• प्रश्न :

    "भारतीय दंड संहिता की धारा 124A (राजद्रोह) राज्य को प्राप्त ऐसा हथियार है जिसके द्वारा राज्य अपने नागरिकों की अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को सीमित कर सकता है।" इस कथन का विश्लेषण करते हुए इस विवाद के कारण को स्पष्ट करें?

    30 Jun, 2017 सामान्य अध्ययन पेपर 2 राजव्यवस्था

    उत्तर :

    भारतीय दंड संहिता की धारा 124A के तहत राजद्रोह की परिभाषा के अनुसार यदि कोई व्यक्ति सरकार विरोधी सामग्री लिखता या बोलता है, या ऐसी सामग्री का समर्थन करता है, अथवा वह अपने लिखित या मौखिक शब्दों, चिह्नों या संकेतों के माध्यम से प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष तौर पर घृणा फैलाता है तो उसे आजीवन कारावास या तीन साल की सजा हो सकती है।

    अनेक मानवाधिकार कार्यकर्त्ताओं एवं अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के समर्थकों ने इस धारा का विरोध किया है क्योंकि इसके माध्यम से राज्य नागरिकों की अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को सीमित कर सकता है इस धारा के विरूद्ध उनके तर्क निम्नलिखित हैं-

    • यह धारा सरकार की आलोचना करने के जनता के अधिकारों को बाधित करती है जोकि लोकतांत्रिक राज्यों परंपराओं के अनुकूल नहीं है।
    • इस धारा के माध्यम से प्रशासन को अत्यधिक शक्तियाँ प्राप्त है जिसका प्रयोग वे मनमाने ढंग से विरोध के दमन के लिये कर सकते हैं। इसके शिकार मुख्यतः लेखक, पत्रकार, सामाजिक कार्यकर्ता आदि होते हैं जो सरकारी नीतियाँ पर प्रश्नचिह्न लगाते हैं। पुलिस को इस प्रकार के कठोर प्रावधानों के पीछे के दर्शन एवं इसके संभावित गंभीर परिणामों को समझने का पर्याप्त प्रशिक्षण प्राप्त नहीं है।
    • भारत में व्याप्त गरीबी, बेरोजगारी, खराब स्वास्थ्य एवं शिक्षा सुविधाओं, प्रशासनिक भ्रष्टाचार आदि के कारण सरकार के विरूद्ध असंतोष उभरना स्वाभाविक है लेकिन इस धारा के कठोर प्रावधानों के कारण जनता के पास अपना असंतोष प्रकट करने के लिये सरकार की आलोचना का मौका नहीं रहता।
    • अवैध गतिविधियों तथा सशस्त्र आंदोलनों से निपटने के लिये कई अन्य कानून विद्यमान हैं। 

    यद्यपि उच्चतम न्यायालय ने 1962 के ‘केदारनाथ सिंह बनाम बिहार राज्य’ के मामले में राजद्रोह का दायरा काफी हद तक केवल उन प्रकरणों तक सीमित कर दिया जहाँ ‘राज्य के पराभव की दिशा में आसन्न हिंसा का खतरा’ हो। इस प्रकार न्यायालय ने सार्वजनिक व्यवस्था की आवश्यकता एवं मूल अधिकारों के बीच उचित संतुलन कायम करने का प्रयास किया है।
    इस धारा के संबंध में मूल समस्या अस्पष्टता की समस्या है। अतः भारतीय दंड संहिता में संशोधन कर उच्चतम न्यायालय के दिशा-निर्देशों को धारा 124A में समाविष्ठ करना चाहिये। इसके अलावा, राज्य पुलिस को निर्देशित किया जाना चाहिये कि किन परिस्थितियों में यह धारा आरोपित की जानी चाहिये। इस प्रकार राज्य की सुरक्षा एवं सामाजिक व्यवस्था के साथ व्यक्ति की वाक् एवं अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के बीच संतुलन बनाए रखना आवश्यक है।