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दिवस-2: औपनिवेशिक काल के दौरान राष्ट्रवादी चेतना को संगठित करने में स्थानीय प्रेस की भूमिका का आकलन कीजिये। (150 शब्द)

17 Jun 2025 | सामान्य अध्ययन पेपर 1 | इतिहास

दृष्टिकोण / व्याख्या / उत्तर

हल करने का दृष्टिकोण : 

  • 19वीं शताब्दी में स्थानीय भाषा प्रेस के उदय के लिये उत्तरदायी कारकों की संक्षेप में व्याख्या कीजिये।
  • समझाइये कि स्थानीय प्रेस ने राष्ट्रवादी जागृति के माध्यम के रूप में किस प्रकार कार्य किया।
  • प्रमुख समाचार पत्रों और संपादकों के उदाहरण दीजिये।
  • भारत के स्वतंत्रता आंदोलन पर उनकी विरासत और प्रभाव का उल्लेख करते हुए निष्कर्ष लिखिये।

परिचय:

19 वीं सदी में भारतीय भाषा के समाचार पत्रों में वृद्धि देखी गई, जिसमें मुद्रण तकनीक की शुरूआत, बढ़ती साक्षरता और सामाजिक-धार्मिक सुधार आंदोलनों का उदय शामिल था। अंग्रेजी समाचार पत्रों के विपरीत, स्थानीय भाषा की पत्रिकाएँ गैर-अंग्रेजी भाषी भारतीयों तक पहुँचीं, जिससे जन-आधारित राजनीतिक चेतना उत्पन्न हुई और उपनिवेशवाद विरोधी विमर्श के लिये एक मंच प्रदान किया गया।

मुख्य भाग:

राष्ट्रवादी चेतना को संगठित करने में स्थानीय प्रेस की भूमिका 

  • राजनीतिक शिक्षा और जागरूकता:
    • स्थानीय भाषा के समाचार-पत्रों ने जटिल राजनीतिक मुद्दों को सरल बना दिया तथा ब्रिटिश आर्थिक शोषण, भू-राजस्व अन्याय और दमनकारी कानूनों को उजागर किया।
    • उदाहरण के लिये, बाल गंगाधर तिलक की केसरी (मराठी) ने पाठकों को स्वराज और प्रतिरोध के बारे में शिक्षित किया।
    • अमृत ​​बाजार पत्रिका (बंगाली) ने इल्बर्ट बिल विवाद जैसे औपनिवेशिक अन्याय को उजागर किया।
  • सांस्कृतिक प्रतिध्वनि और क्षेत्रीय लामबंदी:
    • स्थानीय भाषाओं में लिखे गए ये पत्र सांस्कृतिक प्रतीकों और स्थानीय मुहावरों का उपयोग करते हुए सीधे लोगों की भावनाओं से जुड़ते थे ।
    • स्वदेशमित्रम् (तमिल), सुधारक (मराठी) और हिंदुस्तान (हिंदी) ने क्षेत्रीय मुद्दों को व्यापक राष्ट्रीय मुद्दे से सम्मिलित किया।
    • बंगदर्शन में बंकिम चंद्र की रचनाओं ने धार्मिक और सांस्कृतिक विषयों का प्रयोग करते हुए देशभक्ति की भावना जाग्रत करने में मदद की।
  • आलोचना और प्रतिरोध:
    • स्थानीय प्रेस ने खुले तौर पर औपनिवेशिक शासन की आलोचना की, ब्रिटिश नैतिक अधिकार पर प्रश्न उठाया और सुधार आंदोलनों का समर्थन किया
    • लेखों में नील विद्रोह, किसान अशांति और अकाल कुप्रबंधन, जन आक्रोश को शामिल किया गया।
  • दमन और लचीलापन:
    • इसके प्रभाव से ब्रिटिश ने राष्ट्रवादी लेखन पर अंकुश लगाने के लिये वर्नाक्यूलर प्रेस एक्ट (1878) लागू किया।
    • हालाँकि, राष्ट्रवादी संपादकों ने सेंसरशिप को दरकिनार करने के रचनात्मक तरीके खोज लिये, जिससे प्रतिरोध जारी रहा।

निष्कर्ष:

औपनिवेशिक दमन के बावजूद, स्थानीय प्रेस ने जन-आंदोलन की नींव रखी और अक्सर कही जाने वाली कहावत की सच्चाई को साबित किया, "कलम तलवार से अधिक शक्तिशाली है।" भाषा और विचारों के एक शक्तिशाली माध्यम के रूप में, इसने एक स्थायी विरासत छोड़ी कि कैसे जमीनी स्तर पर संचार क्रांतिकारी परिवर्तन को प्रेरित कर सकता है ।