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दिवस -8: “भारत में गरीबी की निरंतरता केवल आर्थिक नहीं, बल्कि गहन रूप से सामाजिक भी है।” टिप्पणी कीजिये। (150 शब्द)

24 Jun 2025 | सामान्य अध्ययन पेपर 1 | भारतीय समाज

दृष्टिकोण / व्याख्या / उत्तर

हल करने का दृष्टिकोण: 

  • गरीबी को परिभाषित करते हुए से उत्तर लेखन की शुरुआत कीजिये।
  • गरीबी के आर्थिक आयामों पर चर्चा कीजिये।
  • गरीबी के सामाजिक आयाम को रेखांकित कीजिये। 
  • आगे की राह बताते हुए उचित निष्कर्ष दीजिये।

परिचय: 

भारत में गरीबी को प्रायः आय स्तर या उपभोग व्यय जैसे आर्थिक दृष्टिकोण से समझा जाता है। हालाँकि, इसकी निरंतरता गहरी सामाजिक संरचनाओं (जाति, लिंग, धर्म, क्षेत्र और शिक्षा) में निहित है, जो व्यवस्थित रूप से कुछ समूहों को अवसरों, सम्मान एवं सामाजिक गतिशीलता तक पहुँच से वंचित करती है। 

मुख्य भाग:

गरीबी के आर्थिक पक्ष

  • प्रति व्यक्ति आय की अपर्याप्तता: भारत की प्रति व्यक्ति आय वर्ष 2023–24 (संशोधित अनुमान) में लगभग ₹1.72 लाख है, जो यह दर्शाती है कि अब भी एक बड़ा वर्ग निम्न आय-सीमा के नीचे जीवन व्यतीत कर रहा है।
  • अनौपचारिक रोज़गार: देश की 90% से अधिक श्रमिक जनसंख्या अनौपचारिक क्षेत्र में कार्यरत है, जहाँ रोज़गार की स्थिरता और सामाजिक सुरक्षा लगभग न के बराबर है।
  • कृषि संकट और ग्रामीण क्षेत्रों में ठहराव की स्थिति ने बड़े समुदायों को चक्रीय गरीबी के प्रति अत्यंत संवेदनशील बना दिया है।
  • मुद्रास्फीति और अल्प-रोज़गार जैसी स्थितियाँ उपभोग आधारित गरीबी को और गहरा करती हैं।

सतत् गरीबी की सामाजिक जड़ें

  • जाति आधारित अपवर्जन:
    • दलित और जनजातीय समुदाय, भारत के गरीबों का अनुपातहीन रूप से बड़ा हिस्सा हैं।
    • 'इंडिया एक्सक्लूज़न रिपोर्ट (2022)' में यह बताया गया है कि अनुसूचित जातियों और जनजातियों को भूमि, शिक्षा एवं औपचारिक रोज़गार तक पहुँच में संरचनात्मक बाधाओं का सामना करना पड़ता है।
    • हाथ से मैला उठाने की प्रथा, भूमिहीनता और सामाजिक कलंक जैसी स्थितियाँ इस गरीबी को पीढ़ी दर पीढ़ी आगे बढ़ने वाली समस्या बना देती हैं।
  •  लिंग आधारित आयाम:
    • PLFS 2023-24 के अनुसार, 15+ आयु वर्ग की महिलाओं के लिये महिला श्रम बल भागीदारी दर (FLFPR) 41.7% है, जिसमें अधिकांश वृद्धि कृषि और कम वेतन वाले अनौपचारिक कार्यों में देखी गई है।
    • महिलाओं को अवैतनिक घरेलू काम का बोझ उठाना पड़ता है, संपत्ति तक उनकी पहुँच नहीं होती तथा लैंगिक वेतन अंतर से पीड़ित होना पड़ता है, जिससे गरीबी में महिलाओं की संख्या बढ़ती है।
    • NFHS-5 (सत्र 2019-21) के अनुसार, भारत में 15-49 वर्ष की आयु की केवल 31.7% महिलाओं ने स्वतंत्र रूप से या संयुक्त रूप से भूमि के स्वामित्व की सूचना दी है।
  •  शैक्षिक और स्वास्थ्य असमानताएँ:
    • ASER रिपोर्ट लगातार सीमांत समुदाय के बच्चों के बीच निम्नस्तरीय अधिगम के परिणाम को दर्शाती है।
    • सामाजिक भेदभाव, बाल श्रम और कम उम्र में विवाह के कारण अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति व मुस्लिम बच्चों के स्कूल छोड़ने की दर अधिक है।
    • कम साक्षरता, बाल कुपोषण और खराब स्वास्थ्य परिणाम एक दुष्चक्र बनाते हैं।
    • NFHS-5 के आँकड़े बताते हैं कि पाँच वर्ष से कम आयु के 35.5% बच्चे अविकसित हैं तथा 15-49 वर्ष की 57% महिलाएँ एनीमिया से पीड़ित हैं।
  • धार्मिक एवं क्षेत्रीय असमानताएँ:
    • मुस्लिम परिवारों के पास बहुत कम भूमि है और औपचारिक ऋण तक उनकी पहुँच भी कम (सच्चर समिति रिपोर्ट, 2006) है।
    • कुछ राज्य (बिहार, मध्य प्रदेश, राजस्थान, उत्तर प्रदेश) विकास सूचकांकों में पिछड़ रहे हैं, जिससे क्षेत्रीय गरीबी चक्र मज़बूत हो रहा है।  
  •  सामाजिक पूंजी घाटा:
    • सीमांत समुदायों को प्रायः सामाजिक अदृश्यता और निम्न साक्षरता के कारण ऋण, नेटवर्क एवं विधिक सहायता तक पहुँच नहीं मिल पाती, जो उनकी सामाजिक प्रगति में बाधा बनती है।
    • झुग्गी बस्तियों में रहने वाले और असंगठित क्षेत्र के मज़दूरों को आवास, स्वास्थ्य सेवा एवं रोज़गार सुरक्षा जैसी बुनियादी सुविधाओं से वंचित रहना पड़ता है, जैसा कि कोविड-19 के दौरान प्रवासी संकट में स्पष्ट रूप से सामने आया।

निष्कर्ष

इस प्रकार, भारत में निर्धनता केवल एक आर्थिक स्थिति नहीं है, बल्कि सामाजिक संरचना में गहराई से जड़ जमा चुकी एक वास्तविकता है। जैसा कि अमर्त्य सेन ने ठीक ही कहा है, "निर्धनता केवल पैसों की कमी नहीं है, बल्कि वह अवस्था है जिसमें व्यक्ति अपनी पूरी क्षमताओं को साकार नहीं कर सकता।" 

निर्धनता की सामाजिक पुनरुत्पत्ति को तोड़ने के लिये शिक्षा, रोज़गार, स्वास्थ्य और सकारात्मक भेदभाव जैसे क्षेत्रों में लक्षित हस्तक्षेप आवश्यक हैं।