• प्रश्न :

    भारत में आई आर्थिक मंदी इसके विकास की राह में सबसे बड़ी बाधा है। आर्थिक मंदी के कारणों और उपायों पर चर्चा कीजिये।

    13 Sep, 2019 सामान्य अध्ययन पेपर 3 अर्थव्यवस्था

    उत्तर :

    हल करने का दृष्टिकोण

    • परिचय में आर्थिक मंदी को समझाइये।

    • आर्थिक मंदी का भारतीय अर्थव्यवस्था पर प्रभाव बताइये।

    • आर्थिक मंदी के कारण व इससे निपटने के समाधान सुझाइये।

    • अंततः संतुलित निष्कर्ष लिखिये।

    यदि अर्थव्यवस्था में लगातार दो तिमाही में आर्थिक वृद्धि की दर नकारात्मक हो तो उसे मंदी की संज्ञा दी जाती है। इसके अतिरिक्त ऐसी स्थिति में मांग में कमी आती है, मुद्रास्फीति दर में गिरावट आती है, साथ ही रोज़गार में कमी होती है तथा बेरोज़गारी में वृद्धि होती है। वर्ष 2019 की प्रथम तिमाही के लिये GDP की वृद्धि दर घटकर 5 प्रतिशत पर आ गई है। ये आँकड़े पिछले 6 वर्ष में सबसे खराब माने जा रहे हैं तथा इससे देश में आर्थिक मंदी की संभावना और अधिक बढ़ गई है।

    चूँकि भारत विकसित देश बनने की राह में अग्रसर है तथा साथ ही विश्व की बड़ी अर्थव्यवस्थाओं में यह अपना छठा स्थान रखता है। अतः ऐसी स्थिति में आर्थिक मंदी भारतीय अर्थव्यवस्था पर निश्चित ही बुरा प्रभाव डालेगी। इसके अतिरिक्त बेरोज़गारों की संख्या में वृद्धि होने से लोगों के जीवन स्तर में कमी आएगी तथा निवेश में कमी से देश का अवसंरचनात्मक विकास भी रूक जाएगा ये सभी प्रभाव देश के विकास में अवरोध उत्पन्न करेंगे।

    आर्थिकी मंदी के कारण:

    • विमुद्रीकरण ने भारत के असंगठित क्षेत्र तथा रियल एस्टेट को सर्वाधिक प्रभावित किया और इससे आर्थिक मंदी को बढ़ावा मिला।
    • GST के ढाँचे तथा क्रियान्वयन को लेकर उत्पन्न समस्याओं ने उद्यमों को नकारात्मक रूप से प्रभावित किया।
    • विदेशी निवेश के सीमित होने से भी नए रोज़गारों का सृजन नहीं हो सका।
    • पिछले एक दशक से गैर-निष्पादित संपत्ति (NPA) की दर उच्च बनी हुई है।
    • पिछले कुछ वर्षों के दौरान सरकार की योजनाएँ मुद्रास्फीति को कम करने के उद्देश्य से प्रेरित रहीं, जिसका नकारात्मक प्रभाव ग्रामीण मांग पर भी पड़ा।
    • अमेरिकी प्रशासन की संरक्षणवादी नीतियों तथा चीन के साथ छिड़े व्यापार युद्ध ने विश्व व्यापार को संकुचित किया है।
    • रोज़गारी एवं अन्य कारकों से घरेलू (Households) बचत में कमी आई है।

    समाधान हेतु उपाय

    • अल्पकालिक जोखिम को कम करने के लिये कीन्स के मांग प्रोत्साहन सिद्धांत को अवसर देना उपयुक्त होगा। हमें एक या दो वर्षों के लिये राजकोषीय घाटे में सुनिश्चित वृद्धि करने के लिये तैयार रहना चाहिये। यह वस्तुओं की मांग को बढ़ावा देगा और भारतीय फर्मों तथा कृषि के लिये अत्यंत उपयोगी समर्थन होगा।
    • यदि अतिरिक्त व्यय को निर्धनों और कृषि क्षेत्र की ओर मोड़ा जाए तो उन लोगों को मदद मिलेगी जिन्हें इसकी सबसे अधिक आवश्यकता है। एक अन्य मद जिस पर सरकार अपने व्यय में वृद्धि कर सकती है, आधारभूत संरचना का विकास है। यह मांग को भी प्रोत्साहन दे सकता है और निवेश में भी वृद्धि ला सकता है।
    • कुछ अन्य दीर्घकालिक विषयों पर विचार करें तो नौकरशाही की लागत में कटौती जारी रखनी चाहिये।

    वित्त वर्ष 2025 तक सरकार ने भारत की अर्थव्यवस्था को 5 ट्रिलियन डॉलर तक पहुँचाने का लक्ष्य तय किया है, लेकिन वर्तमान आर्थिक वृद्धि दर को देखते हुए यह लक्ष्य प्राप्त होना संभव नहीं है। ध्यातव्य है कि GDP एक रोटी (Bread) के समान है यदि उसके हिस्सों को बड़ा करना है तो रोटी का आकार भी बड़ा करना पड़ेगा अर्थात् अन्य ज़रूरी क्षेत्रों जैसे- स्वास्थ्य, शिक्षा, प्रतिरक्षा, अवसंरचना में अधिक खर्च करना है, तो इसके लिये आर्थिक वृद्धि दर का तीव्र होना आवश्यक है।