• प्रश्न :

    भारत में जहाँ करीब 60% आबादी कृषि पर निर्भर है, 2005 के बाद से दस साल की अवधि में प्रति 100,000 लोगों पर 1.4 से 1.8 किसान आत्महत्याएँ हुई हैं। किसानों में बढ़ती निराशा के कारणों की चर्चा कीजिये और किसानों की आत्महत्याओं को रोकने के उपाय सुझाइये। (250 शब्द)

    27 Apr, 2019 सामान्य अध्ययन पेपर 3 अर्थव्यवस्था

    उत्तर :

    प्रश्न विच्छेद

    ♦ प्रश्न को समझने के लिये आप सबसे पहले इसे दो भागों में विभाजित कीजिये। पहले भाग में किसानों की आत्महत्या से संबंधित आँकड़ों की बात की गई है, वहीं दूसरे भाग में किसान आत्महत्या के कारण एवं इसके निवारण के उपाय पूछे गए हैं।

    हल करने का दृष्टिकोण

    ♦ अब बात करते हैं इसके उत्तर की शुरुआत की। सर्वप्रथम संक्षिप्त भूमिका के साथ इसकी शुरुआत कीजिये।

    ♦ इसके बाद किसान आत्महत्या से संबंधित कुछ आँकड़ों का उल्लेख कीजिये।

    ♦ किसान आत्महत्या के कारण एवं उसके निवारण के उपाय बताएँ।

    ♦ अंत में निष्कर्ष लिखें।

    एक बात पर विशेष रूप से ध्यान दीजिये कि यह आवश्यक नहीं है कि आपका उत्तर पैराग्राफ में ही लिखा हुआ हो, आप पॉइंट टू पॉइंट लिखने का प्रयास कीजिये। परीक्षा भवन में परीक्षक का जितना ध्यान आपके उत्तर के प्रस्तुतिकरण पर होता है उतना ही ध्यान इस बात पर भी होता है कि आप कम-से-कम शब्दों में (एक अधिकारी की तरह) अपनी बात को समाप्त करें।


    भारत एक कृषि प्रधान देश है, जिसकी लगभग 60 प्रतिशत आबादी प्रत्यक्ष या प्रत्यक्ष रूप से अपनी आजीविका के लिये कृषि पर निर्भर है। ऐसे परिदृश्य में किसानों में बढ़ती आत्महत्या की प्रवृत्ति चिंताजनक है।

    • 2005 के बाद से दस साल की अवधि में किसान आत्महत्या की दर प्रति एक लाख लोगों पर 1.4 से 1.8 के बीच रही है।
    • राष्ट्रीय अपराध रिकार्ड ब्यूरो के अनुसार 1995 से लेकर अब तक (2015) लगभग 3 लाख किसानों ने आत्महत्या की है। इस रिपोर्ट के अनुसार 2014 में जहाँ 5650 किसानों ने आत्महत्या की वहीं, 2015 में यह 8000 के आँकड़े को पार कर गया था। किसानों की आत्महत्या देश के लगभग सभी क्षेत्रों में हो रही है।

    किसानों के बीच बढ़ती निराशा के कारण निम्नलिखित हैं, जिनके कारण वे आत्महत्या जैसा कदम उठाते हैं।

    • जलवायु परिवर्तन के कारण सूखा एवं बाढ़ जैसी आपदाओं की बारम्बारता में वृद्धि, जिससे फसल बर्बाद हो जाती है।
    • दोषपूर्ण आर्थिक नीतियाँ जिसके कारण कृषि धीरे-धीरे घाटे का सौदा बन गई।
    • किसानों पर बढ़ता ऋणों का बोझ। नेशनल व्राइम रिकार्ड ब्यूरो के अनुसार 2015 में 3000 किसानों से ऋणग्रस्तता से तंग आकर आत्महत्या कर ली।
    • गरीबी एवं बीमारी, जिसका कृषकों की घटती आय से प्रत्यक्ष रूप से संबंध है।
    • भू-जोत के आकार का दिन-प्रतिदिन छोटा होता जाना। नेशनल व्राइम रिकार्ड ब्यूरो के अनुसार आत्महत्या करने वाले किसानों में 72 प्रतिशत छोटे एवं सीमांत किसान हैं।
    • इसके अलावा जल संसाधनों की अपर्याप्त उपलब्धता, सामाजिक एवं पारिवारिक समस्या आदि भी कारण हैं।

    यद्यपि सरकार ने किसानों की आय 2022 तक दोगुना करने के लक्ष्य को लेकर कई कदम उठाए हैं, जैसे उत्पादन लागत के डेढ़ गुना न्यूनतम समर्थन मूल्य की घोषणा, प्रधानमंत्री सिंचाई योजना, मृदा स्वास्थ्य कार्ड एवं ई-नैम आदि। फिर भी किसानों की आत्महत्याओं को रोकने के लिये निम्नलिखित उपाय अपनाए जाने चाहिये-

    • किसानों को कम कीमत पर बीमा एवं स्वास्थ्य सुविधाएँ प्रदान की जाएँ।
    • राज्य स्तर पर किसान आयोग का गठन किया जाए ताकि किसी भी प्रकार की समस्या का जल्द हल निकाला जा सकें।
    • कृषि शोध एवं अनुसंधान के माध्यम से ऐसे बीजों को विकसित किया जाए जो प्रतिकूल मौसम में भी उपज दे सकें।
    • किसानों को तकनीकी, प्रबंधन एवं विपणन संबंधी सहायता प्रदान की जाए।
    • इस संबंध में स्वामीनाथन आयोग की सिफारिशों को लागू किया जाए।
    • कृषि क्षेत्र के लिये संस्थागत ऋण में वृद्धि की जाए।

    वस्तुत: किसान देश के अन्नदाता हैं और इनकी आत्महत्या का मामला एक दुर्भाग्यपूर्ण मुद्दा है अत: इसके समाधान के लिये उपर्युक्त उपायों के साथ-साथ विभिन्न नीतियों एवं कार्यव्रमों का प्रभावी व्रियान्वन किया जाना चाहिये।