
    • आधुनिक उपकरणों का विकास।
    • परिवहन और संचार में सुधार।

    इन सभी कारणों ने अन्य उपनिवेशवादी शक्तियों पर ब्रिटेन को असंगत लाभ प्रदान किया और इसके क्षेत्रों का विस्तार किया।

    • अधिकाधिक उपनिवेशों पर नियंत्रण के साथ ब्रिटेन अपने घरेलू उद्योगों के लिये कच्चे माल की माँग की पूर्ति में सक्षम हुआ।
    • उद्योगों के विस्तार के साथ इनके लिये अधिकाधिक कच्चे माल की आवश्यकता बढ़ती जा रही थी।
    • भारत और मिस्र कपास के जबकि कॉंगो और ईस्ट इंडीज रबड़ के प्रमुख स्रोत देश थे। इन कच्चे उत्पादों के अतिरिक्त खाद्यान्न, चाय, कॉफी, नील, तंबाकू और चीनी की आपूर्ति भी इन उपनिवेशों से होती थी।
    • इन उत्पादों की अधिकाधिक प्राप्ति प्राप्त के लिये उपनिवेशों के उत्पादन प्रारूप को परिवर्तित करना उपनिवेशवादी देशों के हित में था।
    • इस प्रकार, उपनिवेशवादियों ने केवल उन एक या दो फसलों की खेती के लिये उपनिवेशों को विवश किया जिनकी उन्हें अपने उद्योगों के लिये कच्चे माल के रूप में आवश्यकता थी।
    • बाद में औद्योगिक उत्पादन के संवर्धित स्तर के साथ घरेलू बाज़ार संतृप्त हो गए और अधिशेष को भारत जैसे उपनिवेशों की ओर मोड़ दिया गया जिससे वे कच्चे माल के स्रोत के साथ ही तैयार उत्पाद के बाज़ार में बदल गए।

    उपनिवेशों से कच्चे माल तथा श्रम व सेना के लिये मानव संसाधन से सहायता प्राप्त औद्योगिकीकरण की अतुलनीय गति ने ब्रिटिश साम्राज्य की स्थापना को सुनिश्चित किया। यह वर्चस्व केवल राजनीतिक, आर्थिक और सैन्य क्षेत्र तक ही सीमित नहीं था। ब्रिटिश संस्कृति, भाषा, शैक्षणिक और प्रशासनिक संरचना ने भी वैश्विक वर्चस्व प्राप्त किया जिससे ब्रिटेन का एक वैश्विक औपनिवेशिक शक्ति के रूप में उभार हुआ।