• प्रश्न :

    शीतोष्ण चक्रवात के जीवन-चक्र का संक्षेप में वर्णन कीजिये।

    02 Aug, 2018 सामान्य अध्ययन पेपर 1 भूगोल

    उत्तर :

    उत्तर की रूपरेखा

    • प्रभावी भूमिका में शीतोष्ण चक्रवात के जीवन-चक्र की अवस्थाओं को संक्षेप में समझाएँ।
    • तार्किक एवं संतुलित विषय-वस्तु में अवस्थाओं का वर्णन करें।

    शीतोष्ण कटिबंधीय चक्रवातों के वाताग्रजनन से लेकर उसके अवसान तक के समय को चक्रवात का जीवन-चक्र कहते हैं, जो 6 क्रमिक अवस्थाओं में संपन्न होता है। ये अवस्थाएँ निम्नलिखित हैं-

    1. प्रथम अवस्था: सर्वप्रथम विपरीत भौतिक गुणों वाली दो वायुराशियों का अभिसरण होता है। आरंभिक अवस्था में गर्म, हल्की, वायुराशियाँ तथा ठंडी एवं भारी वायुराशियाँ एक-दूसरे के समानांतर प्रवाहित होती हैं जिस कारण स्थायी वाताग्र का निर्माण होता है। गर्म तथा ठंडी हवाएँ समदाब रेखाओं के समानांतर चलती हैं क्योंकि ठंडी हवा की सीधी पूर्व दिशा होती है जबकि गर्म हवा पश्चिम से पूर्व की ओर चलती है। स्थायी वाताग्र संतुलित दशा में रहता है। इस अवस्था को आरंभिक अवस्था कहते हैं। 
    2. द्वितीय अवस्था: इस अवस्था में गर्म एवं ठंडी वायुराशियाँ एक-दूसरे में बलात् प्रवेश करती हैं जिस कारण प्रारंभिक अवस्था वाले स्थायी वाताग्र का संतुलन विक्षुब्ध हो जाता है तथा एक अस्थिर वाताग्र का निर्माण होता है जो कि लहरनुमा होता है। इसे लहरनुमा वाताग्र कहते हैं। 
    3. तृतीय अवस्था: इसे प्रौढ़ावस्था भी कहते हैं जब चक्रवात का पूर्ण विकास हो जाता है तथा समदाब रेखाएँ लगभग गोलाकार हो जाती हैं। इस प्रकार उष्ण एवं शीत वाताग्रों का पूर्णतया विकास हो जाता है तथा इन दोनों वाताग्रों का उष्ण वृत्तांश द्वारा अलगाव होता है। उष्ण वाताग्र की अपेक्षा शीत वाताग्र के तेज़ गति से आगे बढ़ने के कारण उष्ण वृत्तांश लगातार संकरा होता जाता है। ज्ञातव्य है कि गर्म वायु ही दोनों वाताग्रों के सहारे बलात् ऊपर उठाई जाती है, अतः इसमें यदि पर्याप्त नमी होती है तो एडियाबेटिक विधि से शीतलन तथा संघनन होने पर यह पर्याप्त वर्षा करती है। उष्ण वाताग्री वर्षा धीरे-धीरे लंबे समय तक होती है, जबकि शीत वाताग्री वर्षा अल्प अवधि वाली होती है परंतु मूसलाधार रूप में होती है। शीत वाताग्री वर्षा के साथ हिमपात तथा ओलापात भी हो जाता है, परंतु यह स्थानीय दशाओं पर निर्भर करता है। 
    4. चतुर्थ अवस्था: इस अवस्था में शीत वाताग्र के तेज़ी से आगे बढ़ने के कारण उष्ण वृत्तांश संकुचित होने लगता है, क्योंकि उष्ण वाताग्र की अपेक्षा अधिक तेज़ गति के कारण शीत वाताग्र, उष्ण वाताग्र के समीप आ जाता है। 
    5. पंचम अवस्था: पाँचवीं अवस्था में चक्रवात का अवसान होना प्रारंभ हो जाता है, जबकि शीत वाताग्र, उष्ण वाताग्र का अंतिम रूप से अभिलंघन कर लेता है तथा अधिविष्ट वाताग्र का निर्माण हो जाता है। इसे अभिधारण अवस्था कहते हैं।
    6. षष्ठम अवस्था: इस छठी अवस्था को चक्रवात की अवसान अवस्था कहते हैं। इस अवस्था में उष्ण वाताग्र पूर्णतया समाप्त हो जाता है तथा चक्रवात का अवसान हो जाता है।