02 Jul 2025 | सामान्य अध्ययन पेपर 2 | राजव्यवस्था
दृष्टिकोण / व्याख्या / उत्तर
हल करने का दृष्टिकोण:
- धर्मनिरपेक्षता के सिद्धांत का संक्षेप में परिचय दीजिये।
- भारतीय धर्मनिरपेक्षता में 'सैद्धांतिक दूरी' के सिद्धांत पर चर्चा कीजिये।
- फ्रांसीसी धर्मनिरपेक्षता में 'लाइसिटे' के सिद्धांत की व्याख्या कीजिये।
- दोनों मॉडलों की प्रभावशीलता का मूल्यांकन कीजिये।
- उपयुक्त निष्कर्ष प्रस्तुत कीजिये।
|
परिचय:
एक राजनीतिक सिद्धांत के रूप में धर्मनिरपेक्षता धार्मिक स्वतंत्रता और समानता को बढ़ावा देते हुए राज्य एवं धर्म के पृथक्करण को सुनिश्चित करती है। भारत 'सैद्धांतिक दूरी' के मॉडल का अनुसरण करता है, जो धर्म से संदर्भानुकूल संवाद की अनुमति देता है, जबकि फ्राँस 'लाइसिटे' (laïcité) की कठोर धर्मनिरपेक्षता का पालन करता है, जो सार्वजनिक क्षेत्र से धर्म को पूर्णतः अलग रखने का निर्देश देता है। दोनों मॉडल राज्य की तटस्थता को कायम रखने का प्रयास करते हैं, लेकिन धार्मिक प्रतीकों और स्वतंत्रताओं के प्रति उनके दृष्टिकोण में काफी भिन्नता है।
मुख्य भाग:
भारतीय धर्मनिरपेक्षता: सैद्धांतिक दूरी का सिद्धांत
- राजनीतिक दार्शनिक राजीव भार्गव द्वारा गढ़ी गई सैद्धांतिक दूरी की अवधारणा भारत के धर्मनिरपेक्षता के मॉडल का आधार है।
- यह न तो पूर्णतः अलगाववादी है और न ही ईश्वरवादी।
- इसके बजाय, यह राज्य को समानता, सम्मान और सामाजिक न्याय जैसे संवैधानिक मूल्यों के आधार पर धार्मिक मामलों में हस्तक्षेप करने या उनसे अलग होने की अनुमति देता है।
- उदाहरण के लिये, भारतीय राज्य ने अस्पृश्यता पर प्रतिबंध लगाने, दलितों के लिये मंदिर प्रवेश को बढ़ावा देने आदि के लिये हस्तक्षेप किया है।
- यह मॉडल भारत के बहुलवादी लोकाचार को प्रतिबिंबित करता है और इसकी धार्मिक विविधता को समायोजित करता है।
- एस.आर. बोम्मई बनाम भारत संघ (1994): इस बात पर ज़ोर दिया गया कि धर्मनिरपेक्षता मूल ढाँचे का हिस्सा है।
फ्राँसीसी धर्मनिरपेक्षता: लाइसिटे का सिद्धांत
- वर्ष 1905 के चर्च और राज्य पृथक्करण कानून के माध्यम से संस्थागत रूप से स्थापित लाइसिटे (laïcité), कठोर धर्मनिरपेक्षता के फ्राँसीसी संस्करण का प्रतिनिधित्व करता है।
- इसमें इस बात पर ज़ोर दिया गया है कि धर्म को निजी क्षेत्र में ही रहना चाहिये तथा विद्यालयों, न्यायालयों और सरकारी कार्यालयों जैसे सार्वजनिक संस्थानों में धार्मिक अभिव्यक्ति पर प्रतिबंध लगाया गया है।
- यह मॉडल फ्राँस के पादरी वर्ग के प्रतिरोध के इतिहास को दर्शाता है और इसका उद्देश्य सार्वजनिक जीवन से धर्म को बाहर रखकर व्यक्तिगत स्वतंत्रता की रक्षा करना है।
तुलनात्मक प्रभावशीलता और समकालीन विवाद
- राज्य-धर्म संबंध के प्रति दृष्टिकोण:
- भारत सैद्धांतिक दूरी के माध्यम से एक प्रासंगिक और समायोजन मॉडल का पालन करता है - राज्य संवैधानिक मूल्यों के आधार पर संलग्न या अलग हो सकता है।
