• प्रश्न :

    लाभ के पद की अवधारणा को स्पष्ट करें। इसके महत्त्व को बताएँ एवं इस संबंध में न्यायालय की भूमिका का उल्लेख करें।

    06 Dec, 2017 सामान्य अध्ययन पेपर 2 राजव्यवस्था

    उत्तर :

    उत्तर की रूपरेखा-

    • लाभ के पद के संदर्भ में संवैधानिक उपबंधों की चर्चा करें।
    • इसके महत्त्व को बताएँ।
    • इस संदर्भ में न्यायालय की भूमिका को बताएँ।

    भारत के संविधान में अनुच्छेद 102(1) (a) के अंतर्गत संसद सदस्यों के लिये तथा अनुच्छेद 191(1) (a) के तहत राज्य विधानसभा के किसी सदस्यों के लिये ऐसे लाभ के पद धारण करने का निषेध किया गया है जिससे उस पद के धारण करने वाले को किसी भी प्रकार का वित्तीय लाभ मिलता हो।

    महत्त्व:

    • यह अवधारणा संसद व राज्य विधानसभा के सदस्यों की स्वतंत्रता को अक्षुण्ण बनाएँ रखती है।

    • यह विधायिका को कार्यपालिका से किसी अनुग्रह या लाभ प्राप्त करने से रोकती है।

    • यह विधायी कार्यों व किसी भिन्न पद के कर्तव्यों में होने वाले टकराव को रोकती है।

    • लाभ के पद के संदर्भ में भारत में कोई स्थापित प्रक्रिया नहीं है। ऐसे में न्यायालय की भूमिका उल्लेखनीय हो जाती है-

    गोविन्द बसु बनाम् संकरी प्रसाद गोशाल मामले में गठित संविधान पीठ ने लाभ के पद के संदर्भ में कई कारक निर्धारित किए हैं। जैसे- नियुक्तिकर्त्ता, पारितोषिक या लाभ निर्धारित करने वाला प्राधिकारी, पारितोषिक के स्रोत आदि।

    अशोक भट्टाचार्य बनाम् अजोय बिस्वास मामले में निर्णय देते हुए कहा कि कोई व्यक्ति लाभ के पद पर है या नहीं, यह निर्धारित करने के लिये प्रत्येक मामले को उपयुक्त नियमों और अनुच्छेदों को ध्यान में रखकर ही किया जाना चाहिए।

    स्पष्ट है कि लाभ के पद के संदर्भ में न्यायालय की महत्त्वपूर्ण भूमिका रही है। फिर भी इस संदर्भ में एक सुस्पष्ट नियम का अभाव देखा गया है।हाल ही में दिल्ली सरकार द्वारा अपने कुछ विधायकों को संसदीय सचिव के रूप में नियुक्त किये जाने पर यह मामला प्रकाश में आया था। इस संदर्भ में इंग्लैण्ड में प्रचलित प्रथा का अनुपालन अनुकरणीय हो सकता है। वहाँ किसी भी पद को सृजित करने के साथ नियम भी बना दिये जाते हैं, जो यह तय करते हैं कि लाभ का पद होगा या नहीं।