• प्रश्न :

    स्पष्ट कीजिये कि स्वतंत्रता के बाद भारत में विकास का असमान वितरण लोगों के असंतोष का प्रमुख कारण रहा तथा उग्र आंदोलनों का जन्मदाता भी।

    11 May, 2018 सामान्य अध्ययन पेपर 1 इतिहास

    उत्तर :

    उत्तर की रूपरेखा:

    • स्वतंत्रता के बाद भारत में विकास के असमान वितरण को स्पष्ट करें ।
    • विभिन्न सशस्त्र हिंसक आंदोलनों की पृष्ठभूमि इसी असमान वितरण ने ही तैयार की।
    • समस्या के समाधान के लिये उपाय।

    औपनिवेशिक उत्पीड़न से पीडि़त जनता को जब आज़ादी मिली तो ऐसा सोचा गया था कि भारत में अब सर्वांगीण विकास होगा। गांधी जी का "सर्वोदय" सिद्धांत भारतीय राजनेताओं तथा जनसामान्य के मानस पटल पर छाया था। सरकार ने सीमित संसाधनों के बावजूद भारत के कोने-कोने को विकसित करने के लक्ष्य के साथ नीतियाँ बनाईं तथा योजनाएँ कार्यान्वित कीं। परंतु कालांतर में देखा गया कि विकास भारत के प्रत्येक कोने तक नहीं पहुँच पाया। 

    इसके प्रमुख कारण निम्नलिखित रहे :

    • भारत की भौगोलिक तथा सांस्कृतिक विविधता। 
    • राजनीतिक व्यवस्था।
    • लाल-फीताशाही। 
    • भाई-भतीजावाद।
    • भ्रष्टाचार तथा जनांकांक्षाओं को नजरअंदाज़ करना।

    उपरोक्त कारणों के चलते स्वतंत्र भारत में विकास से कुछ खास वर्ग तथा कुछ खास क्षेत्र ही लाभान्वित हुए तथा ऐसे लोग शोषण का शिकार हुए। फलतः असंतुष्टि बढ़ती गई और सशस्त्र आंदोलनों की शुरुआत हुई जो आज तक जारी है। 

    भारत के जनजातीय क्षेत्र प्राकृतिक संसाधनों से संपन्न हैं अतः जब इनके दोहन की बात आई तो स्थानीय नागरिकों को विस्थापित कर दिया गया। नए उद्योगों में उन्हें यथोचित रोज़गार नहीं दिया गया। अपने परंपरागत आवासों से निर्वासित होने तथा परंपरागत आजीविका खो देने के फलस्वरूप उनके अंदर असंतुष्टि की भावना आई और उन्होंने सशस्त्र विद्रोह कर दिया, जिसे आज नक्सलवाद के नाम से जाना जाता है।

    असमान क्षेत्रीय विकास के कारण लोग रोज़गार हेतु एक क्षेत्र से दूसरे क्षेत्र में पलायन करने को मजबूर हुए इससे स्थानीय संसाधनों के ऊपर दबाव बढ़ा तथा भाषा एवं क्षेत्र को लेकर कई हिंसक आंदोलन शुरू हुए। 

    निम्न वर्ग के लोगों ने जब उच्च वर्गों द्वारा किये जाने वाले शोषण को सहने से इनकार कर दिया तो जातिगत हिंसाएँ भी आरंभ हुईं।

    राज्यों के भीतर भी विकास के मामले में क्षेत्रीय विसंगतियाँ दिखाई देती हैं जिसके कारण विभिन्न राज्यों में अलग राज्य बनाने की मांग उठ खड़ी हुई है। 

    जोत के आकारों का छोटा होते जाना तथा भूमि सुधारों का सही कार्यान्वयन न होने से किसानों की आय अत्यंत कम हुई है जिसके कारण किसान आंदोलन भी अब हिंसक होते जा रहे हैं। 

    अवसरों की कमी तथा आरक्षण के मामले में विवेकीकरण के अभाव के कारण छात्रों के बीच असंतोष बढ़ रहा है तथा देश के विभिन्न क्षेत्रों में अनेक समुदायों द्वारा आरक्षण की मांग को लेकर हिंसक आंदोलन किये जा रहे हैं। 

    इस समस्या के समाधान के लिये निम्नलिखित उपायों पर विचार करना आवश्यक है :

    • ऐसे लोग जो आर्थिक-सामाजिक प्रगति में पीछे छूट गए हैं उन पर पर्याप्त ध्यान देने की आवश्यकता है।
    • वे क्षेत्र जो संसाधन संपन्न हैं आवश्यकता के अनुसार उनके लिये योजना का निर्माण किया जाए। 
    • दीर्घकालीन रणनीतिक कार्यक्रम तथा पिछड़े क्षेत्रों में अवसंरचना सुधार की शुरुआत की जानी चाहिये तथा इसकी प्रगति एवं प्रभाव की निगरानी की जानी चाहिये और इसमें मध्यावधि सुधार भी अपेक्षित हैं।  
    • किसी योजना या कार्यक्रम को बनाने तथा लागू करने में लोगों की सहमति पर ज़ोर दिया जाना चाहिये। 
    • पंचायतों को शक्ति के विकेंद्रीकरण, हस्तांतरण तथा पारदर्शिता एवं जवाबदेही द्वारा अधिक शक्तिशाली बनाने की आवश्यकता है।
    • भ्रष्टाचार को समाप्त करने के लिए कठोर कदम उठाने चाहिये।

    निष्कर्षतः संसाधनों का न्यायोचित वितरण तथा समतापूर्ण समाज की स्थापना तब तक मूर्तरूप नहीं धारण कर सकती है जब तक कि समाज का प्रत्येक व्यक्ति गरीबी तथा उपेक्षा की स्थिति से बाहर न आ जाए।