• प्रश्न :

    ‘‘सार्क की निष्क्रियता भारत का बिम्स्टेक की ओर झुकाव का कारण है, किंतु बिम्स्टेक की ओर झुकाव होने के बावजूद भारत के लिये SAARC अभी भी प्रासंगिक है।’’ टिप्पणी करें।

    02 May, 2020 सामान्य अध्ययन पेपर 2 अंतर्राष्ट्रीय संबंध

    उत्तर :

    हल करे का दृष्टिकोण:

    • सार्क कि निष्क्रियता के बिंदु

    • बिम्सटेक कि तरफ झुकाव के बिंदु

    • सार्क कि प्रासंगिकता

    • निष्कर्ष

    विगत कुछ वर्षों से भारत तथा पाकिस्तान के मध्य बढ़ते तनाव के कारण भारत सरकार ने SAARC से BIMSTEC की और अपना ध्यान केंद्रित किया हैं इस परिवर्तन को निम्नलिखित घटनाओं द्वारा समझा जा सकता है-

    ‘काठमांडू सार्क सम्मेलन (2014): पाकिस्तान ने भारत द्वारा प्रारंभ किये गए संबद्धता समझौतों को वीटो कर अवरुद्ध कर दिया था, जबकि अन्य सभी देश इस पर हस्ताक्षर करने पर सहमत थे।’

    • वर्ष 2016 के उरी हमले के बाद भारत ने इस्लामाबाद में आयोजित होने वाले SAARC सम्मेलन का बहिष्कार किया। बाद में इस सम्मेलन को रद्द कर दिया गया।
    • वर्ष 2017 के BIMSTEC शिखर सम्मेलन में, भारत के प्रधानमंत्री ने घोषणा की कि ‘यह नेबरहुड फर्स्ट और एक्ट ईस्ट की नीति के तहत निर्धारित हमारी विदेशी नीति की प्रमुख प्राथमिकताओं की पूर्ति हेतु एक स्वाभाविक मंच है।’
    • इसके पश्चात वर्ष 2018 में नेपाल में आयोजित BIMSTEC शिखर सम्मेलन में एक प्रस्ताव पारित किया गया, जिसके अनुसार आतंकवाद को प्रोत्साहन, समर्थन या वित्त प्रदान करने वाले तथा आतंकवादियों तथा आतंकी समूहों को शरण प्रदान करने वाले देशों को आतंकी गतिविधियों हेतु उत्तरदायी ठहराया जाएगा। 

    भारत के BIMSTEC की ओर झुकाव के कारण SAARC की निष्क्रियता, BIMSTEC द्वारा भारत के आर्थिक हितों की पूर्ति, BIMSTEC देशेां के साथ बेहतर कनेक्टिविटी तथा रणनीतिक रूप से इससे मिलने वाले लाभ है। किंतु BIMSTEC की ओर झुकाव के बावजूद SAARC अभी भी भारत के लिये प्रासंगिक है जिसे निम्नलिखित बिंदुओं तहत समझा जा सकता है-

    • एक संगठन के रूप में SAARC ऐतिहासिक तथा समकालीन रूप से इस क्षेत्र को ‘दक्षिण एशियाई पहचान’ को प्रातिबिंबित करता है। इसके अतिरिक्त इसकी अपनी भागौलिक पहचान भी है। 
    • इस क्षेत्र में सांस्कृतिक, भाषाई, धार्मिक एवं खान-पान संबंधी समानता भी विद्यमान है। ये तत्व दक्षिण एशिया को एक एकीकृत क्षेत्र के रूप में परिभाषित करते है। अपनी उपलब्धियों के बावजूद BIMSTEC, सदस्य राष्ट्रों को एक साक्षी पहचान प्रदान करने में सक्षम नहीं हो पाया है।
    • दक्षिण एशियाई देश अपनी सामाजिक राजनीतिक राज्य की पहचान के अंतर्गत बंधे हुए है, क्योंकि उनके द्वारा एक समान रूप से आतंकवाद, समान आर्थिक चुनौतियों, आपदा इत्यादि जैसे खतरों एवं चुनौतियों का सामना किया जाता है।
    • अपनी स्थापना के साथ ही BIMSTEC को विभिन्न चुनौतियों का सामना करना पड़ा है। यह SAARC के समान संस्थागत नहीं हुआ है, जबकि अपने सबसे बड़े सदस्यों के मध्य राजनीतिक तनाव विद्यमान होने के बावजूद SAARC के पास सहयोग हेतु विभिन्न संस्थाएं उपलब्ध हैं।

    निष्कर्षत: दोनों ही संगठन भौगोलिक रूप से अतिव्यापी क्षेत्रों पर ध्यान केंद्रित करते हैं। किंतु यह कारक एक दूसरे को विकल्प के रूप में नहीं प्रस्तुत करते हैं। भारत को क्षेत्र विशिष्ट की आवश्यकताओं तथा समस्याओं के अनुरूप अनौपचारिक वार्ताओं, औपचारिक मध्यस्थता तथा समस्या समाधान हेतु विभिन्न तंत्रों का निर्माण कर दोनों में संतुलन बनाने की आवश्यकता है न कि दोनों में किसी एक के चुनाव या झुकाव की।