• प्रश्न :

    भारतीय न्याय वितरण प्रणाली को और अधिक कुशल बनाने के लिये पुलिस सुधार समय की मांग है। टिप्पणी कीजिये। (250 शब्द)

    28 Jul, 2021 सामान्य अध्ययन पेपर 3 आंतरिक सुरक्षा

    उत्तर :

    हल करने का दृष्टिकोण

    • भारतीय राज्यों में पुलिस की खराब स्थिति को उजागर करने वाले कुछ तथ्य प्रस्तुत करते हुए उत्तर की शुरुआत कीजिये।
    • पुलिस बलों से संबंधित सामान्य मुद्दों और सुधारों की आवश्यकता पर चर्चा कीजिये।
    • पुलिस सुधार हेतु उठाए जा सकने वाले आवश्यक कदमों का सुझाव देते हुए निष्कर्ष लिखिये।

    परिचय

    हाल ही में सरकार ने खुलासा किया कि 1 अप्रैल से 30 नवंबर, 2015 के बीच पुलिस विभाग में 25,357 मामले दर्ज किये गए। जिनमें पुलिस हिरासत में मौत के 111 मामले, हिरासत में यातना के 330 मामले और अन्य 24,916 मामले शामिल हैं। यह डेटा पुलिस को जवाबदेह बनाने और पुलिस सुधारों को लागू करने की आवश्यकता पर जोर देता है।

    पुलिस बलों से संबंधित मुद्दे:

    • औपनिवेशिक विरासत: देश में पुलिस प्रशासन की व्यवस्था और भविष्य के किसी भी विद्रोह को रोकने के लिये वर्ष 1857 के विद्रोह के पश्चात् अंग्रेज़ों द्वारा वर्ष 1861 का पुलिस अधिनियम लागू किया गया था।
      • इसका मतलब यह था कि पुलिस को सदैव सत्ता में मौजूद लोगों द्वारा स्थापित नियमों का पालन करना था।
    • राजनीतिक अधिकारियों के प्रति जवाबदेही बनाम परिचालन स्वतंत्रता: द्वितीय प्रशासनिक सुधार आयोग (2007) ने उल्लेख किया है कि राजनीतिक कार्यपालिका द्वारा अतीत में राजनीतिक नियंत्रण का दुरुपयोग पुलिसकर्मियों को अनुचित रूप से प्रभावित करने और व्यक्तिगत या राजनीतिक हितों की सेवा करने के लिये किया गया है।
    • मनोवैज्ञानिक दबाव: यद्यपि वेतनमान और पदोन्नति में सुधार पुलिस सुधार के आवश्यक पहलू हैं, किंतु मनोवैज्ञानिक स्तर पर आवश्यक सुधार के विषय में बहुत कम बात की गई है।
      • भारतीय पुलिस बल में निचले रैंक के पुलिसकर्मियों को प्रायः उनके वरिष्ठों द्वारा अपनामित किया जाता है या वे अमानवीय परिस्थितियों में काम करते हैं।
      • इस प्रकार की गैर-सामंजस्यपूर्ण कार्य परिस्थितियों का प्रभाव अंततः जनता के साथ उनके संबंधों पर पड़ता है।
    • जनधारणा: द्वितीय प्रशासनिक सुधार आयोग के मुताबिक, वर्तमान में पुलिस-जनसंपर्क एक असंतोषजनक स्थिति में है, क्योंकि लोग पुलिस को भ्रष्ट, अक्षम, राजनीतिक रूप से पक्षपातपूर्ण और अनुत्तरदायी मानते हैं।
      • इसके अलावा नागरिक आमतौर पर पुलिस स्टेशन जाने में भी डर महसूस करते हैं।
    • अतिभारित बल: वर्ष 2016 में स्वीकृत पुलिस बल अनुपात प्रति लाख व्यक्तियों पर 181 पुलिसकर्मी था, जबकि वास्तविक संख्या 137 थी।
      • संयुक्त राष्ट्र द्वारा प्रति लाख व्यक्तियों पर 222 पुलिस के अनुशंसित मानक की तुलना में यह बहुत कम है।
      • इसके अलावा पुलिस बलों में रिक्तियों का एक उच्च प्रतिशत अतिभारित पुलिसकर्मियों की मौजूदा समस्या को बढ़ा देता है।
    • कांस्टेबुलरी से संबंधित मुद्दे: राज्य पुलिस बलों में कांस्टेबुलरी का गठन 86% है और इसकी व्यापक ज़िम्मेदारियाँ हैं।
    • अवसंरचनात्मक मुद्दे: आधुनिक पुलिस व्यवस्था के लिये मज़बूत संचार सहायता, अत्याधुनिक या आधुनिक हथियारों और उच्च स्तर की गतिशीलता आवश्यक है।
      • हालाँकि वर्ष 2015-16 की CAG ऑडिट रिपोर्ट में राज्य पुलिस बलों के पास हथियारों की कमी पाई गई है।
      • उदाहरण के लिये राजस्थान और पश्चिम बंगाल में राज्य पुलिस के पास आवश्यक हथियारों में क्रमशः 75% और 71% की कमी थी।
      • साथ ही ‘पुलिस अनुसंधान और विकास ब्यूरो’ ने भी राज्य बलों के पास आवश्यक वाहनों के स्टॉक में 30.5% की कमी का उल्लेख किया है।

