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दिवस -1: गुप्त काल को प्रायः भारतीय संस्कृति का "स्वर्ण युग" कहा जाता है। उस काल की कला और वास्तुकला किस प्रकार तत्कालीन राजनीतिक एवं धार्मिक आदर्शों को दर्शाती थी? उदाहरण सहित स्पष्ट कीजिये। (250 शब्द)

16 Jun 2025 | सामान्य अध्ययन पेपर 1 | संस्कृति

दृष्टिकोण / व्याख्या / उत्तर

हल करने का दृष्टिकोण:

  • संक्षेप में बताएँ कि गुप्त काल को स्वर्ण युग क्यों माना जाता है?
  • चर्चा कीजिये कि किस प्रकार कला और वास्तुकला उस समय के राजनीतिक और धार्मिक आदर्शों को प्रतिबिंबित करने के माध्यम बन गए।
  • मंदिरों, मूर्तियों, चित्रकलाओं और शिलालेखों से उदाहरण देकर अपने तर्कों का समर्थन कीजिये।
  • विद्वानों की टिप्पणियों के साथ उत्तर को समाप्त कीजिये।

परिचय:

गुप्त काल (लगभग 320-550 ई.) को अक्सर कला, वास्तुकला, साहित्य, विज्ञान और धर्म में अभूतपूर्व उपलब्धियों के कारण भारतीय संस्कृति के "स्वर्ण युग" के रूप में जाना जाता है। गुप्त शासकों, विशेष रूप से समुद्रगुप्त और चंद्रगुप्त द्वितीय ने उस समय के राजनीतिक और धार्मिक आदर्शों को व्यक्त करने के लिये कला और वास्तुकला को संरक्षण दिया।

मुख्य बिंदु:

गुप्त कला और वास्तुकला में राजनीतिक आदर्श

  • राजशाही की प्रतिष्ठा का चित्रण:
    • गुप्त राजाओं ने वास्तुकला और शिलालेखों का उपयोग स्वयं को दैवीय अनुमोदन प्राप्त धार्मिक राजा (चक्रवर्ती) के रूप में चित्रित करने के लिये किया।
    • हरिषेण द्वारा लिखित इलाहाबाद स्तंभ शिलालेख में समुद्रगुप्त को एक सार्वभौमिक सम्राट के रूप में महिमामंडित किया गया है तथा राजनीतिक विजय को दैवीय कर्त्तव्य के विस्तार के रूप में चित्रित किया गया है।
    • समुद्रगुप्त के एरण शिलालेख में भी राजसी धर्म और राजा की दैवीय संगति पर जोंर दिया गया है।
  • सांस्कृतिक एकीकरण और राजनीतिक एकता
    • मध्य प्रदेश (देवगढ़) से लेकर उत्तर प्रदेश (सारनाथ) तक विभिन्न क्षेत्रों में मंदिर वास्तुकला में एकरूपता गुप्त शासन के तहत शाही पहुँच और सांस्कृतिक एकता को दर्शाती है।
    • चंद्रगुप्त द्वितीय के सिक्के, जिन पर उसे सिंह का वध करते हुए दर्शाया गया है, न केवल कलात्मक कौशल को दर्शाते हैं, बल्कि राज्य के रक्षक के रूप में राजा की शक्ति और धार्मिक भूमिका को भी दर्शाते हैं।

गुप्त कला में प्रतिबिंबित धार्मिक आदर्श

  • मंदिर वास्तुकला का उदय :
    • देवगढ़ स्थित दशावतार मंदिर, जो भगवान विष्णु को समर्पित है, सबसे प्रारंभिक जीवित पत्थर-निर्मित हिंदू मंदिरों में से एक है।
      • इसकी ऊँची कुर्सी, नक्काशीदार पैनल (जैसे, गजेंद्रमोक्ष, नरसिंह और अनंतशयन विष्णु) और सपाट छत सौंदर्यात्मक लालित्य और भक्ति प्रतीकात्मकता दोनों को प्रतिबिंबित करते हैं।
    • उत्तर प्रदेश में भीतरगाँव जैसे मंदिर (जली हुई ईंटों और टेराकोटा पैनलों से बने) संरचनात्मक वास्तुकला और शिखर-शैली के डिज़ाइन के साथ प्रारंभिक प्रयोग को प्रदर्शित करते हैं।
  • बौद्ध और जैन संरक्षण:
    • यद्यपि ब्राह्मणवाद प्रमुख था, बौद्ध धर्म और जैन धर्म भी फले-फूले ।
    • अजंता की गुफाएँ, विशेषकर गुफा 1 और गुफा 17, जातक भित्तिचित्रों और पद्मपाणि बोधिसत्व जैसे भित्तिचित्रों से सुसज्जित हैं, जो बौद्ध आदर्शों के केंद्र में स्थित नैतिक कथाओं और करुणा को दर्शाते हैं।
  • प्रतिमा विज्ञान और दैवीय कल्पना:
    • गुप्त कला ने दैवीय प्रतिमा विज्ञान को मानकीकृत किया। सारनाथ बुद्ध प्रतिमा (5वीं शताब्दी ई.) ध्यान मुद्रा (ध्यान) और धर्मचक्र मुद्रा (उपदेश) के साथ आध्यात्मिक शांति को दर्शाती है।
    • देवगढ़ और उदयगिरि गुफा 5 ( वराह अवतार को दर्शाती) की विष्णु मूर्तियाँ ब्रह्मांडीय व्यवस्था को बहाल करने के लिये दैवीय हस्तक्षेप को दर्शाती हैं- जो आदर्श राजा के कर्त्तव्य को प्रतिबिंबित करती हैं।
  • तकनीकी और प्रतीकात्मक कलाकृतियाँ:
    • महरौली (दिल्ली) स्थित लौह स्तंभ धातुकर्म उत्कृष्टता का प्रमाण है, जो चंद्रगुप्त द्वितीय की याद दिलाता है। इसकी जंगरोधी संरचना प्राचीन तकनीक का एक चमत्कार है, जबकि इसका संस्कृत शिलालेख राजा की वीरता और धर्मपरायणता का महिमामंडन करता है।

निष्कर्ष:

जैसा कि इतिहासकार आर. सी. मजूमदार ने कहा है, "गुप्त काल भारतीय संस्कृति की पत्थर और आत्मा में शास्त्रीय अभिव्यक्ति का युग था।" गुप्तों की विरासत ने भारतीय उपमहाद्वीप में मंदिर वास्तुकला, मूर्तिकला और धार्मिक प्रतीकों की भावी परंपराओं की नींव रखी। उनके द्वारा रचित कला-धरोहर भारत की सांस्कृतिक और आध्यात्मिक आत्मा की अमिट छाप है।