दिवस- 5: लंबे समय तक चले वियतनाम युद्ध में महाशक्तियों की प्रतिद्वंद्विता की भूमिका का विश्लेषण कीजिये। दक्षिण-पूर्व एशिया पर इसके दीर्घकालिक सामाजिक-आर्थिक प्रभाव क्या थे? (250 शब्द)
20 Jun 2025 | सामान्य अध्ययन पेपर 1 | इतिहास
दृष्टिकोण / व्याख्या / उत्तर
हल करने का दृष्टिकोण
- वियतनाम युद्ध को शीत युद्ध युग के छद्म संघर्ष के रूप में प्रस्तुत कीजिये।
- लंबे समय तक चले वियतनाम युद्ध में महाशक्तियों की प्रतिद्वंद्विता की भूमिका पर प्रकाश डालिये।
- दक्षिण पूर्व एशिया पर इसके दीर्घकालिक सामाजिक-आर्थिक प्रभावों का उल्लेख कीजिये।
- एक विवेकपूर्ण अवलोकन के साथ उचित निष्कर्ष दीजिये।
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परिचय:
वियतनाम युद्ध (1955-1975) उत्तर और दक्षिण वियतनाम के बीच एक राष्ट्रवादी संघर्ष के रूप में शुरू हुआ, लेकिन शीघ्र ही एक प्रमुख शीत युद्ध युग के छद्म संघर्ष में बदल गया। संयुक्त राज्य अमेरिका और सोवियत संघ (चीन के साथ) के बीच तीव्र प्रतिद्वंद्विता के कारण युद्ध न केवल लंबे समय तक चला, बल्कि दशकों तक दक्षिण पूर्व एशिया के राजनीतिक एवं आर्थिक परिदृश्य को भी बदल दिया।
मुख्य भाग:
महाशक्तियों की प्रतिद्वंद्विता और युद्ध का लंबे समय तक चलना
- अमेरिकी नियंत्रण नीति:
- अमेरिका ने डोमिनो सिद्धांत के प्रभाव में वियतनाम में प्रवेश किया, क्योंकि उसे भय था कि वियतनाम में साम्यवादी जीत से गैर-साम्यवादी शासनों का क्षेत्रीय पतन हो जाएगा।
- इस आशंका के चलते अमेरिका ने वियतनाम में गहन हस्तक्षेप किया, वर्ष 1969 तक 5 लाख से अधिक सैनिकों की तैनाती की गई तथा 'ऑपरेशन रोलिंग थंडर' और 'टेट आक्रमण' जैसी विशाल सैन्य कार्रवाइयाँ चलाई गईं।
- उत्तरी वियतनाम के लिये सोवियत और चीनी समर्थन:
- साम्यवादी प्रभाव का विस्तार करने और अमेरिकी प्रभुत्व का मुकाबला करने की इच्छा से प्रेरित होकर सोवियत संघ व चीन ने उत्तरी वियतनाम को महत्त्वपूर्ण समर्थन प्रदान किया।
- सोवियत संघ ने SAM मिसाइलें, लड़ाकू जेट और आर्थिक सहायता भेजी, जबकि चीन ने लाखों सहायक सैनिक व रसद तैनात किये।
- प्रॉक्सी युद्ध की गतिशीलता:
- वियतनाम युद्ध वैचारिक दृढ़ता— पूंजीवादी लोकतंत्र बनाम साम्यवाद के लिये युद्ध का मैदान बन गया।
- बाह्य समर्थन के निरंतर प्रवाह ने दोनों पक्षों को दीर्घकालिक सैन्य अभियान जारी रखने में सहायता की, जिससे स्थानीय नागरिक संघर्ष वैश्विक वैचारिक टकराव में बदल गया।
- गतिरोध और वृद्धि:
- प्रतिद्वंद्वी महाशक्तियों द्वारा अपने सहयोगियों को विफल होने देने की अनिच्छा के कारण गतिरोध उत्पन्न हो गया।
- शांति वार्ता बार-बार विफल रही क्योंकि कोई भी पक्ष राजनीतिक हार बर्दाश्त नहीं कर सकता था, जिसके परिणामस्वरूप लंबे समय तक युद्ध चलता रहा और अधिक विनाश हुआ।
दक्षिण-पूर्व एशिया पर दीर्घकालिक सामाजिक-आर्थिक प्रभाव
- भारी मानवीय और पर्यावरणीय क्षति:
- संघर्ष में 30 लाख से अधिक वियतनामी लोग मारे गए, साथ ही अमेरिकी बमबारी के कारण लाओस और कंबोडिया में भी हज़ारों लोग मारे गए।
- एजेंट ऑरेंज जैसे रासायनिक विक्षेपकों के प्रयोग से दीर्घकालिक पर्यावरणीय क्षति हुई और गंभीर स्वास्थ्य संकट उत्पन्न हुआ।
- आर्थिक तबाही:
- वियतनाम का बुनियादी अवसंरचना, कृषि और उद्योग बर्बाद हो गए। वर्ष 1986 में Đổi Mới (आर्थिक सुधार) तक आर्थिक सुधार में विलंब हुए।
- लाओस और कंबोडिया को भी इसी प्रकार युद्ध तथा उत्तरोत्तर सरकारों के कारण गतिरोध का सामना करना पड़ा।
- शरणार्थी संकट:
- युद्ध के कारण बड़े पैमाने पर शरणार्थियों (1.5 मिलियन से अधिक लोग) का पलायन हुआ, जिनमें कुख्यात ‘बोट पीपल’ भी शामिल थे, जो थाईलैंड, मलेशिया एवं इंडोनेशिया की ओर पलायन कर गए, जिससे क्षेत्र के लिये मानवीय और राजनीतिक चुनौतियाँ उत्पन्न हो गईं।
- सत्तावादी शासन का उदय:
- अमेरिका की वापसी के बाद उत्पन्न हुई सत्ता-शून्यता ने कंबोडिया में खमेर रूज़ के उदय को संभव बनाया, जिसके परिणामस्वरूप वर्ष 1975 से 1979 के दौरान नरसंहार हुआ। इसी प्रकार लाओस और वियतनाम में साम्यवादी शासन स्थापित हुए।
- क्षेत्रीय पुनर्संरेखण:
- इस युद्ध के पश्चात् आसियान (ASEAN) जैसे क्षेत्रीय संगठन को मज़बूत करने की प्रक्रिया तेज़ हुई, जिसका उद्देश्य तटस्थता बनाये रखना तथा वैचारिक संघर्ष को नियंत्रित करना था। दूसरी ओर अमेरिका ने ‘वियतनाम सिंड्रोम’ के नाम से जानी जाने वाली एक अधिक सतर्क विदेश नीति को अपनाया।
निष्कर्ष
- इतिहासकार गैब्रिएल कोल्को के शब्दों में, "वियतनाम वह भूमि थी जहाँ शीतयुद्ध के भ्रम उपनिवेशवादी वास्तविकताओं से टकराये।"
- इस युद्ध की मानवीय और सामाजिक-आर्थिक लागत ने संपूर्ण दक्षिण-पूर्व एशिया को गहरे रूप में आहत किया, जिससे उसका उपनिवेशोत्तर पुनरुत्थान विलंबित हुआ तथा उसकी क्षेत्रीय कूटनीति दशकों तक प्रभावित रही।