• प्रश्न :

    कहा जाता है कि वर्तमान प्रतिस्पर्द्धा के युग में बौद्धिक स्तर (आईक्यू) से अधिक महत्त्वपूर्ण भावनात्मक समझ का होना है। टिप्पणी करें।

    07 Sep, 2018 सामान्य अध्ययन पेपर 4 सैद्धांतिक प्रश्न

    उत्तर :

    उत्तर की रूपरेखा

    • प्रभावी भूमिका में प्रश्नगत कथन को स्पष्ट करें।
    • तार्किक तथा संतुलित विषय-वस्तु में बौद्धिक स्तर की तुलना में भावानात्मक समझ के अधिक महत्त्व को बताएँ। 
    • प्रश्नानुसार संक्षिप्त एवं सारगर्भित निष्कर्ष लिखें।

    वर्तमान में किसी व्यक्ति की योग्यता मापने के लिये मुख्यतः बौद्धिक स्तर और भावनात्मक समझ का प्रयोग किया जाता है। जहाँ बौद्धिक स्तर का तात्पर्य एक परीक्षा में प्राप्त अंकों से है, जो कि सामान्य आबादी की तुलना में व्यक्ति की संज्ञानात्मक योग्यता को मापता है, वहीं भावनात्मक समझ को एक व्यक्ति की भावनाओं की पहचान, मूल्याकंन, नियंत्रण और व्यक्त करने की क्षमता के रूप में परिभाषित किया जाता है।

    हालाँकि, अधिकांश शोधों के परिणामों से ज्ञात होता है कि जीवन में एक व्यक्ति का प्रदर्शन बौद्धिक स्तर और भावनात्मक समझ दोनों के द्वारा निर्धारित होता है किंतु इस बात के पर्याप्त सबूत हैं कि बौद्धिक स्तर केवल एक छोटे से भाग का ही प्रतिनिधित्व करता है। किसी व्यक्ति की सफलता में भावनात्मक समझ की हिस्सेदारी 75% से अधिक है। यही कारण है कि वर्तमान वैश्वीकरण के युग में जहाँ प्रतिस्पर्द्धा और तनाव सर्वोच्च स्तर पर है, उच्च बौद्धिक क्षमता वाले व्यक्ति या तो असफल रहते हैं या फिर सीमित सफलता ही प्राप्त कर पाते हैं। उदाहरणस्वरूप बंगलूरू, जो सूचना प्रौद्योगिकी पेशेवरों का गढ़ है, आत्महत्या का केंद्र बन चुका है। हाल में एक आईएएस अधिकारी द्वारा आत्महत्या करना निम्न भावनात्मक समझ का ही परिणाम था।

    उच्च बौद्धिक क्षमता वाले व्यक्ति अपनी मानसिक क्षमता के द्वारा किसी भी जटिल प्रक्रिया का सामान्यीकरण कर देते हैं किंतु सफलता के लिये स्वजागरूकता, स्वविनियमन, प्रेरणा, सहानुभूति और सामाजिक कौशल जैसे तत्त्वों की आवश्यकता होती है, जो कि भावनात्मक समझ के भाग हैं। भावनात्मक समझ का उच्च स्तर होने से ही एक व्यक्ति सफल नेतृत्वकर्त्ता बनता है, वह बेहतर ढंग से संबंधों को निभा पाता है। उदाहरणस्वरूप अनेक नेता जो स्कूली शिक्षा में असफल रहे किंतु उच्च भावनात्मक समझ के कारण राजनीति के शीर्ष पर पहुँचे।\

    निष्कर्षतः कहा जा सकता है कि सफलता में बौद्धिक स्तर व भावनात्मक समझ दोनों की ही आवश्यकता होती है किंतु कार्य के बढ़ते बोझ और जटिल होते संबंधों के लिये भावनाओं का प्रबंधन अधिक महत्त्वपूर्ण है। अतः भारत जैसे विकासशील देश में जहाँ संविधान लोकल्याणकारी राज्य की स्थापना करता है, राजनैतिक नेतृत्वकर्त्ता, सिविल सेवक और अन्य हितधारकों का उच्च भावनात्मक समझ से युक्त होना आवश्यक है।