दिवस 47: आप महाराष्ट्र के एक सूखाग्रस्त ज़िले के ज़िला कलेक्टर हैं। पिछले एक साल में, इस क्षेत्र में अनियमित मानसून और कीटों के प्रकोप के कारण लगातार फसलें बर्बाद हुई हैं। कई किसान अनौपचारिक साहूकारों से लिये गए ऊँची ब्याज दरों वाले ऋण के बोझ तले दबे हैं, क्योंकि संस्थागत ऋण या तो उपलब्ध नहीं है या विलंब से उपलब्ध होता है।
पिछले हफ्ते, पास के एक गाँव के 42 वर्षीय किसान ने लगातार तीसरे सीज़न में कपास की फसल बर्बाद होने के बाद आत्महत्या कर ली। उसकी मौत के बाद स्थानीय किसान संघों ने विरोध प्रदर्शन शुरू कर दिया है, जिन्होंने प्रशासन पर ग्रामीण संकट की अनदेखी करने का आरोप लगाया है। मीडिया इस घटना को व्यापक रूप से कवर कर रही है और ज़िले को कृषि संकट का प्रतीक बता रही है। विपक्षी दलों ने सभी प्रभावित किसानों के लिये तत्काल मुआवज़ा और ऋण माफी की माँग को लेकर प्रदर्शन शुरू कर दिये हैं।
आपकी प्रारंभिक जाँच से पता चलता है कि हालाँकि सरकारी फसल बीमा योजनाएँ मौजूद हैं, लेकिन ज़िले के अधिकतर किसान या तो इन योजनाओं के बारे में नहीं जानते या उन्हें दावा प्रक्रिया बहुत जटिल लगती है। मृतक किसान के परिवार का दावा है कि उन्होंने सहायता के लिये कृषि विभाग से कई बार संपर्क किया, लेकिन कोई सार्थक प्रतिक्रिया नहीं मिली।
नागरिक समाज के कार्यकर्त्ता आपसे ऐसी आत्महत्याओं को रोकने के लिये कड़े कदम उठाने का आग्रह कर रहे हैं, जिनमें मानसिक स्वास्थ्य सहायता, सरल ऋण सुविधा और तत्काल वित्तीय राहत शामिल है। हालाँकि, चालू वित्त वर्ष के लिये आपका बजटीय आवंटन पहले से ही सीमित है तथा किसी भी बड़े पैमाने पर वित्तीय प्रतिबद्धता को राज्य के वित्त विभाग से प्रतिरोध का सामना करना पड़ सकता है। इस बीच, मुख्यमंत्री कार्यालय ने 48 घंटों के भीतर एक विस्तृत रिपोर्ट मांगी है।
A. इस मामले में नैतिक दुविधाओं और शासन संबंधी चुनौतियों का अभिनिर्धारण कीजिये।
B. कृषि संकट को दूर करने के लिये आप अल्पकालिक राहत और दीर्घकालिक संरचनात्मक सुधारों के बीच किस प्रकार संतुलन स्थापित करेंगे?
C. स्थानीय प्रशासनिक तंत्र की जवाबदेही सुनिश्चित करने के लिये आप क्या कदम उठाएँगे?
D. भविष्य में ऐसी त्रासदियों को रोकने के लिये लोक सेवा के कौन-से मूल्य आपके निर्णयों का मार्गदर्शन करेंगे? (250 शब्द)
हल करने का दृष्टिकोण:
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महाराष्ट्र के एक सूखाग्रस्त क्षेत्र के ज़िला कलेक्टर के रूप में, आपको लगातार फसल विफलताओं और एक किसान की आत्महत्या से उत्पन्न गंभीर कृषि संकट से निपटने का कार्य सौंपा गया है। यह स्थिति तत्काल राहत प्रदान करने और कृषि संकट के दीर्घकालिक समाधानों को लागू करने के बीच एक सावधानीपूर्वक संतुलन की मांग करती है, साथ ही प्रशासन के भीतर पारदर्शिता एवं जवाबदेही सुनिश्चित करती है।
हितधारक |
भूमिका/प्रभाव |
किसान |
फसल विफलता, कर्ज और उपेक्षा के प्रत्यक्ष शिकार, जिससे भावनात्मक संकट उत्पन्न होता है। |
मृतक किसान का परिवार |
संकट से हुए मानवीय नुकसान का प्रतिनिधित्व करता है तथा जवाबदेही एवं सहायता की मांग करता है। |
किसान संघ |
किसानों के अधिकारों की अनुशंसा करते हैं, मुआवज़े और सुधारों की मांग करते हैं। |
विपक्षी दल |
प्रशासन की आलोचना करते हैं, मुआवज़े और तत्काल समाधान की मांग करते हैं। |
स्थानीय प्रशासन |
संकट से निपटने के लिये उत्तरदायी प्रशासनिक तंत्र। |
मीडिया |
मुद्दे को तूल देता है, जनता की धारणा को आकार देता है और अधिकारियों पर दबाव बढ़ाता है। |
नागरिक समाज कार्यकर्त्ता |
मानसिक स्वास्थ्य सहायता, सरलीकृत ऋण सुविधा और तत्काल वित्तीय राहत की माँग करते हैं। |
राज्य वित्त विभाग |
बजटीय आवंटन को नियंत्रित करता है और बड़ी वित्तीय प्रतिबद्धताओं का विरोध करता है। |
मुख्यमंत्री कार्यालय |
एक विस्तृत रिपोर्ट की मांग करता है तथा कार्रवाई को प्रभावित कर सकता है। |
A. नैतिक दुविधाएँ और प्रशासनिक चुनौतियाँ
B. अल्पकालिक राहत और दीर्घकालिक संरचनात्मक सुधारों के बीच संतुलन
C. स्थानीय प्रशासनिक तंत्र की जवाबदेही सुनिश्चित करने के लिये कदम
D. लोक सेवा को दिशा देने वाले नैतिक मूल्य
यह मामला लोक प्रशासन में, विशेष रूप से संकट के समय में, नैतिक निर्णय लेने के महत्त्व को रेखांकित करता है। जैसा कि अल्बर्ट श्वित्ज़र ने ठीक ही कहा था, “मानव जीवन का उद्देश्य सेवा करना, दूसरों के प्रति करुणा और सहायता की इच्छाशक्ति प्रदर्शित करना है।” यह प्रकरण सीमांत समुदायों के संकट का समाधान करने और समाज की बेहतरी के लिये अल्पकालिक राहत एवं दीर्घकालिक सुधारों को लागू करने में एक लोक सेवक की मूल नैतिक ज़िम्मेदारियों को दर्शाता है।