• प्रश्न :

    दक्षिण-दक्षिण सहयोग से आप क्या समझतें हैं? इसके महत्त्व की चर्चा करते हुए बताएं कि किन उपायों द्वारा इस सहयोग को अधिक मज़बूत तथा स्थायी बनाया जा सकता है?

    13 Oct, 2020 सामान्य अध्ययन पेपर 2 अंतर्राष्ट्रीय संबंध

    उत्तर :

    हल करने का दृष्टिकोण:

    • भूमिका 

    • महत्त्व के बिंदु 

    • सहयोग को अधिक मज़बूत तथा स्थायी बनाने के बिंदु 

    • निष्कर्ष

    दक्षिणी गोलार्द्ध के देशों के मध्य राजनीतिक, आर्थिक, सामाजिक, सांस्कृतिक पर्यावरणीय और तकनीकी क्षेत्रों में सहयोग को बढ़ावा देने हेतु दक्षिण-दक्षिण सहयोग संकल्पना का विकास हुआ। जिसके तहत दो या अधिक विकासशील देशों में यह सहयोग द्विपक्षीय, क्षेत्रीय, अंतःक्षेत्रीय या अंतर्क्षेत्रीय आधार पर हो सकता है।

    दक्षिण-दक्षिण सहयोग के लिये संयुक्त राष्ट्र कार्यालय की स्थापना वर्ष 1974 में की गई। इंडियन काउंसिल ऑफ वर्ल्ड अफेयर्स द्वारा आयोजित कांफ्रेंस में भारत ने ’बदलती वैश्विक व्यवस्था में भारत-अफ्रीका साझेदारी – प्राथमिकताएँ, संभावनाएं और चुनौतियाँ’ पर बताया कि भारत और अफ्रीका के कई साझे हित हैं जो एक दूसरे की उन्नति, शांति और समृद्धि से भी जुड़े हैं।

    नवंबर 2018 में न्यूयॉर्क में संयुक्त राष्ट्र मुख्यालय में आयोजित एक कार्यक्रम में यूएन महासचिव एंटोनियो गुटेरेश ने कहा, "तकनीक हस्तांतरण, आपात तैयारी और आजीविका के साधनों की बहाली के लिए, ज्ञान के आदान-प्रदान के अभिनव रूपों को अपनाकर दक्षिण-दक्षिण सहयोग द्वारा कई ज़िदंगियों में बदलाव लाया जा रहा है।" उल्लेखनीय है कि दक्षिण गोलार्द्ध के देशों में आपसी व्यापार उच्चतम स्तर पर है और वैश्विक व्यापार में भी इनकी हिस्सेदारी एक-चौथाई से अधिक है यूएन प्रमुख का मानना है कि महत्वाकांक्षी और दुनिया को बदलने का लक्ष्य रखने वाले 2030 टिकाऊ विकास एजेंडे को तब तक सही मायनों में पूरा नहीं किया जा सकता जब तक नए विचारों, ऊर्जा और विकासशील देशों की सृजनात्कमता को जगह न दी जाए।

    उल्लेखनीय है कि भारत और अफ्रीकी देश दोनों मिलकर विश्व जनसंख्या का लगभग एक तिहाई हैं, अतः एक-दूसरे का ध्यान रखते हुए सहयोग करना और आगे बढ़ना लाभकारी है। भारत का व्यवसाय इसकी स्थिति बदलते रहे हैं और वर्तमान में अफ्रीका में बड़ी संख्या में भारतीय कंपनियाँ मौजूद हैं।