- धार्मिक संस्थाओं को वक्फ अधिनियम और हिंदू धार्मिक एवं धर्मार्थ बंदोबस्ती अधिनियम जैसे कानूनों के माध्यम से विनियमित किया जाता है।
- फ्राँस में धर्म और राज्य के बीच कठोर अलगाव को अनिवार्य करते हुए, लाइसिटे के माध्यम से पूर्ण तटस्थता लागू की जाती है।
- धार्मिक प्रतीकों के प्रति दृष्टिकोण:
- भारत: सामान्यतः धार्मिक प्रतीकों की अनुमति है।
- पुलिस सेवा में सिख पगड़ी, सभी प्रमुख धर्मों के लिये सार्वजनिक अवकाश और अनुच्छेद 30 के तहत अल्पसंख्यक संस्थानों के अधिकारों की अनुमति देता है।
- शिरूर मठ मामला (1954): सर्वोच्च न्यायालय ने आवश्यक और अनावश्यक धार्मिक प्रथाओं के बीच अंतर किया।
- फ्राँस: यह सार्वजनिक संस्थानों में धार्मिक पोशाक पर सख्ती से प्रतिबंध लगाता है। हिजाब (वर्ष 2004), नकाब (वर्ष 2011) और अबाया (वर्ष 2023) पर प्रतिबंध लगाने वाले कानूनों का मुस्लिम महिलाओं पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ा है।
- सामाजिक प्रभाव:
- भारत: भारत का मॉडल समावेशिता को बढ़ावा देता है और सामाजिक सुधार को प्रोत्साहित करता है।
- तीन तलाक मामला (2017): न्यायालय ने तत्काल तलाक को असंवैधानिक करार दिया, तथा धर्म के अंतर्गत महिलाओं के अधिकारों की रक्षा में राज्य की भूमिका की पुष्टि की।
- फ्राँस: तटस्थता के माध्यम से व्यक्तिगत स्वतंत्रता की रक्षा करता है, लेकिन अल्पसंख्यक समुदायों को अलग-थलग करने और धार्मिक पहचान को प्रतिबंधित करने के लिये आलोचना का सामना करना पड़ा है।
- लचीलापन बनाम स्थिरता :
- यद्यपि भारत का मॉडल अधिक धार्मिक समायोजन की अनुमति देता है, लेकिन कभी-कभी इसका परिणाम राजनीतिक दुरुपयोग या असंगत अनुप्रयोग के रूप में सामने आता है।
- इसे चयनात्मक प्रवर्तन के लिये आलोचना का सामना करना पड़ता है — जैसे, कर्नाटक हिजाब प्रतिबंध (वर्ष 2022) में संस्थागत एकरूपता को व्यक्तिगत धार्मिक अभिव्यक्ति पर प्राथमिकता दी गई, और अब समाप्त की जा चुकी हज सब्सिडी को कुछ लोगों ने राजनीतिक तुष्टिकरण के रूप में देखा।
- फ्राँस की लाइसिटे (laïcité) एकरूपता सुनिश्चित करती है, परंतु यह बहुसांस्कृतिक परिवेश में प्रायः धार्मिक अल्पसंख्यकों के बहिष्कार और अलगाव का कारण बन जाती है।
निष्कर्ष:
भारत का 'सैद्धांतिक दूरी' मॉडल यद्यपि जटिल है, किंतु धार्मिक विविधता के प्रबंधन में अधिक लचीलापन प्रदान करता है, जो राष्ट्र की बहुसांस्कृतिक संरचना के अनुरूप है। इसके विपरीत, फ्राँस की लाइसिटे (laïcité) प्रणाली सैद्धांतिक रूप से तो सुसंगत है, किंतु उस पर तटस्थता की बहुसंख्यकवादी अवधारणा को लागू करने के आरोप लगते रहे हैं।
जैसा कि राजीव भार्गव कहते हैं:
“भारतीय धर्मनिरपेक्षता धर्म-विरोधी नहीं है; यह बहु-मूल्य और बहु-सिद्धांत वाली है, जो स्वतंत्रता, समानता और सुधार पर ज़ोर देती है।”
वास्तविक धर्मनिरपेक्षता सुनिश्चित करने के लिये, दोनों देशों को समावेशी ढाँचे का विकास करना होगा जो तेज़ी से विविधतापूर्ण होते विश्व में राज्य की तटस्थता और व्यक्तिगत धार्मिक स्वतंत्रता के बीच संतुलन स्थापित कर सके।