• प्रश्न :

    क्षेत्रीय विभेदीकरण की संकल्पना को स्पष्ट कीजिये तथा यह बताइए कि इसकी आलोचना के आधार कितने प्रासंगिक हैं?

    21 Oct, 2019 रिवीज़न टेस्ट्स भूगोल

    उत्तर :

    प्रश्न विच्छेद

    • क्षेत्रीय विभेदीकरण की संकल्पना तथा आलोचना के आधारों की प्रासंगिकता।

    हल करने का दृष्टिकोण

    • क्षेत्रीय विभेदीकरण की संकल्पना को स्पष्ट करें।
    • आलोचना के आधारों की चर्चा करें।
    • निष्कर्ष में आलोचना के आधारों की प्रासंगिकता स्पष्ट करें।

    एक क्षेत्र में व्याप्त विशिष्टता का दूसरे क्षेत्र से भिन्न होना क्षेत्रीय विभेदीकरण कहलाता है। भूगोल में क्षेत्रीय विभेदीकरण की नींव हिकेटियस ने रखी थी तथा स्ट्रैबो ने इसे प्रदेश विज्ञान के रूप में प्रस्तुत किया। इसके अंतर्गत पृथ्वी के विभिन्न क्षेत्रों का अध्ययन उनकी भौगोलिक पृष्ठभूमि में किया जाता है। चूँकि प्रत्येक क्षेत्र का अपना भौगोलिक महत्त्व होता है, अत: वह अन्य क्षेत्र से भिन्न होता है। 1950 तथा 1960 के दशक में मात्रात्मक क्रांति के कारण यह अप्रासंगिक हो गया परंतु 1980 के दशक में यह पुन: मानव भूगोल का केंद्र बिंदु बन गया।

    आलोचना के आधार-

    • इस संकल्पना में क्षेत्रों में व्याप्त भिन्नताओं पर मुख्य ज़ोर दिया गया तथा सादृश्यता की अवहेलना की गई, जबकि कई बार ऐसा देखा गया है कि दो भिन्न क्षेत्रों में भिन्नता से ज़्यादा सादृश्यता के तत्त्व विद्यमान रहते हैं। अत: यह भूगोल का एकपक्षीय वर्णन है।
    • हैटनर और सॉवर द्वारा इस संकल्पना के संदर्भ में प्रयोग किये गए शब्द, अर्थ में भिन्नता दर्शाते हैं। हैटनर द्वारा प्रस्तुत क्षेत्रीय विभेदन का वास्तविक अर्थ क्षेत्रों में अंतर नहीं बल्कि क्षेत्रों की विविधता है, जबकि सॉवर स्पष्ट रूप से अंतर की बात करता है।
    • आलोचना का एक अन्य बिंदु यह है कि भूगोल केवल क्षेत्रीय भिन्नता ही नहीं बल्कि क्षेत्रीय संबंधों का भी अध्ययन है। दो क्षेत्रों में संरचना, उच्चावच, जलवायु, मृदा आदि में भिन्नता के साथ-साथ कुछ समानताएँ भी पाई जा सकती हैं।
    • किन्हीं दो क्षेत्रों के मध्य स्पष्ट सीमा रेखा का निर्धारण कठिन कार्य है क्योंकि सामाजिक समुदायों में आर्थिक, सांस्कृतिक व नैतिक बदलाव तीव्रता से घटित होते हैं।
    • इसका अध्ययन कोई प्रभावी व स्थायी निष्कर्ष प्रस्तुत नहीं करता तथा कोई भी प्रदेश पूर्णरूप से अलग और स्वावलंबी नहीं होता।

    यद्यपि इसकी आलोचना करते हुए इसे अव्यावहारिक बताया गया है परंतु इसके आधार पर विषय की परिभाषा अत्यंत तर्कपूर्ण, वैज्ञानिक और यथार्थपरक की जा सकती है। साथ ही, इसने प्रादेशिक भूगोल के अध्ययन को एक नवीन आयाम प्रदान किया।