• प्रश्न :

    आधुनिक सजग लेखिका के रूप में कृष्णा सोबती द्वारा अपनी रचनाओं में स्त्री विमर्श के अतिरिक्त अन्य सामाजिक-राजनीतिक विषयों को समग्रता से शामिल किया| विश्लेषण कीजिये?

    11 Jun, 2021 रिवीज़न टेस्ट्स हिंदी साहित्य

    उत्तर :

    स्त्री विमर्श की सशक्त हस्ताक्षर कृष्णा सोबती द्वारा स्त्रियों की सामाजिक स्थितियों के बाह्य आवरण पर विमर्श करने के साथ ही उनके आंतरिक परतों से संबंधित विषय वैविध्य जैसे- विशेष व्यक्तित्व, आत्मसम्मान, यौन हिंसा जैसी पृष्ठभूमियों पर लेखनी चलाई। कृष्णा सोबती के प्रारंभिक उपन्यासों जैसे सूरजमुखी अंधेरे में, मैं एक ऐसी स्त्री की दर्दनाक कहानी है जिस के व्यक्तित्व में बचपन की यौन हिंसा में असुरक्षा के साथ ही कुछ हद तक यौन निस्संगता का भी समावेश हो गया। इसकी स्त्री पात्र रति अपने व्यक्तित्व, आत्मसम्मान के प्रति अतिशय संवेदनशील हो जाती है। उच्च मध्यमवर्गीय लड़की कहीं भी सामान्य संबंध नहीं बना पाती है। किशोरावस्था का प्रथम मित्र असद अचानक चल बसता है, अंतः विवाहित पुरुष दिवाकर के समक्ष समर्पण करती है। इस प्रकार की कथावस्तु हिंदी उपन्यास में दुर्लभ है। उपरोक्त परिस्थितियों के बाद में रति के अकेलेपन की नियति एक आधुनिक, सशक्त एवं यथार्थवादी कथानक के ढाँचे का निर्माण करती है।

    सामान्यतः स्त्री विमर्श के आवरण में ही लेखन कार्य करने की नियति केवल प्रारंभिक उपन्यासों में ही दिखती है बाद के उपन्यासों जैसे दिलो दानिश, समय सरगम और जिंदगीनामा आदि में कथावस्तु का विस्तार सामाजिक, राजनीतिक, पारिवारिक, मनोवैज्ञानिक और आंचलिकता जैसे तत्वों तक किया गया।

    दिलो दानिश उपन्यास में पुरानी दिल्ली की सामाजिक संस्कृति को केंद्र में रखा गया है और वकील कृपानारायण के घर और बाहर की कहानी कही गई है। दिल्ली के सफल वकील के घर की बड़ी हवेली में एक ओर पत्नी कुटुंबप्यारी और बच्चे हैं तो दूसरी ओर एक मुकदमे के सिलसिले में आई महक बानों की मां उन्हें महक बानों ही सौंप देती है। वकील कृपानारायण महक बानो को फराशखाने में एक घर में रखते हैं वहाँ पर उनके दो बच्चे मासूमा व बदरू हो जाते हैं। उपन्यास के उत्तरार्ध में महक बानो अपनी सामाजिक स्थिति से संघर्ष करते हुए अपनी बेटी मासूमा की शादी सामाजिक उपबंध के तहत करती है। उपन्यास का अंत वकील कृपा नारायण के देहांत और उनकी वसीयत के बँटवारे साथ होता है जिसमें महक बानो के बच्चों को भी जायदाद में हिस्सा मिलता है।

    उपन्यास समय सरगम में अरण्या को सपने के एक माध्यम से जीवन के प्रति आत्ममंथन का अवसर मिलता है वही उपन्यास के दूसरे पात्र ईशान जो सफल गृहस्थ जीवन जी कर भी एकमात्र बेटे और पत्नी की मृत्यु के बाद जीवन के अंतिम पड़ाव में और अरण्या की तरह ही अकेलेपन का शिकार हो गए हैं। दोनों के स्वभाव और जीवनशैली में जमीन आसमान का अंतर है लेकिन संवेदनशील और इमानदार इंसान हैं। इस उपन्यास में ईशान के साले की जर्मन पत्नी इन्ग्लिका, प्रशासनिक सेवा में व्याप्त समस्याएँ और अंतरिक्ष में बसायी जा रही बस्तियों जैसे विषयों को कथानक के ढाँचा में शामिल किया गया।

    कृष्णा सोबती की दृष्टि में भी उनकी सर्वश्रेष्ठ रचना या मैगनस ओपम उनका उपन्यास जिंदगीनामा है, जिसमें उनकी कथावस्तु एकीकृत शैली में प्रस्तुत किया गया है। इस उपन्यास की पृष्ठभूमि में विभाजन पूर्व पंजाब के सामान्य जनजीवन और संस्कृति का उल्लेख किया गया है। उपन्यास में गुरु गोविंद सिंह के कई प्रसिद्ध कथनों का प्रयोग करके लेखिका द्वारा सिख धर्म में अपनी आस्था को प्रकाशित किया गया है। इस उपन्यास में सामाजिक सांस्कृतिक इतिहास के रूप में आंचलिकता की रूपरेखा किस प्रकार तैयार की गई है की कई मायनों में प्रसिद्ध आंचलिक उपन्यास मैला आंचल को टक्कर देती है। इस उपन्यास का आरंभ शरद पूर्णिमा की रात के खूबसूरत चित्रण से होता है। उसके बाद इस गाँव में बसे तीनों प्रमुख समुदायों- हिंदू, मुसलमान और सिखों की घी खिचड़ी में जिंदगी के अनेक सांस्कृतिक बिंबों में प्रस्तुत होते हैं। यहाँ पर डेरा जट्टां गाँव के प्रत्येक पहलू का वर्णन किया गया है जिसमें राष्ट्रीय आंदोलन के दौरान की कुछ गतिविधियों एवं प्रमुख व्यक्तियों जैसे भगत सिंह के चाचा अजीत सिंह, क्रांतिकारी कवि लालचंद फलक इत्यादि का भी वर्णन किया गया है।

    इस प्रकार एक सशक्त लेखिका के रूप में कृष्णा सोबती द्वारा स्त्री विमर्श के साथ-साथ सामाजिक राजनीतिक आर्थिक और सांस्कृतिक पृष्ठभूमियों का भी समावेश बड़ी कुशलता के साथ अपने उपन्यासों में किया गया है। कृष्णा सोबती के प्रसिद्ध उपन्यास जिंदगीनामा को वर्ष 1980 का सर्वोच्च साहित्य पुरस्कार भी प्रदान किया गया तथा पंजाब सरकार द्वारा उन्हें वर्ष 1981 का साहित्य शिरोमणि पुरस्कार भी दिया जा चुका है।