• प्रश्न :

    सर्वोच्च न्यायालय द्वारा कई बार यह रेखांकित किया गया कि ऑनलाइन निजता के अधिकार घृणास्पद संदेशों तथा फेक न्यूज़ की उत्पत्ति का पता लगाने हेतु सोशल मीडिया के विनियमन की आवश्यकता है। सोशल मीडिया के विनियमन की आवश्यकता के पक्ष में तर्क प्रस्तुत करते हुए विपक्ष के बिंदुओं को भी रेखांकित करें।

    08 Jul, 2020 सामान्य अध्ययन पेपर 2 राजव्यवस्था

    उत्तर :

    हल करने का दृष्टिकोण:

    • भूमिका।

    • विनियम की आवश्यकता क्यों?

    • सोशल मीडिया के विनियमन की आवश्यकता के पक्ष में तर्क।

    सर्वोच्च न्यायालय द्वारा सरकार का ध्यान इस ओर आकृष्ट करने का प्रयास कई बार किया गया कि ऑनलाइन निजता के अधिकार को बनाए रखने, घृणास्पद संदेशों को फैलने से रोकने तथा फेक न्यूज़ की उत्पत्ति का पता लगाने के संदर्भ में सोशल मीडिया का विनियम आवश्यक है। इस संदर्भ में हाल ही में तमिलनाडु राज्य सरकार ने सर्वोच्च न्यायालय से प्रयोक्ताओं की सोशल मीडिया प्रोफाइल्स को उनकी आधार संख्या से लिंक करने का निवेदन किया है।

    विनियम की आवश्यकता क्यों?

    • सोशल मीडिया के माध्यम से सूचना का त्वरित प्रसार होता है। दुनिया के किसी भी हिस्से में घटित होने वाली घटना से संबंधित सूचना या दुष्प्रचार मिनटों में प्रसारित हो जाता है जिससे अराजकता भय तथा संघर्ष का महौल बनता है।
    • ट्विटर, फेसबुक, वाट्सएप, इंस्टाग्राम इत्यादि जैसे सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर प्रोफाइलों की संख्या में बहुत तेज़ी से वृद्धि हो रही है।
    • इसके माध्यम से भाषायी, धार्मिक तथा नृजातीय भिन्नता के आधार पर समुदायों के बीच होने वाली हिंसा को रोका जा सकता है।
    • यह प्रयोक्ता के सोशल मीडिया प्लेटफॉमर्स पर किये जाने वाले व्यवहार को उत्तम बनाने में सहयोगी बनें।

    विपक्ष के बिंदु-

    • सर्वोच्च न्यायालय ने पुट्टास्वामी बाद में निजता के अधिकार को मूल अधिकार माना है।
    • प्रोफाइल्स की आधार से लिंक करने के बाद उनका विनियमन करना निजता के अधिकार के विरुद्ध है। इससे व्यक्ति से संबंधित व्यक्तिगत या गोपनीय सूचनाओं के सार्वजनिक हो जाने का भय बना रहेगा।
    • डेटा सुरक्षा को लेकर भारत द्वारा कोई ठोस कदम अभी तक नहीं उठाया गया है। आधार के माध्यम से डेटा प्राप्त कर वाणिज्यिक कंपनियों द्वारा इसके वाणिज्यिक उपयोग का खतरा है।
    • इतनी बड़ी मात्रा में डेटा है किंतु इनके स्टोरेज है डाटा बैंकों की अनुपलब्धता है।
    • विशेषज्ञों का मानना है कि सरकार इसका उपयोग नागरिकों की निगरानी के उपकरण के तौर पर कर सकती है।
    • सोशल मीडिया की अनामिता ने महिलाओं तथा बंधित जातीय समूहों को अपने उत्पीड़न को उजागर करने का भी मौका दिया है। उदाहरण के लिये मी टू आंदोलन। विनियम इस समूह को अनामिता के लाभ में वंचित कर देगा।