• प्रश्न :

    प्रश्न. 'मनरेगा न केवल ग्रामीण बुनियादी ढांचे और संपत्ति के निर्माण में प्रत्यक्ष योगदान देता है, बल्कि अप्रत्यक्ष रूप से ग्रामीण मांग और रोज़गार को बढ़ाने में भी मदद करता है।' इस योजना से जुड़ी उपलब्धियों और मुद्दों पर चर्चा कीजिये। (250 शब्द)

    03 Feb, 2022 सामान्य अध्ययन पेपर 2 राजव्यवस्था

    उत्तर :

    हल करने का दृष्टिकोण:

    • मनरेगा के बारे में बताते हुए उत्तर की शुरुआत कीजिये।
    • ग्रामीण विकास में इसके योगदान और उपलब्धियों की चर्चा कीजिये।
    • मनरेगा से जुड़े मुद्दों पर भी चर्चा कीजिये।
    • निष्कर्ष लिखते हुए आगे की राह बताइये।

    परिचय

    मनरेगा विश्व के सबसे बड़े कार्य गारंटी कार्यक्रमों में से एक है। योजना का प्राथमिक उद्देश्य किसी भी ग्रामीण परिवार के वयस्क सदस्यों को, जो सार्वजनिक कार्य से संबंधित अकुशल शारीरिक कार्य करने के इच्छुक हैं, प्रत्येक वित्तीय वर्ष में 100 दिनों के रोज़गार की गारंटी देना है।

    मनरेगा के उद्देश्य:

    • काम का कानूनी अधिकार: पूर्व की रोज़गार गारंटी योजनाओं के विपरीत, यह अधिनियम अधिकार-आधारित फ्रेमवर्क के माध्यम से गरीबी के कारणों को संबोधित करने पर लक्षित है।
      • लाभार्थियों में कम-से-कम एक तिहाई महिलाओं का होना अनिवार्य है।
      • मज़दूरी का भुगतान न्यूनतम मज़दूरी अधिनियम, 1948 के तहत राज्य में कृषि मज़दूरों के लिये निर्दिष्ट वैधानिक न्यूनतम मज़दूरी के अनुसार किया जाएगा।
    • मांग-प्रेरित योजना: मनरेगा की रूपरेखा का सबसे महत्त्वपूर्ण अंग यह है कि इसके तहत किसी भी ग्रामीण वयस्क को मांग करने के 15 दिनों के भीतर काम पाने की कानूनी रूप से समर्थित गारंटी प्राप्त है, जिसमें विफल होने पर उसे 'बेरोज़गारी भत्ता' प्रदान किया जाता है।
      • यह मांग-प्रेरित योजना श्रमिकों के स्व-चयन (Self-Selection) को सक्षम बनाती है।
    • विकेंद्रीकृत योजना: इन कार्यों के योजना निर्माण और कार्यान्वयन में पंचायती राज संस्थाओं (PRIs) को महत्त्वपूर्ण भूमिकाएँ सौंपकर विकेंद्रीकरण की प्रक्रिया को सशक्त करने पर बल दिया गया है।
      • अधिनियम में आरंभ किये जाने वाले कार्यों की सिफारिश करने का अधिकार ग्राम सभाओं को सौंपा गया है और इन कार्यों का कम-से-कम 50% उनके द्वारा ही निष्पादित किया जाता है।

