• प्रश्न :

    ‘भारत में नगरीकरण तथा प्रवासन से कृषि क्षेत्र का महिलाकरण हो रहा है’। इस कथन के आलोक में कृषि क्षेत्र की महिलाकरण के सामाजिक-आर्थिक प्रभावों पर चर्चा कीजिये। (250 शब्द)

    25 Apr, 2022 सामान्य अध्ययन पेपर 1 भारतीय समाज

    उत्तर :

    हल करने का दृष्टिकोण:

    • नगरीकरण और प्रवास की संबद्ध घटनाओं के बारे में संक्षेप में व्याख्या कीजिये।
    • नगरीकरण परिणामस्वरूप ग्रामीण-शहरी प्रवासन से कृषि क्षेत्र का महिलाकरण का संक्षिप्त उल्लेख कीजिये।
    • इसके सामाजिक-आर्थिक प्रभावों की चर्चा कीजिये।
    • ग्रामीण भारत में महिलाओं के सशक्तीकरण के लिये कुछ उपायों का सुझाव देकर निष्कर्ष लिखिये।

    नगरीकरण से तात्पर्य शहरी विकास की प्रक्रिया से है, अर्थात् किसी विशिष्ट समय पर शहर और कस्बों में रहने वाली कुल जनसंख्या के अनुपात से है। यह जीवन के एक अलग तरीके को भी संदर्भित करता है, जो शहरों की बड़ी, घनी और विविध जनसंख्या के कारण उभरता है।

    नगरीकरण के फलस्वरूप भारत में ग्रामीण-शहरी प्रवास में वृद्धि हुई है, जिससे कई भूमिकाओं यथा कृषक, उद्यमी, और श्रमिकों के रूप में महिलाओं की बढ़ती संख्या के साथ-साथ कृषि क्षेत्र की महिलाओं की संख्या बढ़ी है।

    भारत में ग्रामीण-शहरी प्रवासन के परिणामस्वरूप कृषि क्षेत्र का महिलाकरण हो रहा है:

    • शहरी क्षेत्रों द्वारा दिये गए आर्थिक अवसरों ने ग्रामीण प्रवासन की घटनाओं में योगदान दिया है, जिनमें से पुरुष सदस्यों की संख्या अधिक है।
    • ग्रामीण क्षेत्रों में पुरुषों को निर्माण से संबंधी मज़दूर, रिक्शा चालक, आदि तथा दयनीय व असुरक्षित निवास करने की स्थिति जैसे कार्य की प्रकृति ने गाँवों में परिवार को पीछे छोड़ने के लिये मज़बूर करती है। पुरुष प्रवासन ने महिला सदस्यों को कृषि भूमिकाओं के लिये अतिरिक्त दायित्वों को निभाने के लिये प्रेरित किया है।

    कृषि क्षेत्र की महिलाकरण का सामाजिक-आर्थिक प्रभाव:

    • यह सामाजिक बहिष्कार एवं अन्याय का एक गंभीर कारण है क्योंकि महिलाओं को घर और कृषि दोनों का प्रबंधन करने के लिये शिक्षा तथा कौशल विकास के अवसरों का त्यागने के लिये मजबूर किया जाता है।
    • पुरुष आबादी के प्रवासन से महिलाओं पर उत्पादक तथा प्रजनन कार्यों का चक्रवृद्धि बोझ पड़ा है, जिससे उनके स्वास्थ्य पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ा है।
    • कृषि के बढ़ते महिलाकरण का कृषि उत्पादकता पर गहरा एवं व्यापक प्रभाव पड़ता है क्योंकि महिलाओं को श्रम, बीज एवं उर्वरक सहित सभी आगतों की व्यवस्था करने के लिये अकेला छोड़ दिया जाता है।
    • यह, बदले में, घरेलू खाद्य सुरक्षा के लिये प्रत्यक्ष प्रभाव करता है।
    • इसके अतिरिक्त उनके पास इन सेवाओं से निपटने के लिये आर्थिक संसाधनों तथा अनुभवों पर नियंत्रण नहीं होता है, जो पूर्व में पुरुष समकक्षों द्वारा प्रबंधित किये गए थे।
    • नकारात्मक सामाजिक परिवर्तनों जैसे कि पारिवारिक तनाव, पारिवारिक विखंडन, अपने पिता के बिना बड़े हो रहे बच्चों द्वारा ग्रामीण भारत को अधिक पिछड़ेपन में धकेल दिया है।

    आगे की राह

    • भूमि, ऋण, जल, बीज और बाज़ार जैसे संसाधनों तक महिलाओं की पहुँच पर ध्यान देने की आवश्यकता है।
    • महिला स्वयं-सहायता समूह (एस.एच.जी.) को केंद्रित करते हुए उन्हें क्षमता-निर्माण गतिविधियों के माध्यम से सूक्ष्म ऋण से जोड़ने तथा विभिन्न निर्णय लेने वाले निकायों में उनके प्रतिनिधित्व को सुनिश्चित करने और जानकारी प्रदान करने के लिये ध्यान केंद्रित करने को आवश्यकता है।
    • विभिन्न लाभार्थी-उन्मुख कार्यक्रमों/योजनाओं के लाभों को उन तक पहुँचाने के लिये महिला-केंद्रित गतिविधियाँ शुरू करना।