• प्रश्न :

    आत्म-परिपूर्णता संतुलन (Self-fulfilling Equilibrium) क्या है? इसकी विस्तृत व्याख्या करते हुए यह भी स्पष्ट करें कि इसका समाधान कैसे किया जा सकता है?

    25 Jul, 2017 सामान्य अध्ययन पेपर 2 राजव्यवस्था

    उत्तर :

    ‘आत्म परिपूर्णता संतुलन’एक ऐसी परिघटना है जिसमें किसी सामाजिक धार्मिक समुदाय से संबंध रखने वाले व्यक्तियों की पहचान को उनके पिछड़ेपन के अनुरूप उनकी सामाजिक छवि से जोड़कर देखा जाता है। इस प्रकार सामाजिक असमानताएँ स्थायी रूप से बनी रहती हैं।

    उदाहरण के लिये, NSSO के आँकड़ों के अनुसार मुस्लिम समुदाय एवं अनुसूचित जाति व अनुसूचित जनजाति के सदस्य हिंदू अगड़ी जातियों की तुलना में शिक्षा प्राप्ति और शिक्षा की गुणवत्ता के मामले में पीछे हैं। इस आधार पर समाज में एक मान्यता जब जाती है कि इन समुदायों के व्यक्तियों की शैक्षिक योग्यता एवं कार्यकुशलता निम्नस्तरीय होती हैं। इस कारण नियोक्ताओं द्वारा इन समूहों के व्यक्तियों को पसंद नहीं किया जाता, जिससे उन्हें रोज़गार मिलना मुश्किल हो जाता है अथवा कम वेतन मिलता है। इस प्रकार इन समुदायों की अगली पीढ़ी के पास संसाधनों की उपलब्धता में कमी हो जाती है तथा वे अन्य समुदायों के समान शिक्षा और कौशल पाने में असफल हो जाते हैं। इस प्रकार यह दुष्चक्र पीढ़ी-दर-पीढ़ी चलता रहता है और समय के साथ यह धारणा पुष्ट होती जाती है कि इन समुदायों के ज्ञान और कौशल का स्तर अन्य समुदायों की तुलना में कमज़ोर होता है।

    इस दुष्चक्र को तोड़ने के लिये केवल पारंपरिक नीतियों पर निर्भरता पर्याप्त नहीं है क्योंकि वे नीतियाँ केवल अर्थव्यवस्था संबंधी निर्धनता के अवरोधों को कम करती हैं, समाज संबंधी अवरोधों को नहीं। नीतियों का लक्ष्य संपूर्ण समुदाय की क्षमता निर्माण होना चाहिये तथा मानव पूंजी में निवेश, आत्मविश्वास निर्माण तथा निराशावाद समाप्ति के लिये उपाय भी किये जाने चाहिये यद्यपि आरक्षण प्रणाली ने इस समुदायों की समता निर्माण में सकारात्मक भूमिका निभाई है लेकिन यह अपर्याप्त है। शिक्षा संस्थानों में शिक्षा की गुणवत्ता में वृद्धि, शिक्षा को रोज़गार से संबंधित करना, कौशल विकास और परंपरागत ज्ञान को महत्त्व देना आदि के माध्यम से इन समुदायों की कुशलता में वृद्धि कर इनकी सामाजिक छवि में सुधार किया जा सकता है।