• प्रश्न :

    भारत में नि:शुल्क विधिक सहायता संवैधानिक रूप में गारंटी प्राप्त एक अनिवार्य मूल अधिकार है। भारत में विधिक सहायता सेवा तक पहुँच में जाने वाली बाधाओं की चर्चा करते हुए, इनमें सुधार हेतु उपाय सुझाइये।

    21 Apr, 2020 सामान्य अध्ययन पेपर 2 राजव्यवस्था

    उत्तर :

    हल करने का दृष्टिकोण:

    • नि:शुल्क विधिक सहायता एक अनिवार्य मूल अधिकार

    • नि:शुल्क विधिक सहायता में होने वाली बाधाएँ

    • उपाय

    • निष्कर्ष

    नि:शुल्क विधिक सेवा के माध्यम से उन लोगों को विधिक सहायता प्रदान की जाती है जो अपने दीवानी एवं आपराधिक मामलों के लिये एक वकील की सेवाओं को प्राप्त करने तथा विधिक प्रक्रिया की लागत वहन करने में सक्षम नहीं होते हैं।

    भारत में नि:शुल्क विधिक सहायता गारंटीकृत एक अनिवार्य मूल अधिकार है। यह संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत प्रदत्त एक युक्तियुक्त, निष्पक्ष तथा न्यायोचित स्वतंत्रता का आधार तैयार करता है। भारतीय संविधान भी राज्य को उपयुक्त कानून, योजनाओं अथवा किसी अन्य विकल्प के द्वारा नि:शुल्क विधिक सेवा अधिनियम 1987 के तहत केंद्र सरकार द्वारा ‘राष्ट्रीय विधिक सेवा प्राधिकरण’ (NALSA) का गठन किया गया। प्रत्येक राज्य में राज्य विधिक सेवा प्राधिकरण तथा प्रत्येक उच्च न्यायालय में एक उच्च न्यायालय विधिक सेवा समिति गठित की गई है।

    बाधाएँ

    • जागरुकता का अभाव
    • ज्यूरी में सूचीबद्ध वकीलों की अल्पसंख्या
    • दीर्घकाल तक विभिन्न मामलों पर निर्णय न आना
    • गुणवत्तापरक सेवा का अभाव
    • सरकार द्वारा वकीलों को किया जाने वाला भुगतान बहुत कम होता है।
    • संविधान का अनुच्छेद 22, एक गिरफ्तार व्यक्ति को वकील प्राप्त करने के अधिकार की गारंटी प्रदान करता है, लेकिन पुलिस स्टेशनों पर विधिक सहायता करने हेतु कोई राष्ट्रीय योजना नहीं है तथा राज्यों के पास भी ऐसी योजनाओं का अभाव है।

    उपाय

    • भारत में सफल विधिक सहायता वितरण के लिये सरकार को एक अभियान शुरू करना चाहिये जिसके द्वारा लोगों को नि:शुल्क विधिक सहायता के अपने अधिकार के बारे में सूचित तथा शिक्षित किया जाए।
    • वरिष्ठ वकीलों को विधिक सहायता योजनाओं में शामिल करना और उनसे प्रत्येक वर्ष कुछ मामलों में नि:शुल्क सेवा प्रदान करने का अनुरोध करना।
    • विधिक सहायता तथा सेवाएँ प्रदान करने का अनुरोध करना।
    • चयन तथा प्रशिक्षण के साथ-साथ नियुक्त वकीलों की निगरानी की प्रणाली में सुधार की आवश्यकता है।
    • सरकार को नागरिक समाज द्वारा संचालित विधि नवाचारी पहलों का समर्थन करना चाहिये।
    • ग्राहक का फीडबैक लेना चाहिये यह विधिक प्रतिनिधित्त्व गुणवत्ता के मापन की महत्त्वपूर्ण विधि है।