24 Jun 2025 | सामान्य अध्ययन पेपर 1 | भारतीय समाज
दृष्टिकोण / व्याख्या / उत्तर
हल करने का दृष्टिकोण:
- प्रवासन के पुश-पुल मॉडल के परिचय के साथ उत्तर दीजिये तथा व्यापक वास्तविकता के साथ इसका तुलनात्मक अध्ययन प्रस्तुत कीजिये।
- प्रवासन के बहुआयामी चालकों पर चर्चा कीजिये।
- आगे की राह बताते हुए उचित निष्कर्ष दीजिये।
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परिचय
भारत और विश्व स्तर पर प्रवास को पारंपरिक रूप से पुश-पुल मॉडल के माध्यम से समझा जाता है, जहाँ आर्थिक कठिनाई या प्राकृतिक आपदाएँ व्यक्तियों को उनके मूल स्थान से ‘बाहर धकेलती’ हैं और बेहतर अवसर उन्हें कहीं और ‘खींचते’ हैं। हालाँकि, ऐसा मॉडल राजनीतिक, सांस्कृतिक, पर्यावरणीय और आर्थिक शक्तियों के जटिल अंतर्संबंध को समझने में अपर्याप्त है जो लोगों को पलायन (एक विकल्प के रूप में नहीं, बल्कि जीवित रहने और समुत्थानशक्ति के साधन के रूप में) करने के लिये विवश करते हैं।
मुख्य भाग:
पुश-पुल से परे: प्रवासन के बहुआयामी चालक
- राजनीतिक आयाम: प्रवासन प्रायः राजनीतिक अस्थिरता, संघर्ष या उत्पीड़न का परिणाम होता है।
- कश्मीर, छत्तीसगढ़ (माओवादी उग्रवाद के कारण) तथा पूर्वोत्तर में जातीय अशांति के कारण भारत में आंतरिक रूप से विस्थापित व्यक्ति (IDP) प्रवासन की राजनीतिक जड़ों को रेखांकित करते हैं।
- विश्व स्तर पर, रोहिंग्या शरणार्थी और सीरियाई शरणार्थी राजनीतिक रूप से प्रेरित ज़बरन प्रवास को दर्शाते हैं।
- आंतरिक विस्थापन निगरानी केंद्र (IDMC) के अनुसार, वर्ष 2022 में भारत में 2.5 मिलियन से अधिक लोग विस्थापित हुए।
- सांस्कृतिक आयाम: प्रवास सांस्कृतिक दमन, सामाजिक कलंक या पहचान क्षरण से बचने का एक तरीका हो सकता है।
- भारत में दलित और जनजातीय प्रायः सम्मान व समानता की खोज़ में दमनकारी ग्रामीण सामाजिक संरचनाओं से शहरी गुमनामी की ओर पलायन करते हैं।
- कई महिलाएँ विवाह के लिये या ग्रामीण क्षेत्रों में पितृसत्तात्मक प्रतिबंधों से बचने के लिये पलायन करती हैं।
- बुनियादी अवसंरचना परियोजनाओं (जैसे: पोलावरम बाँध) के कारण जनजातीय विस्थापन से सांस्कृतिक और भाषाई क्षरण होता है।
- आर्थिक आयाम: प्रवास एक आजीविका रणनीति है, विशेष रूप से जलवायु और बाज़ार जोखिमों का सामना करने वाली कृषि अर्थव्यवस्थाओं में।
- आवधिक श्रम बल सर्वेक्षण (2022) के अनुसार, 45 करोड़ से अधिक भारतीय आंतरिक प्रवासी हैं; इनमें से कई मौसमी या चक्रीय प्रवासी हैं।
- बिहार से दिल्ली, ओडिशा से गुजरात और उत्तर प्रदेश से महाराष्ट्र जैसे अंतर-राज्यीय प्रवासन गलियारे यह दर्शाते हैं कि आर्थिक मजबूरी किस प्रकार सामाजिक सुविधा पर हावी हो जाती है।
- पर्यावरण और जलवायु-संचालित प्रवासन
- सुंदरबन (समुद्र का बढ़ता स्तर), बुंदेलखंड (सूखा) और असम (बाढ़) जैसे सुभेद्य क्षेत्रों में जलवायु प्रवासन बढ़ रहा है।
- विश्व बैंक का अनुमान है कि वर्ष 2050 तक 40 मिलियन से अधिक दक्षिण एशियाई लोग जलवायु प्रवासी बन सकते हैं, जिनमें से एक महत्त्वपूर्ण हिस्सा अकेले भारत से होगा।
- प्रवासियों के समक्ष चुनौतियाँ
- पोर्टेबल सामाजिक सुरक्षा का अभाव: जैसे, राशन, आवास, शिक्षा
- राजनीतिक प्रतिनिधित्व से अपवर्जित, प्रायः गंतव्य राज्यों में मताधिकार से वंचित
- शोषण, भेदभाव और स्वास्थ्य देखभाल की कमी के प्रति संवेदनशीलता
- महिलाओं और बाल प्रवासियों को तस्करी एवं घरेलू हिंसा सहित विशिष्ट खतरों का सामना करना पड़ता है।
निष्कर्ष
इस प्रकार, भारत में प्रवास केवल आर्थिक मांग या संकट की प्रतिक्रिया नहीं है, बल्कि संरचनात्मक असमानताओं द्वारा संचालित एक बहुआयामी अस्तित्व की रणनीति है। समावेशी विकास सुनिश्चित करने के लिये, भारत को SDG 10.7 के साथ संरेखित अधिकार-आधारित, एकीकृत दृष्टिकोण अपनाना चाहिये आर्थिक, राजनीतिक और सांस्कृतिक क्षेत्रों में संरचनात्मक बाधाओं को समाप्त करके सुरक्षित, नियमित एवं जिम्मेदार प्रवास को सुविधाजनक बनाना चाहिये।