• प्रश्न :

    भारतीय चुनाव प्रक्रिया में नोटा-विकल्प (None of The Above) का क्या औचित्य है? नोटा को लेकर हालिया विवाद के आलोक में इसकी संवैधानिकता पर प्रकाश डालें।

    05 Aug, 2017 सामान्य अध्ययन पेपर 2 राजव्यवस्था

    उत्तर :

    उच्चतम न्यायालय के निर्देश पर, निर्वाचन आयोग ने 2013 में ही निर्वाचन प्रक्रिया में नोटा विकल्प को शामिल कर लिया था। जब किसी भी दल का उम्मीदवार, मतदाता को मत देने योग्य न लगे, उस स्थिति में भी मतदाता नोटा-विकल्प चुनकर राजनीतिक दलों को यह सन्देश पहुँचा सकता है कि उन्होंने उस क्षेत्र विशेष में सही उम्मीदवार खड़ा नहीं किया। 

    अब तक हुए चुनावों के आँकड़ों से नोटा की कोई भारी सफलता दिखाई नहीं पड़ती, परन्तु 2014 के लोकसभा चुनाव में लगभग 60 लाख मत नोटा-विकल्प पर पड़े। ये लगभग 21 दलों को मिले मतों से अधिक थे। अतः नोटा की प्रासंगिकता को संदिग्ध नहीं कहा जा सकता है।

    नोटा को लेकर हालिया विवाद गुजरात से चुने जाने वाले राज्यसभा सदस्यों के निर्वाचन से जुड़ा है। इस निर्वाचन में नोटा-विकल्प का विरोध किये जाने के पीछे निम्नलिखित तर्क हैं :-

    • राज्यसभा में निर्वाचन एक परोक्ष चुनाव है, इसमें नोटा की कोई प्रासंगिकता नहीं है।
    • संविधान में नोटा के संबंध में कोई वैधानिक प्रावधान नहीं है। इसे निर्वाचन आयोग के आदेश मात्र से लागू किया गया था। 
    • राज्यसभा जैसे परोक्ष चुनाव में नोटा का प्रयोग, संविधान के अनुच्छेद-80 (4), जनप्रतिनिधित्व अधिनियम-1951, चुनाव संचालन नियम-1961, उच्चतम न्यायालय के कुलदीप नैयर बनाम भारत सरकार-(2006) के निर्णय के दृष्टिकोण का उल्लंघन करता है। 

    हालाँकि 2014 में ही राज्यसभा सदस्यों के निर्वाचन हेतु नोटा के प्रयोग की अधिसूचना, चुनाव आयोग द्वारा ज़ारी कर दी गई थी। उसके बाद राज्यसभा के कई सदस्यों के निर्वाचन भी संपन्न हो चुके हैं, परन्तु फिर भी उच्चतम न्यायालय द्वारा नोटा की संवैधानिकता पर विचार करने की बात कही गई है।