• प्रश्न :

    क्या आप मानते हैं कि ‘सरकारी गोपनीयता अधिनियम’ सूचना के अधिकार अधिनियम के मौलिक लक्ष्यों की प्राप्ति में अवरोधक है? विभिन्न आयोगों एवं समूहों के मंतव्यों के आधार पर तर्कपूर्ण उत्तर दें। (150 शब्द)

    04 Oct, 2019 सामान्य अध्ययन पेपर 4 सैद्धांतिक प्रश्न

    उत्तर :

    प्रश्न विच्छेद

    • प्रश्न में सूचना के अधिकार अधिनियम और सरकारी गोपनीयता अधिनियम के द्वंद्व को स्पष्ट करना है।

    हल करने का दृष्टिकोण

    • प्रथम भाग में सूचना के अधिकार अधिनियम के उद्देश्यों और प्रभावों का संक्षिप्त उल्लेख करना है।

    • दूसरे भाग में सरकारी गोपनीयता अधिनियम की सूचना के अधिकार से विसंगति को दर्शाना है।

    • निष्कर्ष।

    उत्तर: सुशासन, पारदर्शिता तथा उत्तरदायित्व के लक्ष्यों को ध्यान में रखते हुए भारत सरकार द्वारा वर्ष 2005 में ‘सूचना का अधिकार’ कानून बनाया गया। सर्वोच्च न्यायालय ने अपने निर्णय में सूचना के अधिकार को संविधान द्वारा प्रदत्त मौलिक अधिकार माना है। वस्तुत: अनुच्छेद 19 में बोलने के अधिकार के तहत जानकारी प्राप्त करने का भी अधिकार सम्मिलित है। इसी निर्णय के आलोक में संसद द्वारा भी व्यावहारिक कानून के निर्माण को आवश्यक समझा गया, जिसका उपयोग कर नागरिक सरकारी प्राधिकरणों से सूचना प्राप्त कर सकें और सरकारी एजेंसियों के कामकाज में पारदर्शिता एवं उत्तरदायित्व को बढ़ावा मिल सके।

    यद्यपि सूचना का अधिकार कानून ने सरकारी कार्य-प्रणाली में पारदर्शिता को बहुत हद तक बढ़ाया है। लोगों की पहुँच कई सरकारी दस्तावेज़ों तक हुई जिससे सरकारी कार्य-प्रणाली के संबंध में लोगों की जानकारी बढ़ी तथा भ्रष्टाचार पर भी कुछ हद तक नियंत्रण लगा। तथापि आज भी ‘सरकारी गोपनीयता अधिनियम’ (OSA) के नाम पर कई महत्त्वपूर्ण जानकारियाँ पब्लिक डोमेन में नहीं आ पाती हैं।

    सूचना के अधिकार से संबंधित अनेक कार्यकर्त्ताओं ने समय-समय पर ओ.एस.ए. (OSA) को समाप्त करने अथवा उसमें भारी बदलाव किये जाने की मांग की है। इतना ही नहीं द्वितीय प्रशासनिक सुधार आयोग ने भी ओ.एस.ओ. को निरस्त करने का सुझाव दिया तथा राष्ट्रीय सुरक्षा अधिनियम में जासूसी के लिये अलग प्रावधान किये जाने की सिफारिश की। आगे मंत्रियों के एक समूह ने कई सिफारिशों को स्वीकृति दी तथापि ओ.एस.ए (OSA) को निरस्त करना अस्वीकार कर दिया गया।

    सरकार का मानना है कि ओ.एस.ए. आवश्यक है और इसके प्रावधानों का कोई विशेष दुरुपयोग नहीं हुआ है। उपरोक्त चर्चा के आधार पर यह निष्कर्ष निकलता है कि सरकार देश की सुरक्षा के लिये ओ.एस.ए को ज़रूरी समझती है। वर्तमान परिप्रेक्ष्य में बेहतर यह होगा कि सरकार एक समिति का निर्माण करे, जिसमें सभी संबंधित पक्षों का प्रतिनिधित्व हो और वह ओ.एस.ए. (OSA) की आवश्यकता तथा इसमें अपेक्षित बदलावों की सिफारिश करें एवं सरकार को उसके अनुरूप कार्य करना चाहिये।