30 Jun 2025 | सामान्य अध्ययन पेपर 2 | राजव्यवस्था
दृष्टिकोण / व्याख्या / उत्तर
हल करने का दृष्टिकोण:
- संक्षेप में ‘भुला दिये जाने का अधिकार’ का परिचय दीजिये।
- भारत में इसके संवैधानिक आधार और कानूनी स्थिति पर चर्चा कीजिये।
- न्यायिक टिप्पणी के साथ उचित निष्कर्ष दीजिये।
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परिचय:
भूल जाने का अधिकार (RTBF) व्यक्तियों को सार्वजनिक प्लेटफॉर्म से अपने व्यक्तिगत डेटा को रिमूव करने का अनुरोध करने का अधिकार देता है, विशेषकर तब जब यह अब किसी वैध उद्देश्य की पूर्ति नहीं करता है। डिजिटल युग में, जहाँ डेटा स्थायी है, यह अधिकार निजता, प्रतिष्ठा और व्यक्तिगत गरिमा को बनाए रखने के लिये महत्त्वपूर्ण हो जाता है।
मुख्य भाग:
RTBF का संवैधानिक आधार
- अनुच्छेद 21 – जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता का अधिकार:
- न्यायमूर्ति के.एस. पुट्टस्वामी (सेवानिवृत्त) बनाम भारत संघ (2017) के मामले में मान्यता दी गई।
- RTBF को निजता के अधिकार के एक विस्तार के रूप में देखा जाता है, जिसमें सूचनात्मक स्वायत्तता भी सम्मिलित है।
- अनुच्छेद 19(1)(a) – अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता:
- RTBF, विशेषकर जनहित, मीडिया तथा ऐतिहासिक अभिलेखों से संबंधित मामलों में, अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के साथ असंगतता उत्पन्न कर सकता है।
- न्यायालयों ने गरिमा और पारदर्शिता के बीच संतुलन बनाये रखने की आवश्यकता पर बल दिया है।
भारत में विधिक और न्यायिक स्थिति
- विशिष्ट कानून का अभाव:
- भारत में RTBF हेतु कोई पृथक् विधि नहीं है।
- डिजिटल व्यक्तिगत डेटा संरक्षण अधिनियम, 2023 व्यक्तियों को उनके व्यक्तिगत डेटा के मिटाने का अनुरोध करने की अनुमति देता है, किंतु स्पष्ट रूप से RTBF को एक अधिकार के रूप में मान्यता नहीं देता।
- न्यायिक घटनाक्रम:
- XYZ बनाम रजिस्ट्रार जनरल (दिल्ली हाईकोर्ट, 2020): दोषमुक्ति मामलों में नामों को हटाने का निर्देश।
- जोरावर सिंह मुंडी बनाम भारत संघ (2021): विदेशी नागरिक की गरिमा की रक्षा के लिये RTBF का आह्वान किया गया।
- ओडिशा उच्च न्यायालय (2023): आपराधिक आरोपों से दोषमुक्त महिला के लिये RTBF को मान्यता दी गयी, डिजिटल प्लेटफॉर्मों से व्यक्तिगत विवरण हटाने का आदेश दिया गया।
- हिमाचल प्रदेश उच्च न्यायालय (जुलाई 2024): बलात्कार मामले में अभियुक्त और पीड़िता, दोनों के नामों को हटाने का आदेश दिया गया, यह कहते हुए कि दोषमुक्त व्यक्ति पर कलंक नहीं रहना चाहिये।
- चुनौतियाँ एवं चिंताएँ:
- निजता बनाम जनहित: न्यायालयों को खुले न्याय और सार्वजनिक पहुँच के साथ निजता को संतुलित करने में संघर्ष करना पड़ता है।
- विधायी शून्यता: स्पष्ट कानूनी ढाँचे की अनुपस्थिति से प्रवर्तन में असंगति उत्पन्न होती है।
- अतिक्रमण का जोखिम: विविध निर्णयों से निजी प्लेटफॉर्मों पर कंटेंट रिमूव करने का दबाव बन सकता है, जिससे डिजिटल रिकॉर्ड की सटीकता प्रभावित हो सकती है।
- अधिकारों का टकराव: RTBF को अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता तथा सूचना का अधिकार अधिनियम के साथ संतुलित करने की आवश्यकता है।
- प्रवर्तन में कठिनाई: विभिन्न प्लेटफॉर्म पर अनुपालन तथा डेटा की पुनरावृत्ति प्रवर्तन को जटिल बना देती है।
निष्कर्ष:
RTBF डिजिटल रूप से स्थायी हो चुकी दुनिया में व्यक्तिगत गरिमा की रक्षा के लिये एक आवश्यक सुरक्षा उपाय है। हालाँकि भारत के न्यायालयों ने इस दिशा में प्रगतिशील कदम उठाये हैं, परंतु स्पष्ट विधायी ढाँचे के अभाव में इसका प्रवर्तन सीमित रह गया है। जैसा कि न्यायमूर्ति डी.वाई. चंद्रचूड़ ने कहा है, "निजता, मानवीय गरिमा का संवैधानिक सार है।"
इस गरिमा की रक्षा हेतु RTBF को विधिक रूप से संहिताबद्ध किया जाना चाहिये और पारदर्शिता, जनहित तथा अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के साथ संतुलन बनाये रखा जाना चाहिये।