दृष्टिकोण / व्याख्या / उत्तर
हल करने का दृष्टिकोण:
- वर्ष 1925 के काकोरी षडयंत्र का संक्षिप्त परिचय दीजिये।
- इसकी गहन वैचारिक प्रेरणाओं को समझाइये।
- अंत में, बलिदान की प्रेरणा और संदेश पर प्रकाश डालिये।
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परिचय:
काकोरी षड्यंत्र, जो 9 अगस्त वर्ष 1925 को अंजाम दिया गया था, केवल सरकारी धन से जुड़ी एक सामान्य रेल डकैती नहीं था। यह हिंदुस्तान रिपब्लिकन एसोसिएशन (HRA) द्वारा सुनियोजित, प्रतीकात्मक और वैचारिक रूप से प्रेरित एक राजनीतिक प्रतिरोध की कार्यवाही थी। इस अभियान का उद्देश्य ब्रिटिश औपनिवेशिक सत्ता को चुनौती देना तथा भारत की स्वतंत्रता के लिये सशस्त्र क्रांतिकारी आंदोलन को बनाए रखने हेतु संसाधनों की प्राप्ति करना था।
मुख्य भाग:
वैचारिक आधार
- वर्ष 1924 में गठित HRA का मानना था कि ब्रिटिश साम्राज्यवाद को उखाड़ फेंकने के लिये हिंसक संघर्ष आवश्यक था।
- समाजवादी और राष्ट्रवादी आदर्शों से प्रेरित होकर इस षड्यंत्र का उद्देश्य जनता के लिये गणतंत्र की स्थापना करना था।
- आंदोलन को जारी रखने के लिये आर्थिक संसाधनों के अभाव में क्रांतिकारियों ने ट्रेन डकैती को राज्य के धन को प्राप्त करने के एक अवसर के रूप में देखा। यह षड्यंत्र निजी लाभ के लिये नहीं, बल्कि राष्ट्र-निर्माण की गतिविधियों के लिये था, जिनमें शस्त्रों की खरीद और प्रचार-प्रसार शामिल थे।
सावधानीपूर्वक योजना और कार्यान्वयन
- राम प्रसाद बिस्मिल, अशफाक उल्ला खाँ, राजेंद्र लाहिड़ी तथा अन्य क्रांतिकारियों के नेतृत्व में काकोरी षड्यंत्र की योजना अत्यंत सावधानीपूर्वक बनायी गयी थी।
- 9 अगस्त वर्ष 1925 को शाहजहाँपुर से लखनऊ जा रही ब्रिटिश खजाने से भरी ट्रेन को काकोरी के निकट रोका गया।
- यह कार्रवाई अत्यंत अनुशासन और सटीकता के साथ संपन्न की गयी, जो क्रांतिकारियों की सैन्य मानसिकता तथा वैचारिक स्पष्टता को दर्शाती है।
- यह कोई साधारण आपराधिक कृत्य नहीं था, बल्कि ब्रिटिश साम्राज्य के लिये एक संदेश था कि भारत का युवाजन स्वतंत्रता के लिये लड़ने और अपना बलिदान देने को तत्पर है।
राजनैतिक प्रतीकात्मकता
- इस कार्य का उद्देश्य औपनिवेशिक शासन की आर्थिक नींव को चुनौती देना था तथा यह दर्शाना था कि ब्रिटिश शासन भारतीय संसाधनों से ही पोषित होता है।
- यह विरोध का एक सार्वजनिक प्रदर्शन था, जिसका उद्देश्य भारतीय युवाओं में राष्ट्रवादी भावना को जागृत करना था।
प्रतिक्रिया और परिणाम
- ब्रिटिश सरकार ने इस पर कठोर दमनात्मक कार्रवाई की जिसमें क्रांतिकारियों की गिरफ्तारियाँ हुई, मुकदमे चलाए गए तथा फाँसी की सजा (रामप्रसाद बिस्मिल, अशफाक उल्ला खाँ और राजेंद्र नाथ लाहिड़ी को) दी गई।
- हालाँकि इस दमन के बावजूद, यह घटना क्रांतिकारी आंदोलनों के लिये प्रेरणा का स्रोत बनी, जिसने भगत सिंह जैसे अनेक भावी नेताओं और क्रांतिकारियों को प्रेरित किया।
निष्कर्ष:
यह षड्यंत्र उदारवादी संवैधानिकवाद से उग्र राष्ट्रवाद की ओर एक बदलाव का संकेत था। इसने दर्शाया कि किस प्रकार क्रांतिकारियों ने देशभक्ति को बलिदान के साथ जोड़ते हुए प्रतीकात्मक कार्रवाइयों के माध्यम से ब्रिटिश सत्ता की वैधता को चुनौती दी। बिपन चंद्र ने उल्लेख किया है कि इस प्रकार की क्रांतिकारी घटनाएँ अलग-थलग नहीं थीं, बल्कि वे ‘औपनिवेशिकता के विरुद्ध एक सजग और वैचारिक प्रतिरोध का हिस्सा’ थीं।