• प्रश्न :

    कॉलेजियम प्रणाली की दक्षता को समय-समय पर इसकी स्वतंत्रता और न्यायिक नियुक्तियों की पारदर्शिता के संदर्भ में चुनौती दी गई है। समालोचनात्मक परीक्षण कीजिये। (250 शब्द)

    31 Aug, 2021 सामान्य अध्ययन पेपर 2 राजव्यवस्था

    उत्तर :

    हल करने का दृष्टिकोण

    • कॉलेजियम प्रणाली और न्यायिक प्रणाली में इसकी आवश्यकता के बारे में लिखते हुए उत्तर की शुरुआत कीजिये।
    • कॉलेजियम प्रणाली के कामकाज संबंधी मुद्दों पर चर्चा कीजिये।
    • प्रचलित मुद्दों से निपटने के लिये रास्ता सुझाइये।

    परिचय

    कॉलेजियम प्रणाली न्यायाधीशों की नियुक्ति और स्थानांतरण की प्रणाली है जो सर्वोच्च न्यायालय के निर्णयों के माध्यम से विकसित हुई है, न कि संसद के अधिनियम या संविधान के प्रावधान द्वारा।

    इसकी स्थापना न्यायपालिका में न्यायाधीशों की नियुक्ति में स्वतंत्रता सुनिश्चित करने के लिये की गई थी।

    प्रारूप

    कॉलेजियम सिस्टम से जुड़े मुद्दे

    • पारदर्शिता की कमी: कार्य करने के लिये लिखित मैनुअल का अभाव, चयन मानदंड का अभाव, पहले से लिये गए निर्णयों में मनमाने ढंग से उलटफेर, बैठकों के रिकॉर्ड का चयनात्मक प्रकाशन कॉलेजियम प्रणाली की अपारदर्शिता को साबित करता है।
      • कोई नहीं जानता कि न्यायाधीशों का चयन कैसे किया जाता है और इन नियुक्तियों ने औचित्य, आत्म-चयन तथा भाई-भतीजावाद को जन्म दिया है।
    • NJAC, एक चूका अवसर: राष्ट्रीय न्यायिक नियुक्ति आयोग (NJAC) अनुचित राजनीतिकरण से प्रणाली की स्वतंत्रता की गारंटी दे सकता है, नियुक्तियों की गुणवत्ता को मज़बूत कर सकता है और प्रणाली के प्रति जनता में पुनः विश्वास जागृत कर सकता है।
      • सर्वोच्च न्यायालय ने वर्ष 2015 में फैसले को इस आधार पर रद्द कर दिया था कि इससे न्यायपालिका की स्वतंत्रता को खतरा है।
    • सदस्यों के बीच सहमति का अभाव: कॉलेजियम के सदस्यों को अक्सर न्यायाधीशों की नियुक्ति के संबंध में आपसी सहमति के मुद्दे का सामना करना पड़ता है।
    • कॉलेजियम के सदस्यों के बीच अविश्वास न्यायपालिका के भीतर की खामियों को उजागर करता है।
    • असमान प्रतिनिधित्व: चिंता का दूसरा क्षेत्र उच्च न्यायपालिका की संरचना है, जबकि जाति संबंधी आँकड़े उपलब्ध नहीं हैं, वहीं उच्च न्यायपालिका में महिलाओं का प्रतिनिधित्व काफी कम है।
    • न्यायिक नियुक्तियों में देरी: उच्च न्यायपालिका के लिये कॉलेजियम द्वारा सिफारिशों में देरी के कारण न्यायिक नियुक्ति की प्रक्रिया में देरी हो रही है।
    • अन्य आलोचना: भाई-भतीजावाद की गुंजाइश, सार्वजनिक विवादों में उलझना, कई प्रतिभाशाली कनिष्ठ न्यायाधीशों और अधिवक्ताओं की अनदेखी।

    आगे की राह

    • नियुक्ति के लिये स्वतंत्र निकाय: रिक्तियों को भरना, कार्यपालिका और न्यायपालिका को शामिल करते हुए एक सतत् और सहयोगी प्रक्रिया है।
      • हालाँकि यह एक स्थायी, स्वतंत्र निकाय के बारे में सोचने का समय है जो न्यायपालिका की स्वतंत्रता को बनाए रखने के लिये पर्याप्त सुरक्षा उपायों के साथ प्रक्रिया को संस्थागत बनाने हेतु न्यायिक प्रधानता की गारंटी देता है लेकिन न्यायिक विशिष्टता की नहीं।
    • सिफारिश की प्रक्रिया में बदलाव: एक निश्चित संख्या में रिक्तियों के लिये आवश्यक न्यायाधीशों की संख्या का चयन करने के बजाय कॉलेजियम को राष्ट्रपति को वरीयता और अन्य मान्य मानदंडों के क्रम में नियुक्त करने के लिये संभावित नामों का एक पैनल प्रदान करना चाहिये।
    • NJAC की तर्ज पर अधिनियम की स्थापना पर पुनर्विचार: सर्वोच्च न्यायालय NJAC अधिनियम में संशोधन कर सकता है ताकि यह सुनिश्चित हो सके कि न्यायपालिका अपने निर्णयों में बहुमत का नियंत्रण बरकरार रखे।
    • पारदर्शिता सुनिश्चित करना: कॉलेजियम के सदस्यों को एक नई शुरुआत करनी होगी और एक-दूसरे के साथ जुड़ना होगा।
      • एक पारदर्शी प्रक्रिया में जवाबदेही शामिल होती है जो गतिरोध को हल करने के लिये बहुत आवश्यक है।

    निष्कर्ष

    यह अत्यंत महत्त्वपूर्ण है कि न्यायपालिका, जो कि नागरिक स्वतंत्रता का मुख्य कवच है, पूरी तरह से स्वतंत्र हो और कार्यपालिका के प्रत्यक्ष एवं अप्रत्यक्ष प्रभाव से अलग हो।

    देश के सर्वोच्च न्यायालय में नियुक्ति के लिये उच्चतम सत्यनिष्ठा वाले न्यायाधीशों की पहचान करना और उनका चयन करना भारत की न्यायिक प्रणाली की स्वतंत्रता सुनिश्चित करने के लिये सबसे उपयुक्त हो सकता है।