    उपाय-

    • अफ्रीका के संदर्भ में विविधतापूर्ण दृष्टिकोण अपनाया जाए क्योंकि वहाँ अन्य के अलावा अंग्रेजी, फ्रेंच और पुर्तगाली भाषा बोलने व् समझनें वाले लोग बड़ी संख्या में रहते हैं। अंग्रेजीभाषी अफ्रीकियों के साथ व्यापार एवं व्यवसाय के हमारे पारंपरिक रिश्ते रहे हैं, लेकिन बाकी अन्य दो के साथ संबंधों को मज़बूत बनाने पर बल दिये जाने की आवश्यकता है।
    • भारत को यूरेनियम, सोना, प्लूटोनियम, कॉपर आदि की आवश्यकता है जिसे अफ्रीका से मंगाया जा सकता है और इसके बदले भारत उन्हें तैयार उत्पाद दे सकता है।
    • भारत और अफ्रीकी राष्ट्रों- दोनों द्वारा सुरक्षा आवश्यकताओं पर अधिक ध्यान दिया जाना चाहिये प्रशिक्षण मामले में भी दोनों एक-दूसरे की सहायता कर सकते हैं।
    • ऊर्जा सुरक्षा पर और अधिक बल देने और उसे बढ़ाये जाने की आवश्यकता है। भारत पहले से ही सूडान, अंगोला, नाइजीरिया और गुयाना क्षेत्र की खाड़ी से तेल के आयात की कोशिश कर रहा है। यह इसलिये महत्त्वपूर्ण है कि पश्चिम एशियाई देशों पर वहाँ जारी उथलपुथल और अस्थिरता के कारण पूर्णतया भरोसा नहीं किया जा सकता।
    • आतंकवादी संपर्क के कारण सुरक्षा संबंध लगातार महत्त्वपूर्ण बने हुए हैं आतंकवादरोधी और समुद्री डकैतीरोधी गठबंधन द्वारा समुद्री क्षेत्रों की सुरक्षा के लिये समुद्री सुरक्षा को प्रोत्साहित किए जाने की आवश्यकता है। भारत और अफ्रीका के सामान्य हित के क्षेत्र, जैसे- सुरक्षा के क्षेत्र के रूप में हिन्द महासागर और आर्थिक सहयोग के मुद्दों पर और ध्यान दिये जाने की आवश्यकता है।
    • ऊर्जा और अवसंरचना में आर्थिक निवेश को सुरक्षा सहयोग निर्माण के हिस्से के तौर पर देखा जाना चाहिये।
    • दक्षिण अफ्रीका में ट्रुथ एंड रिकोन्सिलियेशन कमीशन रंगभेद को समाप्त करने के लिये बनाया गया था। भारत ऐसे नए प्रयोगों से शिक्षा ले सकता है।
    • अफ्रीकी देश जैसे नाइजीरिया या कांगो यह सीख सकते हैं कि भारत में लोकतंत्र वास्तव में कैसे कार्य करता है।
    • कृषि में अत्यधिक संभावना है क्योंकि कई अफ्रीकी देशों में बड़ी मात्रा में अप्रयुक्त कृषि भूमि है। इसमें उद्यम करने पर खाद्य सुरक्षा मुद्दे को हल किया जा सकता है। इस क्षेत्र की भारत के साथ पूर्ण पूरकता है क्योंकि हमारे पास कृषि उत्पादन में दक्ष जनसंख्या, एक बड़ा बाजार और प्रोसेसिंग क्षमता है।

    इसके अलावा भूतकाल से संबद्धताएँ जैसे गांधी-मंडेला-एंक्रूमा जैसे नेताओं को आपस में संबद्ध करके इसे स्थिरता प्रदान की जा सकती है। भारत को अफ्रीका तक पहुँच बनाने और चीन की तरह संबद्ध होने की आवश्यकता है ताकि हमारी संस्कृतियों का मिश्रण हो सके और विकास के लिये और अधिक संभावनाएँ खोजी जा सकें। भारत और अफ्रीका को एक मज़बूत आधार बनाने की आवश्यकता है जो पहले से ही विद्यमान है तथा सतत तरीके से और अधिक कूटनीतिक मिशन स्थापित करने और अधिक व्यापार मिशन, लगातार उच्चस्तरीय अनुबंध हेतु कार्य करना चाहिये, जिसमें शिखर स्तर पर संपर्क भी शामिल है। साथ ही दक्षिण-दक्षिण सहयोग के समकालीन क्षेत्रों, जैसे- अर्थव्यवस्था, निवेश, अवसंरचना विकास और मानव संसाधन पर अधिक ध्यान दिया जाना चाहिये।