• प्रश्न :

    क्या भारत में शरणार्थी समस्या के समाधान में संविधान के भाग-2 में उपबंधित नागरिकता संबंधी प्रावधान अपर्याप्त सिद्ध हुए हैं अथवा यह समस्या शासन की कमियों का परिणाम है? हाल के रोहिंग्या समस्या के आलोक में अपने मत की विवेचना करें।

    31 Mar, 2020 सामान्य अध्ययन पेपर 2 राजव्यवस्था

    उत्तर :

    हल करने का दृष्टिकोण

    • संविधान में नागरिकता संबंधी प्रावधान का उल्लेख करें।

    • शरणार्थियों की समस्या के समाधान के लिये सरकार द्वारा किये गए प्रयासों का उल्लेख करें।

    • रोहिंग्या समस्या को संक्षेप में बताते हुए शरणार्थी समस्या के समाधान हेतु सुझाव बताएँ।

    भारतीय संविधान के भाग-II में नागरिकता संबंधी प्रावधान हैं, जिसमें सिर्प यह बताया गया है कि संविधान के लागू होने के समय किन व्यक्तियों को भारत का नागरिक माना जाएगा। बाद की स्थितियों के लिये नागरिकता संबंधी कानून बनाने की पूर्ण शक्ति संसद को दी गई है, जिसके आधार पर सर्वप्रथम 1955 में नागरिकता अधिनियम पारित किया गया, जिसमें समय-समय पर प्रासंगिक संशोधन  भी किये गए हैं।

    हाल ही में रोहिंग्या शरणार्थियों को लेकर भारत में शरणार्थी समस्या एक बार फिर से चर्चा में है। संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार परिषद के अनुसार भारत में लगभग दो लाख शरणार्थी रह रहे हैं जिसमें से केवल तीस हज़ार पंजीकृत हैं।

    वस्तुुत: भारत ने शरणार्थियों से संबंधित कई मानवाधिकार संधियों पर हस्ताक्षर किये हैं जिसमें शरणार्थियों को वापस न भेजे जाने का संकल्प भी है लेकिन इसके पालन के लिये स्थानीय स्तर पर कोई कानून नहीं है। इसी तरह, भारत ने संयुक्त राष्ट्र शरणार्थी कन्वेंशन एवं 1967 के प्रोटोकाल पर हस्ताक्षर नहीं किये हैं, जिस पर हस्ताक्षर करने के बाद शरणार्थियों की मदद करना कानूनी बाध्यता हो जाती है।

    फलत: भारत के पास कोई शरणार्थी नीति नहीं है जिसकी वजह से शरणार्थियों की वैधानिक स्थिति अनिश्चित एवं अंतर्राष्ट्रीय मानकों के विरुद्ध है और शरणार्थियों को कई प्रकार की समस्याओं का सामना करना पड़ता है-

    वे अच्छी शैक्षणिक योग्यता के बावजूद मान्यता एवं कामकाजी वीज़ा के अभाव में अच्छी नौकरी नहीं कर पाते हैं।

    पुलिस उत्पीड़न एवं भेदभाव का शिकार होते हैं।

    जहाँ तक रोहिंग्या शरणार्थियों की बात है तो सरकार निम्नलिखित कारणों से इन्हें वापस भेजना चाहती है-

    राष्ट्रीय सुरक्षा

    जनांकिकीय असुंतलन

    शरणार्थियों का पहले से ही अत्यधिक दबाव।

    वस्तुत: भारत में शरणार्थी समस्या गवर्नेंस की कमियों का ही परिणाम है। क्योंकि संविधान में नागरिकता संबंधी कानून बनाने की पूर्ण शक्ति संसद को प्रदान की गई है तथा सरकार की शरणार्थियों के संदर्भ में अभी तक कोई स्पष्ट नीति नहीं है।

    अत: शरणार्थी समस्या के समाधान के लिये एक स्पष्ट शरणार्थी नीति की आवश्यकता है जो शरणार्थियों के प्रबंधन के लिये पारदर्शी एवं जवाबदेह व्यवस्था का निर्माण करे तथा जो भारत के आतिथ्य सत्कार एवं शरण देने की परंपरा के अनुकूल हो। उच्चतम न्यायालय ने भी खुदीराम चकमा बनाम अरुणाचल प्रदेश मामले में शरणार्थी सुरक्षा के महत्त्व पर ज़ोर दिया था।