• प्रश्न :

    राजस्थान सरकार ने राष्ट्रीय खाद्यान्न सुरक्षा अधिनियम (NFSA) के अंतर्गत अनाज/‘प्रत्यक्ष लाभ अंतरण’ के लाभार्थियों के घर की बाहरी दीवार पर ‘मैं गरीब हूँ’ लिखवाया है ताकि गरीब परिवारों की पहचान सुनिश्चित हो सके। इस संबंध में नैतिक दृष्टिकोण से अपने विचार प्रकट करें।

    26 Jun, 2017 सामान्य अध्ययन पेपर 4 सैद्धांतिक प्रश्न

    उत्तर :

    हाल ही में चर्चा में आई इस घटना पर राजस्थान सरकार का तर्क है कि एक तो गरीब परिवारों की पहचान सुनिश्चित कराने के दृष्टिकोण से ऐसा किया गया है और दूसरा यह कि गरीबों को मिलने वाले लाभों को कई संपन्न लोग भी फर्जी दस्तावेजों/कार्ड के जरिये प्राप्त कर रहे हैं; यदि उनके घरों के सामने ‘मैं गरीब हूँ’ लिखा जाएगा तो एक तरफ उनकी पहचान सुनिश्चित होगी और दूसरी तरफ वे शर्मिन्दगी के चलते इन लाभों को छोड़ देंगे जो अन्यथा भी किसी और का हक हैं।

    प्रशासनिक दृष्टिकोण से सहूलियत के चलते सरकार चाहे इस कदम को युक्तियुक्त करार दे लेकिन यह कृत्य उचित है या अनुचित, यह सुनिश्चित करने के लिये भारतीय समाज की संरचना, सांस्कृतिक परिवेश और नैतिक दृष्टिकोण से इस कृत्य को देखना होगा। 

    • भारतीय संस्कृति में ‘आत्मसम्मान’ और ‘सामाजिक प्रतिष्ठा’ को बहुत महत्त्व दिया जाता है। कोई भी परिवार सरकारी सहायता के बदले सार्वजनिक तौर पर ‘मैं गरीब हूँ’ लिखवाना अपनी बेइज्जती ही समझेगा क्योंकि यह सहायता कोई मदद नहीं अपितु उनका हक है। सरकार यदि रोजगार के पर्याप्त अवसर उपलब्ध करा दे तो ऐसी मदद लेने की नौबत ही न आए।
    • भारतीय समाज की संरचना जाति आधारित है। उच्च जातियाँ अपने आप को सदैव तथाकथित पिछड़ी या निचली जातियों से श्रेष्ठ समझती है; चाहे उनमें से कोई पिछड़ी या निचली जाति के लोगों से आर्थिक रूप से कमजोर ही क्यों न हो। सरकार की कार्रवाई सबको आर्थिक आधार पर जाँचकर ‘मैं गरीब हूँ’ लिख रही है, जिससे कुछ जातियाँ अपमानित महसूस कर रही हैं।
    • नैतिक दृष्टिकोण से देखें तो ‘उपयोगितावाद’ के अनुसार वह कृत्य नैतिक रूप से उचित है, जिससे अधिकतम लोगों को लाभ हो। परंतु, यहाँ कुछ गलत लाभ उठाने वाले लोगों की पहचान करने के लिये ‘अधिकतम’ योग्य लाभार्थियों को मानसिक तनाव दिया जा रहा है, जो नैतिकतः अनुचित ही है।

    मेरे विचार से सरकार को ‘मैं गरीब हूँ’ लिखने की बजाय कोई अन्य प्रतीकात्मक चिह्न जैसे कोई रंगीन निशान या कोई ऐसा संकेत बनाना चाहिये, जिससे उन्हें ‘हीनता’ का अहसास न हो। इसके अतिरिक्त लाभार्थियों को ‘प्रत्यक्ष लाभ अंतरण’ व अन्य लाभ ‘आधार’ से जोड़कर दिये जाए ताकि फर्जी लाभार्थी बाहर हो जाएं। गाँव के सरपंच को फर्जी लाभार्थियों के संबंध में उत्तरादायी ठहराये जाने का भी प्रावधान होना चाहिये।