• प्रश्न :

    ‘प्रतिस्पर्द्धी संघवाद’ की अवधारणा भारत में न केवल व्यावसायिक वातावरण अपितु सामाजिक सुरक्षा को भी मज़बूती प्रदान करेगी। कथन के संदर्भ में ‘प्रतिस्पर्द्धी संघवाद’ को स्पष्ट करते हुए विभिन्न राज्यों द्वारा उठाए गए कदमों का विवरण दें।

    05 Apr, 2017 सामान्य अध्ययन पेपर 2 राजव्यवस्था

    उत्तर :

    किसी ‘संघ’ में विभिन्न राज्यों द्वारा आर्थिक-सामाजिक विकास हेतु कानून, प्रशासन एवं वित्त क्षेत्र में एक-दुसरे से की गई स्वस्थ प्रतिस्पर्धा  ‘प्रतिस्पर्धी संघवाद’ कहलाती हैं।

    इस अवधारणा के अंतर्गत विभिन्न राज्य अपना ‘विकास’ बढ़ाने तथा अपने नागरिकों को उचित मूल्यों पर वृहद स्तर की सेवाएँ प्रदान करने हेतु किसी एक निश्चित राष्ट्रीय नीति को अपनाने की बजाए अपनी भौगोलिक, आर्थिक, सामाजिक विशिष्टता के आधार पर भिन्न-भिन्न नीतियों का निर्माण करते हैं।

    इस संदर्भ में, भारत में प्रतिस्पर्धी संघवाद को मजबूत करने हेतु योजना आयोग को नीति आयोग द्वारा प्रतिस्थापित किया गया है जोकि राज्य सरकारों को सशक्त करने तथा ‘विकास’ में राज्यों की भूमिका बढ़ाने हेतु प्रतिबद्ध है। इसके अतिरिक्त केन्द्रीय अनुदान में राज्यों की हिस्सेदारी में 10 प्रतिशत बढ़ा दी गई तथा इसका व्यय राज्य अपनी प्राथमिकताओं के आधार पर कर सकते हैं। न केवल केन्द्रीय स्तर पर अपितु राज्यों के स्तर पर भी ‘प्रतिस्पर्धी संघवाद’ से संबंधित अनेक कदम उठाए गए हैं, जैसे-

    • गुजरात भूमि अधिग्रहण बिल, 2016 द्वारा विकास परियोजनाओं हेतु किये गए भू-अधिग्रहण में सामाजिक प्रभाव आंकलन तथा सहमति प्रावधान को समाप्त करने हेतु संशोधन किया गया, जिससे औद्योगिक एवं अवसंरचनात्मक क्षेत्र में निवेश बढ़ने की उम्मीद है।
    • वर्ष 2016 में कर्नाटक में नई रिटेल व्यापार नीति की घोषणा की गई जोकि श्रम एवं व्यापारिक क्षेत्र में बड़ी पहल है।
    • आंध्र प्रदश में निजी कंपनियों को भूमि लीज पर देने की अवधि 33 वर्ष से बढ़ाकर 99 वर्ष कर दी गई है।
    • उत्तर प्रदेश में औद्योगिक विकास को तेज करने के उद्देश्य से ‘उत्तर प्रदेश सूचना प्रौद्योगिकी एवं स्टार्ट-अप नीति 2016’ को अनुमोदित किया गया।

    उपरोक्त उद्धरणों से स्पष्ट है कि भारत में ‘प्रतिस्पर्धी संघवाद’ की अवधारणा तेजी से बढ़ रही है। इसके तहत विभिन्न राज्य ‘उद्योग समर्पित एवं आधारित’ नीतियों का निर्माण कर रहे हैं, जो कि राज्य के आर्थिक विकास के साथ-साथ नागरिकों को रोजगार उपलब्ध करवाकर, प्रतिव्यक्ति आय में वृद्धि कर जीवनस्तर को उच्च करने में सहायक सिद्ध हो रही हैं।

    निष्कर्षतः यह कहा जा सकता है कि प्रतिस्पर्धी संघवाद औद्योगीकरण को बढ़ावा देता है तथा औद्योगीकरण की प्रतिस्पर्धा वस्तुओं और सेवआों की उपलब्धता उचित दरों पर करवाती है एवं रोजगार के अवसर बढ़ाकर सामाजिक सुरक्षा को बेहतर करती है।