    सुझाव

    • पुलिस बलों का आधुनिकीकरण: पुलिस बलों के आधुनिकीकरण (MPF) की योजना 1969-70 में शुरू की गई थी और पिछले कुछ वर्षों में इसमें कई संशोधन हुए हैं।
      • हालाँकि सरकार द्वारा स्वीकृत वित्त का पूरी तरह से उपयोग करने की आवश्यकता है।
      • MPF योजना की परिकल्पना में शामिल हैं:
        • आधुनिक हथियारों की खरीद
        • पुलिस बलों की गतिशीलता
        • लॉजिस्टिक समर्थन, पुलिस वायरलेस का उन्नयन आदि
        • एक राष्ट्रीय उपग्रह नेटवर्क
    • राजनीतिक इच्छाशक्ति की आवश्यकता: सर्वोच्च न्यायालय ने ऐतिहासिक प्रकाश सिंह मामले (2006) में सात निर्देश दिये जहाँ पुलिस सुधारों में अभी भी काफी काम करने की ज़रूरत है।
      • हालाँकि राजनीतिक इच्छाशक्ति की कमी के कारण इन निर्देशों को कई राज्यों में अक्षरश: लागू नहीं किया गया।
    • आपराधिक न्याय प्रणाली में सुधार: पुलिस सुधारों के साथ-साथ आपराधिक न्याय प्रणाली में भी सुधार की आवश्यकता है। इस संदर्भ में मेनन और मलीमथ समितियों (Menon and Malimath Committees) की सिफारिशों को लागू किया जा सकता है। कुछ प्रमुख सिफारिशें इस प्रकार हैं:
      • दोषियों के दबाव के कारण मुकर जाने वाले पीड़ितों को मुआवज़ा देने के लिये एक कोष का निर्माण करना।
      • देश की सुरक्षा को खतरे में डालने वाले अपराधियों से निपटने के लिये राष्ट्रीय स्तर पर अलग प्राधिकरण की स्थापना।
      • संपूर्ण आपराधिक प्रक्रिया प्रणाली में पूर्ण सुधार।

    निष्कर्ष

    पुलिस बलों से संबंधित मुद्दे भारतीय राजनीतिक और सामाजिक व्यवस्था की सीमाओं की अभिव्यक्ति हैं। इस प्रकार पुलिस सुधारों को लागू करने और पुलिस विभागों को सर्वोत्तम प्रथाओं को अपनाने के लिये प्रोत्साहित करने की आवश्यकता है। इसके साथ ही बिना किसी देरी के ऐसा माहौल बनाने की ज़रूरत है जहाँ पुलिस लोगों की सेवा का साधन बन सके।