• प्रश्न :

    आपके विचार में सहयोग, स्पर्द्धा एवं संघर्ष ने भारत में महासंघ को किस सीमा तक आकार दिया है? अपने उत्तर को प्रमाणित करने के लिये कुछ हालिया उदाहरण उद्धृत कीजिये। (UPSC GS-2 Mains 2020)

    15 Feb, 2021 सामान्य अध्ययन पेपर 2 राजव्यवस्था

    उत्तर :

    हल करने का दृष्टिकोण:

    • संघवाद के विचार पर संक्षेप में चर्चा करते हुए उत्तर की शुरुआत करें।
    • हाल के कुछ उदाहरणों पर चर्चा करें जो भारत में सहकारी, प्रतिस्पर्द्धी और संघर्षशील संघवाद की विशेषताओं को प्रदर्शित करते हैं।
    • उचित निष्कर्ष दें।

    एक संघीय शासन वह है जिसमें संविधान द्वारा केंद्रीय सरकार और क्षेत्रीय/राज्य सरकारों के बीच शक्तियों का वितरण किया जाता है।

    भारत का संविधान शासन की एक संघीय प्रणाली प्रदान करता है। हालाँकि संघवाद का भारतीय मॉडल अमेरिकी मॉडल से काफी अलग है (जिसे संघीय राजनीति का प्रतीक कहा जाता है)।

    भारतीय संघवाद का एक मज़बूत एकात्मक आधार है, लेकिन विभिन्न सामाजिक-आर्थिक और राजनीतिक परिस्थितियों के कारण सहकारी, प्रतिस्पर्द्धी और संघर्षशील संघवाद की विभिन्न विशेषताएँ यहाँँ देखी जा सकती हैं।

    सहकारी संघवाद: इसके तहत केंद्र और राज्य के बीच एक क्षैतिज संबंध साझा करने की परिकल्पना की गई है जो राष्ट्रीय नीतियों के निर्माण और कार्यान्वयन में 'सहयोग' करते हैं तथा यह केंद्र सरकार द्वारा हाल ही में उठाए गए कदमों में परिलक्षित होता है।

    • जीएसटी को मूर्तरूप देने और जीएसटी परिषद के गठन के साथ केंद्र और राज्य सरकारें दोनों एक देश-एक कर प्रणाली को लागू करने पर सहमत हुए।
    • केंद्र सरकार ने योजना आयोग को समाप्त कर दिया और उसकी जगह नीति आयोग की स्थापना की। नीति आयोग का एक उद्देश्य प्रतिस्पर्द्धी संघवाद विकसित करना है।

    प्रतिस्पर्द्धी संघवाद: यह राज्यों के बीच प्रतिस्पर्द्धा की परिकल्पना करता है।

    • एसडीजी इंडिया इंडेक्स, एस्पिरेशनल डिस्ट्रिक्ट्स प्रोग्राम, स्वच्छ भारत रैंकिंग, ईज़ ऑफ डूइंग बिज़नेस रैंकिंग में केंद्र सरकार से मिलने वाले फंड के लिये राज्यों के बीच प्रतिस्पर्द्धा की भावना विकसित होती है।

    संघर्षशील संघवाद: यह केंद्र सरकार द्वारा राज्य सरकारों की शक्तियों में परिवर्तन के फलस्वरूप उत्पन्न होता है।

    • संविधान के अनुच्छेद 370 के तहत जम्मू-कश्मीर को मिले विशेष दर्जे के एकतरफा निरस्तीकरण की आलोचना कई विशेषज्ञों ने की है क्योंकि यह संघवाद की भावना के खिलाफ है।
    • कई संवैधानिक विशेषज्ञों ने राज्य सूची के विषय पर कानून बनाने हेतु समवर्ती सूची के विषयों का उपयोग करने के केंद्र सरकार के फैसले की आलोचना की है। उदाहरण के लिये केंद्र सरकार ने कृषि के राज्य सूची का विषय होने के बाद भी एस पर तीन कृषि कानूनों को पारित किया है जिसके कारण बड़े पैमाने पर किसानों द्वारा विरोध प्रदर्शन किया जा रहा है।
    • हाल ही में NIA संशोधन अधिनियम के तहत केंद्र सरकार NIA को ऐसे मामलों की जाँच करने का निर्देश दे सकती है जिसमें भारत में अपराध किया गया हो।
    • राज्यपाल की भूमिका केंद्र सरकार (महाराष्ट्र और कर्नाटक में) के एक एजेंट के रूप में होती है, जिसके तहत राज्यपाल आंशिक रूप से कार्य करता है, आमतौर पर उन राज्य सरकारों के खिलाफ जहाँ सत्ताधारी दल केंद्र सरकार में मौजूद सत्ताधारी दल से अलग होते हैं, के अलावा राज्यों के बीच कई नदी जल विवाद हैं। उदाहरण के लिये कावेरी नदी विवाद, महादयी नदी विवाद।

    निष्कर्ष

    एसआर बोम्मई बनाम भारत संघ (वर्ष 1994) में सुप्रीम कोर्ट ने संघवाद को संविधान की मूल संरचना का एक हिस्सा बताया। हालाँकि मज़बूत एकात्मक संरचना और विशेष रूप से जिस तरह से यह वर्षों से विकसित हुई है, उसके कारण कई संवैधानिक विशेषज्ञ भारतीय संघवाद का वर्णन 'संघवाद के बिना संघ', 'असमान राज्यों का संघ' या 'प्रकृति में अर्द्ध-संघीय' के रूप में करते हैं।