• प्रश्न :

    मानसिक मानचित्र (मेंटल मैप) की संकल्पना को विस्तारपूर्वक स्पष्ट कीजिये।

    20 Oct, 2020 रिवीज़न टेस्ट्स भूगोल

    उत्तर :

    प्रश्न विच्छेद:

    • भूमिका
    • मानसिक मानचित्र (मेंटल मैप) की सामान्य संकल्पना
    • मानसिक मानचित्र (मेंटल मैप) के बारे में भूगोलवेत्ताओं द्वारा दी गई संकल्पनाएँ 
    • मेंटल मैप का उदाहरण
    • निष्कर्ष

    हल करने का दृष्टिकोण:

    • संक्षिप्त भूमिका लिखें।
      • की-वर्ड को परिभाषित करें
    • मानसिक मानचित्र (मेंटल मैप) के बारे में बताइये
    • मानसिक मानचित्र (मेंटल मैप) के बारे में भूगोलवेत्ताओं द्वारा दी गई संकल्पनाओं का उल्लेख कीजिये।
      • भूगोलवेत्ताओं का नाम, शोधपत्र, पुस्तक के बारे में स्पष्ट लिखिये।
      • शब्द सीमा कम करने के लिये चित्र/माइंड मैप का प्रयोग करें।
    • उदहारण के साथ निष्कर्ष लिखिये।

    व्यावहारिक भूगोल (Behavioral Geography) में एक मेंटल मैप व्यक्ति के संपर्क के क्षेत्र के बारे में एक दृष्टिकोण को दर्शाता है। मानसिक मानचित्र (मेंटल मैप) की संकल्पना 1950 के दशक के बाद पीटर गाउल्ड (Peter Gould) द्वारा प्रस्तुत की गई थी। गाउल्ड के अनुसार, मानव के स्थानिक निर्णय उसके आस-पास के पर्यावरण की गुणवत्ता पर आधारित होते हैं। इसलिये भूगोलवेत्ताओं के लिये यह आवश्यक है कि वे पर्यावरण का मेंटल इमेज बनाएं ताकि उसके आधार पर निर्णय लिया जा सके।

    गाउल्ड के अनुसार, ‘यदि हम यह मान लें कि हमारा मुख्य उद्देश्य स्थानिक व्यवहार पर निर्भर है तो हम अपने आस-पास की वस्तुओं की जो मेंटल इमेज बनाते हैं वे पृथ्वी पर कुछ संस्थाओं, स्वरूपों तथा प्रक्रमणों के लिये चाबी (Key) का कार्य करते है।” इस प्रकार के मानचित्र केवल स्थानिक व्यवहार के विश्लेषण के लिये ही नहीं बल्कि सामाजिक निवेश की योजना के लिये भी आवश्यक होते हैं।

    पीटर गाउल्ड (Peter Gould) एंड रोडनी व्हाइट (Rodney White) ने अपनी ‘मेंटल मैप्स’ (Mental Maps) पुस्तक में इसका प्रमुखता से विश्लेषण किया है। यह पुस्तक लोगों की स्थानिक इच्छाओं की जाँच पर आधारित है।

    मानसिक मानचित्र अथवा मस्तिष्क का भूगोल (Geography of mind) व्यवहारवादी भूगोल का महत्त्वपूर्ण अंग है। आर. जे. जोनस्टन (Johnston, 1986) के अनुसार, ‘मानसिक मानचित्र स्थानों की इमेज से संबंधित है, यह किसी मनुष्य द्वारा स्थानिक अभीष्टता, स्थानिक पद्धति तथा स्थानिक निर्णय के लिये मस्तिष्क में एकत्र स्थानीय इमेज को संचित करने की प्रक्रिया है। मानसिक मानचित्र सूचना तथा विवेचना (Interpratation) का मिश्रण है जो किसी स्थान के बारे में जानता ही नहीं बल्कि उसके बारे में सोचता भी है।

    भूगोल में इमेज की संकल्पना को केनेथ ई. बाउल्डिंग (Kenneth E. Boulding, 1956) ने अपनी पुस्तक ‘द इमेज: नॉलेज इन लाइफ एंड सोसाइटी’ (The Image: Knowledge in Life and Society) में प्रस्तुत किया था। इसने यह विचार व्यक्त किया कि पर्यावरण के संपर्क में आने से लोग अपने आस-पास की वस्तुओं की मानसिक धारणा बना लेते हैं तथा यही मानसिक धारणा लोगों का मार्गदर्शन करती है। मानसिक धारणा का उपयोग बहुत से क्षेत्रों में किया जा सकता है किंतु मेसोस्केल (Mesoscale) पर इसका प्रयोग नगरीय पर्यावरण के लिये किया गया है। मानसिक धारणा की परिकल्पना पर आधारित मानव-पर्यावरण संबंध को निम्नलिखित चित्र द्वारा दर्शाया गया है:

    Human-Nature

    मानव एवं प्रकृति के मध्य अंतर्संबंधों की संकल्पना (बाउल्डिंग, 1956 के अनुसार)

    मानसिक मानचित्र की संकल्पना पर आर.एम. डाउन्स (Downs 1970) के अनुसार, पर्यावरण से प्राप्त सूचना मानव के व्यक्तित्व, संस्कृति, विश्वास तथा ज्ञान संबंधी घटकों द्वारा परिष्कृत होती है, तत्पश्चात् मस्तिष्क पर बनी इमेज के आधार पर मनुष्य निर्णय लेता है और अपनी आवश्यकताओं की पूर्ति के लिये विभिन्न प्रकार के संबंधों का प्रयोग करता है। 

    Decision-Making

    उदाहरण के लिये जहाँ से किसी देश या क्षेत्र की सीमा शुरू होती है और समाप्त होती है वहाँ एक देश की दूसरे देश से या एक क्षेत्र की दूसरे क्षेत्र से वार्ता प्रभावित हो सकती है। फिलिस्तीन और इज़राइल के बीच चल रहा संघर्ष इसका ज्वलंत उदाहरण है। इस तरह के क्षेत्रीय संघर्षों को हल करना मुश्किल होता है क्योंकि प्रतिभागी निर्णय लेने के लिये अपने मानसिक मानचित्रों पर भरोसा करते हैं और कोई भी दो मानसिक मानचित्र समान नहीं होते हैं।

    इस प्रकार उपर्युक्त विश्लेषण से स्पष्ट है कि भूगोलवेत्ता के लिये मेंटल मैप किसी मनुष्य की स्थानिक प्रतिक्रियाओं के लिये ही नहीं बल्कि निर्णय लेने, अवसरों को समझने, उद्देश्यों को निश्चित करने तथा संतुष्टि प्राप्त करने के लिये भी महत्त्वपूर्ण है। गाउल्ड तथा व्हाइट के शोध-पत्रों से यह परिकल्पना और भी सुदृढ़ हो गई है। इनके अलावा इस विषय पर अन्य महत्त्वपूर्ण प्रकाशन रोज़र एम. डाउन्स (Roger M. Downs) और डेविड स्टी (David Stea) एवं सारिनेन (Saarinen, 1969) के हैं। जो इस परिकल्पना को व्यवहारिक रूप से महत्त्वपूर्ण बनाते हैं।