दिवस 40: आप एक वरिष्ठ अधिकारी हैं और अंतर्राष्ट्रीय जलवायु शिखर सम्मेलन में भारत के आधिकारिक प्रतिनिधिमंडल के सदस्य हैं। यह सम्मेलन एक ऐसे महत्त्वपूर्ण मोड़ पर है जहाँ विकसित देश इस बात पर ज़ोर दे रहे हैं कि भारत जैसी विकासशील अर्थव्यवस्थाओं सहित सभी देश तुरंत उच्च उत्सर्जन कटौती लक्ष्य अपनाएँ। इन देशों का तर्क है कि जलवायु परिवर्तन की तात्कालिकता को देखते हुए विनाशकारी परिणामों से बचने के लिये एकीकृत और महत्त्वाकांक्षी वैश्विक कार्रवाई की आवश्यकता है।
हालाँकि, भारत का मानना है कि वैश्विक उत्सर्जन में उसका ऐतिहासिक योगदान न्यूनतम है और उसके विकास पथ, विशेषकर उन लाखों लोगों के लिये जिनके पास अभी भी बुनियादी सुविधाओं से वंचित है, को तीव्र कार्बन तटस्थता के नाम पर समझौता नहीं किया जाना चाहिये।
भारत की यह स्थिति समता (Equity) और सामान्य परंतु विभेदित उत्तरदायित्व (CBDR) के सिद्धांतों पर आधारित है और यह मानती है कि विकसित देशों को अपनी ऐतिहासिक ज़िम्मेदारी और अधिक वित्तीय क्षमता के आधार पर अधिक प्रयास करने चाहिये। हालाँकि इस रुख का घरेलू स्तर पर पुरज़ोर समर्थन है, लेकिन भारत पर जलवायु कार्रवाई पर आम सहमति को अवरुद्ध करने का आरोप लगाते हुए अंतर्राष्ट्रीय दबाव बढ़ रहा है।
इसी बीच एक प्रतिष्ठित अंतर्राष्ट्रीय थिंक टैंक (नीतिगत शोध संस्थान) आपको एक प्रमुख विदेशी विश्वविद्यालय में एक प्रतिष्ठित फैलोशिप का प्रस्ताव देता है। यद्यपि वे स्पष्ट रूप से कोई शर्त नहीं रखते, परंतु यह संकेत मिलता है कि भारत के कठोर रुख को बदलने में आपका समर्थन आपको यह अवसर प्राप्त करने में सहायता कर सकता है।
आपको संदेह है कि यह प्रस्ताव पूरी तरह से परोपकारी नहीं है और आपकी निष्पक्षता को प्रभावित कर सकता है। साथ ही, आपके एक सहकर्मी ने आपको चेतावनी दी है कि यदि भारत की स्थिति में कोई लचीलापन नहीं दिखाया गया, तो इससे भारत की अंतर्राष्ट्रीय छवि को नुकसान हो सकता है और भविष्य में तकनीक अंतरण तथा जलवायु वित्त सहयोग में भी बाधा आ सकती है।
A. वैश्विक मंच पर राष्ट्रीय हित का प्रतिनिधित्व करने वाले एक लोक सेवक के रूप में आपको किन नैतिक मुद्दों का सामना करना पड़ता है?
B. आप वैश्विक नैतिक उत्तरदायित्वों और राष्ट्रीय विकास लक्ष्यों के बीच संघर्ष से कैसे निपटेंगे?
C. आपको इस प्रस्ताव पर किस प्रकार प्रतिक्रिया देनी चाहिये? ऐसी वार्ताओं का मार्गदर्शन किन नैतिक मूल्यों और कूटनीतिक सिद्धांतों द्वारा किया जाना चाहिये?
हल करने का दृष्टिकोण:
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एक अंतर्राष्ट्रीय जलवायु शिखर सम्मेलन में भारत के आधिकारिक प्रतिनिधिमंडल में एक वरिष्ठ अधिकारी के रूप में, आप जलवायु परिवर्तन पर राष्ट्रीय हितों का प्रतिनिधित्व करने की चुनौतीपूर्ण स्थिति में हैं। भारत पर एक ओर अंतर्राष्ट्रीय दबाव है कि वह उत्सर्जन में कटौती के लिये अधिक कड़े लक्ष्य अपनाए, वहीं दूसरी ओर उसे अपने विकासात्मक आवश्यकताओं की भी रक्षा करनी है। इसी दौरान आपको एक प्रतिष्ठित फेलोशिप का प्रस्ताव मिलता है, जो आपकी निष्पक्षता को प्रभावित कर सकता है।
हितधारक |
भूमिका/हित |
आप (वरिष्ठ अधिकारी) |
नैतिक सत्यनिष्ठा बनाए रखते हुए भारत के हितों का प्रतिनिधित्व करते हैं। |
भारत |
एक विकासशील देश जो जलवायु-परिवर्तन कार्रवाई और विकास लक्ष्यों के बीच संतुलन बनाने का प्रयास कर रहा है। |
विकसित देश |
तत्काल आवश्यकता पर बल देते हुए कठोर वैश्विक जलवायु-परिवर्तन कार्रवाई पर ज़ोर दे रहे हैं। |
इंटरनेशनल थिंक टैंक |
भारत के रुख को प्रभावित करने की एक सूक्ष्म अपेक्षा के साथ, फेलोशिप प्रदान करना। |
घरेलू समर्थक |
समानता और विभेदित ज़िम्मेदारियों पर भारत के रुख की अनुशंसा करना। |
वैश्विक समुदाय |
जलवायु परिवर्तन के प्रति एक एकीकृत वैश्विक प्रतिक्रिया का अन्वेषण। |
भावी पीढ़ियाँ |
दीर्घकालिक सतत् विकास और जलवायु परिवर्तन के प्रति एक संतुलित दृष्टिकोण में रुचि रखती हैं। |
A. राष्ट्रीय हितों का प्रतिनिधित्व करने वाले एक लोक सेवक के रूप में सामने आने वाले नैतिक मुद्दे:
B. वैश्विक नैतिक ज़िम्मेदारियों और राष्ट्रीय विकास लक्ष्यों के बीच असंगतता:
C. फेलोशिप प्रस्ताव पर प्रतिक्रिया:
D. वार्ता का मार्गदर्शन करने के लिये नैतिक मूल्य और कूटनीतिक सिद्धांत:
जैसा कि जॉन रॉल्स ने कहा था, “न्याय सामाजिक संस्थाओं का पहला गुण है।” वरिष्ठ अधिकारी के निर्णय रॉल्स के सिद्धांत के अनुरूप होने चाहिये, यह सुनिश्चित करते हुए कि जलवायु संबंधी वार्ताओं के केंद्र में समानता हो तथा सभी के लाभ के लिये वैश्विक एवं राष्ट्रीय, दोनों ज़िम्मेदारियाँ संतुलित हों।