दिवस 11: "ध्रुव पिघल रहे हैं, पर परिणाम समान रूप से ध्रुवीय नहीं हैं।" आर्कटिक और अंटार्कटिक हिमनदों के पिघलने से पृथ्वी की वायुमंडलीय परिसंचरण, समुद्री धाराओं एवं मानवीय आजीविका पर किस प्रकार भिन्न-भिन्न प्रभाव पड़ते हैं, इसकी विवेचना कीजिये। (250 शब्द)
27 Jun 2025 | सामान्य अध्ययन पेपर 1 | भूगोल
दृष्टिकोण / व्याख्या / उत्तर
हल करने का दृष्टिकोण:
- ध्रुवीय बर्फ पिघलने की परिघटना से उत्तर लेखन की शुरुआत कीजिये।
- प्रत्येक ध्रुव पर ग्लेशियर पिघलने के अलग-अलग कारणों का परीक्षण कीजिये।
- विभेदक परिणामों का विश्लेषण कीजिये।
- प्रासंगिक SDG संदर्भ के साथ निष्कर्ष दीजिये।
|
परिचय:
आर्कटिक और अंटार्कटिक क्षेत्रों में ग्लेशियरों का तीव्र विगलन वैश्विक जलवायु परिवर्तन का एक गंभीर परिणाम है। हालाँकि दोनों ध्रुवों पर बर्फ पिघल रही है, लेकिन ग्लेशियरों के पिघलने के प्रभाव भौगोलिक और जलवायु की दृष्टि से अलग-अलग हैं। आर्कटिक, जो मुख्य रूप से भू-आबद्ध महासागर है, जबकि अंटार्कटिक, जो बर्फ से आच्छादित और महासागर से आबद्ध एक विशाल स्थलखंड है, ये दोनों पृथ्वी की प्रणाली को अलग-अलग प्रकार से प्रभावित करते हैं।
मुख्य भाग:
विगलन के विभिन्न कारण
- आर्कटिक (उत्तरी ध्रुव):
- आर्कटिक प्रवर्द्धन (Arctic Amplification) के कारण तीव्र गति से गर्मी बढ़ रही है, जिसमें समुद्री बर्फ के घटने से प्रकाशानुपात (एल्बीडो) कम हो जाता है और अधिक उष्मीय ऊर्जा सतह पर बनी रहती है।
- महाद्वीपों के निकट होने के कारण यह वायुमंडलीय उष्मा से अत्यधिक प्रभावित होता है।
- यहाँ विगलन की प्रक्रिया मुख्यतः वायु तापमान में वृद्धि के कारण होती है।
- अंटार्कटिका (दक्षिणी ध्रुव):
- चारों ओर दक्षिणी महासागर से आबद्ध होने के कारण यह क्षेत्र वायुमंडलीय परिवर्तनों से अपेक्षाकृत संरक्षित रहता है।
- यहाँ विगलन की प्रक्रिया मुख्यतः समुद्री तापमान में वृद्धि के कारण होती है, विशेषतः हिम शैलों (Ice Shelves) के नीचे (जैसे: थ्वाइट्स ग्लेशियर)।
- पश्चिमी अंटार्कटिका अधिक सुभेद्य है, जबकि पूर्वी अंटार्कटिका अपेक्षाकृत स्थिर बना हुआ है।
वायुमंडलीय परिसंचरण पर प्रभाव
- आर्कटिक विगलन:
- यह ध्रुवीय जेट स्ट्रीम को कमज़ोर कर देता है, जिससे मध्य अक्षांशों में मौसम की अनियमितता उत्पन्न होती है।
- यह उत्तर अमेरिका में शीत लहरों तथा यूरोप और एशिया में हीट-वेव से जुड़ा हुआ है।
- इससे उत्तरी गोलार्द्ध में चरम मौसमी परिवर्तनशीलता और भी तीव्र हो जाती है।
- अंटार्कटिक पिघलन:
- यह दक्षिणी गोलार्द्ध की पश्चिमी पवनों को और दक्षिण की ओर अभिमुख कर देता है, जिससे ऑस्ट्रेलिया तथा दक्षिण अमेरिका में वर्षा प्रभावित होती है।