    योजना के कार्यान्वयन से संबद्ध समस्याएँ

    • धन के वितरण में देरी और अपर्याप्तता: अधिकांश राज्य मनरेगा द्वारा निर्दिष्ट 15 दिनों के भीतर अनिवार्य रूप से मज़दूरी भुगतान की पूर्ति में विफल रहे हैं। इसके साथ ही, मज़दूरी भुगतान में देरी हेतु श्रमिकों को मुआवज़ा भी नहीं दिया जाता है।
      • इसने योजना को एक आपूर्ति-आधारित कार्यक्रम में बदल दिया है और इसके परिणामस्वरूप श्रमिकों ने इसके तहत काम करने में अरुचि रखने लगे हैं।
      • इस बात के पर्याप्त साक्ष्य मिलते हैं, और स्वयं वित्त मंत्रालय द्वारा स्वीकार किया गया है कि मज़दूरी भुगतान में देरी धन की अपर्याप्तता का परिणाम है।
    • जाति आधारित पृथक्करण: भुगतान में देरी के मामले में जाति के आधार पर भी उल्लेखनीय भिन्नताएँ नज़र आई हैं। जबकि निर्दिष्ट सात दिनों की अवधि के अंदर अनुसूचित जाति के श्रमिकों के लिये 46% और अनुसूचित जनजाति के श्रमिकों के लिये 37% भुगतान सुनिश्चित होता नज़र आया था, गैर-एससी/एसटी श्रमिकों के लिये यह मात्र 26% था।
      • मध्य प्रदेश, झारखंड, ओडिशा और पश्चिम बंगाल जैसे गरीब राज्यों में जाति-आधारित पृथक्करण का नकारात्मक प्रभाव तीव्र रूप से महसूस किया गया है।
    • अतार्किक रूप से निम्न मज़दूरी दर: वर्तमान में 21 प्रमुख राज्यों में से कम-से-कम 17 में मनरेगा मज़दूरी दर राज्य द्वारा निर्धारित न्यूनतम कृषि मज़दूरी दर से भी कम है। यह कमी न्यूनतम मज़दूरी के 2% से 33% तक है।
    • पंचायती राज संस्थाओं की अप्रभावी भूमिका: बेहद कम स्वायत्तता के कारण ग्राम पंचायतें इस अधिनियम को प्रभावी और कुशल तरीके से लागू करने में सक्षम नहीं हैं।
    • बड़ी संख्या में अधूरे कार्य: मनरेगा के तहत कार्यों को पूरा करने में देरी हुई है और परियोजनाओं का निरीक्षण अनियमित रहा है। इसके साथ ही, मनरेगा के तहत संपन्न कार्य की गुणवत्ता और परिसंपत्ति निर्माण समस्याजनक रही है।
    • जॉब कार्ड में धांधली: फर्जी जॉब कार्ड, कार्ड में फर्जी नाम शामिल करने, अपूर्ण प्रविष्टियाँ और जॉब कार्डों में प्रविष्टियाँ करने में देरी जैसी भी कई समस्याएँ मौजूद हैं।

    आगे की राह

    • योजना को सुदृढ़ बनाना:
      • विभिन्न सरकारी विभागों और कार्य आवंटन तथा मापन तंत्र के बीच बेहतर समन्वय की आवश्यकता है।
      • यह हाल के वर्षों के सर्वोत्कृष्ट कल्याणकारी योजनाओं में से एक है और इसने ग्रामीण निर्धनों की पर्याप्त सहायता की है। सरकारी अधिकारियों को इस योजना के सफल कार्यान्वयन के लिये पहल करनी चाहिये और कार्य को अवरुद्ध नहीं करना चाहिये।
    • लिंग-आधारित मज़दूरी अंतराल: भुगतान अदायादी के मामले में व्याप्त कुछ विसंगतियों को भी दूर करने की ज़रूरत है। उल्लेखनीय है कि इस क्षेत्र की महिलाओं को अपने पुरुष समकक्षों की तुलना में औसतन 22.24% कम आय प्राप्त होती है।
    • अल्पकालिक उपाय:
      • राज्य सरकारों को यह सुनिश्चित करना चाहिये कि हर गाँव में सार्वजनिक कार्य शुरू हो। कार्यस्थल पर आने वाले श्रमिकों को बिना किसी देरी के तुरंत काम दिया जाना चाहिये।
      • स्थानीय निकायों को सक्रियता से वापस लौटे और क्वारंटाइन किये गए प्रवासी कामगारों की सहायता करना चाहिये और उन लोगों की मदद करनी चाहिये जिन्हें जॉब कार्ड प्राप्त करने की आवश्यकता है।
      • कार्यस्थल पर श्रमिकों के लिये साबुन, पानी और मास्क जैसी पर्याप्त सुविधाएँ निःशुल्क उपलब्ध कराई जानी चाहिये।
      • विशेष रूप से इस समय मनरेगा मज़दूरों के भुगतान में तेज़ी लाए जाने की आवश्यकता है। श्रमिकों तक आसानी से और कुशलता से नकद राशि की उपलब्धता सुनिश्चित करना आवश्यकता है।
    • दीर्घकालिक उपाय:
      • कोविड महामारी ने विकेंद्रीकृत शासन के महत्त्व को प्रदर्शित किया है।
        • ग्राम पंचायतों को कार्यों को मंज़ूरी देने, कार्य मांग पर इसकी पूर्ति करने और समयबद्ध मज़दूरी भुगतान सुनिश्चित कर सकने हेतु पर्याप्त संसाधन, शक्तियाँ और उत्तरदायित्व सौंपे जाने की आवश्यकता है।
      • मनरेगा को सरकार की अन्य योजनाओं, जैसे ग्रीन इंडिया पहल, स्वच्छ भारत अभियान आदि के साथ संबद्ध किया जाना भी उपयुक्त होगा।
      • इसके अतिरिक्त, योजना का सोशल ऑडिटिंग करना भी एक उपयुक्त कदम साबित हो सकता है। यह प्रदर्शन और निष्पादन की जवाबदेही का निर्माण करता है।
        • साथ ही ग्रामीण क्षेत्रों में सरकारी नीतियों और उपायों के संबंध में जागरूकता पैदा करने की भी आवश्यकता है।