- यह ध्रुवीय भँवर (पोलर वॉर्टेक्स) की स्थिरता को भी बदलता है, जिससे ओज़ोन पुनर्प्राप्ति और दक्षिणी अक्षांशों की जलवायु गतिशीलता प्रभावित होती है।
समुद्री धाराओं पर प्रभाव
- आर्कटिक क्षेत्र के परिणाम:
- ग्रीनलैंड के हिम-आवरण के विगलन से उत्तर अटलांटिक महासागर में अलवण जल की मात्रा बढ़ती है, जिससे अटलांटिक मेरिडियनल ओवरटर्निंग सर्कुलेशन (AMOC) कमज़ोर हो जाती है।
- इससे मानसून बाधित हो सकता है, यूरोप ठंडा हो सकता है, तथा अमेरिका के पूर्वी तट पर समुद्र का स्तर बढ़ सकता है।
- अंटार्कटिक क्षेत्र के परिणाम:
- उदाहरणस्वरूप, यदि पश्चिम अंटार्कटिक हिम-आवरण ढह जाती है, तो समुद्र-स्तर में 3 मीटर से भी अधिक की वृद्धि हो सकती है।
- हिम-आवरणों के विगलन से दक्षिणी महासागर में भी अलवण जल की मात्रा बढ़ती है, जो वैश्विक थर्मोहेलाइन परिसंचरण प्रणाली को धीमा कर सकता है।
- दीर्घकालिक रूप से यह वैश्विक समुद्र-स्तर में वृद्धि में योगदान देता है।
- ऊर्ध्व-प्रवाह (Upwelling) प्रणालियों में परिवर्तन से पोषक तत्त्व चक्र और समुद्री जैव-विविधता को प्रभावित होते हैं।
मानव आजीविका पर प्रभाव
- आर्कटिक प्रभाव:
- जो समुदाय पर्माफ्रॉस्ट (स्थायी तुषार-भूमि) और हिम-स्थिरता पर निर्भर हैं, उनके लिये तत्काल संकट उत्पन्न हो गया है।
- उत्तरी समुद्री मार्ग जैसे नये नौ-परिवहन मार्ग खुलने से भू-राजनीतिक तनाव (उदाहरणस्वरूप, आर्कटिक परिषद में शक्ति-संतुलन) बढ़ रहे हैं।
- ग्रीनलैंड की बर्फ के पिघलने से जकार्ता और मियामी जैसे तटीय नगर समुद्र-स्तर वृद्धि का सामना कर रहे हैं।
- अंटार्कटिक क्षेत्र के प्रभाव:
- यहाँ का प्रभाव अपेक्षाकृत धीमा है, पर समुद्र-स्तर में बढ़ोतरी का वैश्विक प्रभाव विशेष रूप से मालदीव, तुवालु जैसे द्वीपीय राष्ट्रों पर पड़ रहा है।
- क्रिल जनसंख्या में परिवर्तन के कारण मत्स्य संसाधन प्रभावित हो रहे हैं, जिससे खाद्य सुरक्षा पर संकट आ सकता है।
- मानव आबादी की प्रत्यक्ष उपस्थिति कम होने के बावजूद, इस क्षेत्र के पारिस्थितिक तथा आर्थिक प्रभाव दूरगामी हैं।
निष्कर्ष:
- आर्कटिक और अंटार्कटिक, दोनों क्षेत्रों में तेज़ी से हिम का विगलन हो रहा है, किंतु इसके प्रभाव समय, क्षेत्रीय परिस्थितियों और महत्त्व की दृष्टि से भिन्न हैं। विश्व आर्थिक मंच (World Economic Forum) के अनुसार "ध्रुवों में जो घटित होता है, वह वहीं तक सीमित नहीं रहता।" अर्थात् इसका वैश्विक प्रभाव भी व्यापक है।
- अतः इन ध्रुवीय विषमताओं से निपटने के लिये तत्काल और स्थान-विशेष की आवश्यकताओं के अनुरूप वैश्विक कार्रवाई अपेक्षित है, जो सतत् विकास लक्ष्य (SDG 13: जलवायु-परिवर्तन कार्रवाई) तथा जलवायु अनुकूलन और सतत् विकास की व्यापक दृष्टि से जुड़ी हो।